तेजसिंह ने कुंअर वीरेन्द्रसिंह से पूछा, “आप इस बाग को देखकर चौंके क्यों? इसमें कौन - सी अद्भुत चीज आपकी नजर पड़ी?”
कुमार - मैं इस बाग को पहचान गया।
तेज - (ताज्जुब से) आपने इसे कब देखा था?
कुमार - यह वही बाग है जिसमें मैं लश्कर से लाया गया था। इसी में मेरी आंखें खुली थीं, इसी बाग में जब आंखें खुलीं तो कुमारी चंद्रकान्ता की तस्वीर देखी थी और इसी बाग में खाना भी मिला था जिसे खाते ही मैं बेहोश होकर दूसरे बाग में पहुंचाया गया था। वह देखो, सामने वह छोटा - सा तालाब है जिसमें मैंने स्नान किया था, दोनों तरफ दो जामुन के पेड़ कैसे ऊंचे दिखाई दे रहे हैं।
तेज - हम भी इस बाग की सैर कर लेते तो बेहतर था।
कुमार - चलो घूमो, मैं ख्याल करता हूं कि उस कमरे का दरवाजा भी खुला होगा जिसमें कुमारी चंद्रकान्ता की तस्वीर देखी थी।
चारों आदमी उस बाग में घूमने लगे। तीसरे भाग में इस बाग की पूरी कैफियत लिखी जा चुकी है, दोहराकर लिखना पढ़ने वालों का समय खराब करना है।
कमरे के दरवाजे खुले हुए थे, जो - जो चीजें पहले कुमार ने देखी थीं आज भी नजर पड़ीं। सफाई भी अच्छी थी, किसी जगह गर्द या कतवार का नाम - निशान न था।
पहली दफे जब कुमार इस बाग में आये थे तब इनकी दूसरी ही हालत थी, ताज्जुब में भरे हुए थे, तबीयत घबड़ा रही थी, कई बातों का सोच घेरे हुए था, इसलिए इस बाग की सैर पूरी तरह से नहीं कर सके थे, पर आज अपने ऐयारों के साथ हैं, किसी बात की फिक्र नहीं, बल्कि बहुत से अरमानों के पूरा होने की उम्मीद बंधा रही है। खुशी - खुशी ऐयारों के साथ घूमने लगे। आज इस बाग की कोई कोठरी, कोई कमरा, कोई दरवाजा बंद नहीं है, सब जगहों को देखते, अपने ऐयारों को दिखाते और मौके - मौके पर यह भी कहते जाते हैं - ”इस जगह हम बैठे थे, इस जगह भोजन किया था, इस जगह सो गये थे कि दूसरे बाग में पहुंचे।”
तेजसिंह ने कहा, “दोपहर को भोजन करके सो रहने के बाद आप जिस कमरे में पहुंचे थे, जरूर उस बाग का रास्ता भी कहीं इस बाग में से ही होगा,अच्छी तरह घूम के खोजना चाहिए।”
कुमार - मैं भी यही सोचता हूं।
देवी - (कुमार से) पहली दफे जब आप इस बाग में आये थे तो खूब खातिर की गयी थी, नहाकर पहनने के कपड़े मिले, पूजा - पाठ का सामान दुरुस्त था, भोजन करने के लिए अच्छी - अच्छी चीजें मिली थीं, पर आज तो कोई बात भी नहीं पूछता, यह क्या?
कुमार - यह तुम लोगों के कदमों की बरकत है।
घूमते - घूमते एक दरवाजा इन लोगों को मिला जिसे खोल ये लोग दूसरे बाग में पहुंचे। कुमार ने कहा, “बेशक यह वही बाग है जिसमें दूसरी दफे मेरी आंख खुली थी या जहां कई औरतों ने मुझे गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन ताज्जुब है कि आज किसी की भी सूरत दिखाई नहीं देती। वाह रे चित्रनगर, पहले तो कुछ और था आज कुछ और ही है। खैर चलो इस बाग में चलकर देखें कि क्या कैफियत है, वह तस्वीर का दरबार और रौनक बाकी है या नहीं। रास्ता याद है और मैं इस बाग में बखूबी जा सकता हूं।” इतना कह कुमार आगे हुए और उनके पीछे - पीछे चारों ऐयार भी तीसरे बाग की तरफ बढ़े।
ayushi114mishra
bahut acchi book hai