अपनी जगह पर दीवान हरदयालसिंह को छोड़ तेजसिंह और बद्रीनाथ को साथ लेकर महाराज जयसिंह विजयगढ़ से नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। साथ में सिर्फ पांच सौ आदमियों का झमेला था। एक दिन रास्ते में लगा, दूसरे दिन नौगढ़ के करीब पहुंचकर डेरा डाला।
राजा सुरेन्द्रसिंह को महाराज जयसिंह के पहुंचने की खबर मिली। उसी वक्त अपने मुसाहबों और सरदारों को साथ ले इस्तकबाल के लिए गये और अपने साथ शहर में आये।
महाराज जयसिंह के लिए पहले से ही मकान सजा रखा था, उसी में उनका डेरा डलवाया और ज्याफत के लिए कहा, मगर महाराज जससिंह ने ज्याफत से इंकार किया और कहा कि ”कई वजहों से मैं आपकी ज्याफत मंजूर नहीं कर सकता, आप मेहरबानी करके इसके लिए जिद न करें बल्कि इसका सबब भी न पूछें कि ज्याफत से क्यों इनकार करता हूं।”
राजा सुरेन्द्रसिंह इसका सबब समझ गए और जी में बहुत खुश हुए।
रात के वक्त कुंअर वीरेन्द्रसिंह और बाकी के ऐयार लोग भी महाराज जयसिंह से मिले। कुमार को बड़ी खुशी के साथ महाराज ने गले लगाया और अपने पास बैठाकर तिलिस्म का हाल पूछते रहे। कुमार ने बड़ी खूबसूरती के साथ तिलिस्म का हाल बयान किया।
रात को ही यह राय पक्की हो गयी कि सबेरे सूरज निकलने के पहले तिलिस्मी खोह में सिद्धनाथ बाबा से मिलने के लिए रवाना होंगे। उसी मुताबिक दूसरे दिन तारों की रोशनी रहते ही महाराज जयसिंह, राजा सुरेन्द्रसिंह, कुंअर वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह, पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण और चुन्नीलाल वगैरह हजार आदमी की भीड़भाड़ लेकर तिलिस्मी तहखाने की तरफ रवाना हुए। तहखाना बहुत दूर न था, सूरज निकलते तक उस खोह (तहखाने) के पास पहुंचे।
कुंअर वीरेन्द्रसिंह ने महाराज जयसिंह और राजा सुरेन्द्रसिंह से हाथ जोड़कर अर्ज किया, “जिस वक्त सिद्धनाथ योगी ने मुझे आप लोगों को लाने के लिए भेजा था उस वक्त यह भी कह दिया था कि 'जब वे लोग इस खोह के पास पहुंच जायं तो तब अगर हुक्म दें तो तुम उन लोगों को छोड़कर पहले अकेले आकर हमसे मिल जाना।' अब आप कहें तो योगीजी के कहे मुताबिक पहले मैं उनसे जाकर मिल आऊं।”
महाराज जयसिंह और राजा सुरेन्द्रसिंह ने कहा, “योगीजी की बात जरूर माननी चाहिए, तुम जाओ उनसे मिलकर आओ, तब तक हमारा डेरा भी इसी जंगल में पड़ताहै।”
कुंअर वीरेन्द्रसिंह अकेले सिर्फ तेजसिंह को साथ लेकर खोह में गये। जिस तरह हम पहले लिख आए हैं उसी तरह खोह का दरवाजा खोल कई कोठरियों,मकानों और बागों में घूमते हुए दोनों आदमी उस बाग में पहुंचे जिसमें सिद्धनाथ रहते थे या जिसमें कुमारी चंद्रकान्ता की तस्वीर का दरबार कुमार ने देखा था।
बाग के अंदर पैर रखते ही सिद्धनाथ योगी से मुलाकात हुई जो दरवाजे के पास पहले ही से खड़े कुछ सोच रहे थे। कुंअर वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह को आते देख उनकी तरफ बढ़े और पुकार के बोले, “आप लोग आ गए ?”
