बंगला खूप बनायाबे अंदर नारायन सोया ॥ध्रु०॥

पंचतत्त्वकी भीत बनाई तीन गूनका गारा ।
रोमकी छान चलाई चैतन करनेहारा ॥१॥

उस बंगलेकू दस दरबाजे बीच पवनका खंबा ।
आवत जावत किसे न देखो वो ही बडा आचंबा ॥२॥

पांच पचीसा पात्रा नीचे मनवा ताल बजावे ।
सुरत सुरतका मृदंग बजावे राग छत्तिसा गावे ॥३॥

अपरंपार भरा है यारो सद्‌गुरु भेद बताया ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु जिन्ने पाया उन्ने छपाया ॥४॥

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