जान ही लेने की हिकमत[1] में तरक़्क़ी देखी
मौत का रोकने वाला कोई पैदा न हुआ
उसकी बेटी ने उठा रक्खी है दुनिया सर पर
ख़ैरियत गुज़री कि अंगूर के बेटा न हुआ
ज़ब्त से काम लिया दिल ने तो क्या फ़ख़्र करूँ
इसमें क्या इश्क की इज़्ज़त थी कि रुसवा न हुआ
मुझको हैरत है यह किस पेच में आया ज़ाहिद
दामे-हस्ती[2] में फँसा, जुल्फ़ का सौदा[3] न हुआ