पहले दोनों ने दूर से प्रणाम किया और पास पहुंचकर उनकी बात का जवाब दिया :
कुमार - आपके हुक्म के मुताबिक महाराज जयसिंह और अपने पिता को खोह के बाहर छोड़कर आपसे मिलने आया हूं।
सिद्धनाथ - बहुत अच्छा किया जो उन लोगों को ले आये, आज कुमारी चंद्रकान्ता से आप लोग जरूर मिलोगे।
तेज - आपकी कृपा है तो ऐसा ही होगा।
सिद्धनाथ - कहो और तो सब कुशल है? विजयगढ़ और नौगढ़ में किसी तरह का उत्पात तो नहीं हुआ था।
तेज - (ताज्जुब से उनकी तरफ देखकर) हां उत्पात तो हुआ था, कोई जालिमखां नामी दोनों राजाओं का दुश्मन पैदा हुआ था।
सिद्धनाथ - हां यह तो मालूम है, बेशक पंडित बद्रीनाथ अपने फन में बड़ा ओस्ताद है, अच्छी चालाकी से उसे गिरफ्तार किया। खूब हुआ जो वे लोग मारे गये, अब उनके संगी - साथियों का दोनों राजों से दुश्मनी करने का हौसला न पड़ेगा। आओ टहलते - टहलते हम लोग बात करें।
कुमार - बहुत अच्छा।
तेज - जब आपको यह सब मालूम है तो यह भी जरूर मालूम होगा कि जालिमखां कौन था?
सिद्धनाथ - यह तो नहीं मालूम कि वह कौन था मगर अंदाज से मालूम होता है कि शायद नाज़िम और अहमद के रिश्तेदारों में से कोई होगा।
कुमार - ठीक है जो आप सोचते हैं वही होगा।
सिद्धनाथ - महाराज शिवदत्त तो जंगल में चले गये?
कुमार - जी हां, वे तो हमारे पिता से कह गए हैं कि अब तपस्या करेंगे।
सिद्धनाथ - जो हो मगर दुश्मन का विश्वास कभी नहीं करना चाहिए।
कुमार - क्या वह फिर दुश्मनी पर कमर बांधोंगे?
सिद्धनाथ - कौन ठिकाना!
कुमार - अब हुक्म हो तो बाहर जाकर अपने पिता और महाराज जयसिंह को ले आऊं।
सिद्धनाथ - हां मगर पहले यह तो सुन लो कि हमने तुमको उन लोगों से पहले क्यों बुलाया।
कुमार - कहिये।
सिद्धनाथ - कायदे की बात यह है कि जिस चीज को जी बहुत चाहता है अगर वह खो गयी हो और बहुत मेहनत करने या बहुत हैरान होने पर यकायक ताज्जुब के साथ मिल जाय, तो उसका चाहने वाला उस पर इस तरह टूटता है जैसे अपने शिकार पर भूखा बाज। यह हम जानते हैं कि चंद्रकान्ता और तुममें बहुत ज्यादा मुहब्बत है, अगर यकायक दोनों राजाओं के सामने तुम उसे देखोगे या वह तुम्हें देखेगी तो ताज्जुब नहीं कि उन लोगों के सामने तुमसे या कुमारी चंद्रकान्ता से किसी तरह की बेअदबी हो जाय या जोश में आकर तुम उसके पास ही जा खड़े हो तो भी मुनासिब न होगा। इसलिए मेरी राय है कि उन लोगों के पहले ही तुम कुमारी से मुलाकात कर लो। आओ हमारे साथ चले आओ।
अहा, इस वक्त तो कुमार के दिल की हुई! मुद्दत के बाद सिद्धनाथ बाबा की कृपा से आज उस कुमारी चंद्रकान्ता से मुलाकात होगी जिसके वास्ते दिन - रात परेशान थे, राजपाट जिसकी एक मुलाकात पर न्यौछावर कर दिया था, जान तक से हाथ धो बैठे थे। आज यकायक उससे मुलाकात होगी - सो भी ऐसे वक्त पर जब किसी तरह का खुटका नहीं, किसी तरह का रंज या अफसोस नहीं, कोई दुश्मन बाकी नहीं। ऐसे वक्त में कुमार की खुशी का क्या कहना! कलेजा उछलने लगा। मारे खुशी के सिद्धनाथ योगी की बात का जवाब तक न दे सके और उनके पीछे - पीछे रवाना हो गए।
