जो तुम्हारे लब-ए-जाँ-बख़्श का शैदा होगा
उठ भी जाएगा जहाँ से तो मसीहा होगा
वो तो मूसा हुआ जो तालिब-ए-दीदार हुआ
फिर वो क्या होगा कि जिस ने तुम्हें देखा होगा
क़ैस का ज़िक्र मेरे शान-ए-जुनूँ के आगे
अगले वक़्तों का कोई बादया-पैमा होगा
आरज़ू है मुझे इक शख़्स से मिलने की बहुत
नाम क्या लूँ कोई अल्लाह का बंदा होगा
लाल-ए-लब का तेरे बोसा तो मैं लेता हूँ मगर
डर ये है ख़ून-ए-जिगर बाद में पीना होगा