थोड़ी दूर कमरे की तरफ गए होंगे कि एक लौंडी फूल तोड़ती हुई नजर पड़ी जिसे बुलाकर सिद्धनाथ ने कहा, “तू अभी चंद्रकान्ता के पास जा और कह कि कुंअर वीरेन्द्रसिंह तुमसे मुलाकात करने आ रहे हैं, तुम अपनी सखियों के साथ अपने कमरे में जाकर बैठो।”
यह सुनते ही वह लौंडी दौड़ती हुई एक तरफ चली गई और सिद्धनाथ कुमार तथा तेजसिंह को साथ ले बाग में इधर- धर घूमने लगे। कुंअर वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह दोनों अपनी - अपनी फिक्र में लग गए। तेजसिंह को चपला से मिलने की बड़ी खुशी थी। दोनों यह सोचने लगे कि किस हालत में मुलाकात होगी, उससे क्या बातचीत करेंगे, क्या पूछेंगे, वह हमारी शिकायत करेगी तो क्या जवाब देंगे? इसी सोच में दोनों ऐसे लीन हो गये कि फिर सिद्धनाथ योगी से बात न की, चुपचाप बहुत देर तक योगीजी के पीछे - पीछे घूमते रह गये।
घूम - फिरकर इन दोनों को साथ लिए हुए सिद्धनाथ योगी उस कमरे के पास पहुंचे जिसमें कुमारी चंद्रकान्ता की तस्वीर का दरबार देखा था। वहां पर सिद्धनाथ ने कुमार की तरफ देखकर कहा :
“जाओ इस कमरे में कुमारी चंद्रकान्ता और उसकी सखियों से मुलाकात करो, मैं तब तक दूसरा काम करता हूं।”
कुंअर वीरेन्द्रसिंह उस कमरे में अंदर घुसे। दूर से कुमारी चंद्रकान्ता को चपला और चंपा के साथ खड़े दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देखा।
देखते ही कुंवर वीरेन्द्रसिंह कुमारी की तरफ झपटे और चंद्रकान्ता कुमार की तरफ, अभी एक - दूसरे से कुछ दूर ही थे कि दोनों जमीन पर गिरकर बेहोश हो गए।
तेजसिंह और चपला की भी आपस में टकटकी बंधा गई। बेचारी चंपा कुंअर वीरेन्द्रसिंह और कुमारी चंद्रकान्ता की यह दशा देख दौड़ी हुई दूसरे कमरे में गई और हाथ में बेदमुश्क के अर्क से भरी हुई सुराही और दूसरे हाथ में सूखी चिकनी मिट्टी का ढेला लेकर दौड़ी हुई आई।
दोनों के मुंह पर अर्क का छींटा दिया और थोड़ा - सा अर्क उस मिट्टी के ढेले पर डाल हलका लखलखा बनाकर दोनों को सुंघाया।
कुछ देर बाद तेजसिंह और चपला की भी टकटकी टूटी और ये भी कुमार और चंद्रकान्ता की हालत देख उनको होश में लाने की फिक्र करने लगे।
कुंअर वीरेन्द्रसिंह और चंद्रकान्ता दोनों होश में आए, दोनों एक - दूसरे की तरफ देखने लगे, मुंह से बात किसी के नहीं निकलती थी। क्या पूछें, कौन - सी शिकायत करें, किस जगह से बात उठावें, दोनों के दिल में यही सोच था। पेट से बात निकलती थी मगर गले में आकर रुक जाती थी, बातों की भरावट से गला फूलता था, दोनों की आंखें डबडबा आई थीं बल्कि आंसू की बूंदें बाहर गिरने लगीं।
घंटों बीत गये, देखा - देखी में ऐसे लीन हुए कि दोनों को तनोबदन की सुधा न रही। कहां हैं, क्या कर रहे हैं, सामने कौन है, इसका ख्याल तक किसी को नहीं।
कुंअर वीरेन्द्रसिंह और कुमारी चंद्रकान्ता के दिल का हाल अगर कुछ मालूम है तो तेजसिंह और चपला को, दूसरा कौन जाने, कौन उनकी मुहब्बत का अंदाजा कर सके, सो वे दोनों भी अपने आपे में नहीं थे। हां, बेचारी चंपा इन लोगो का हद दर्जे तक पहुंचा हुआ प्रेम देखकर घबरा उठी, जी में सोचने लगी कि कहीं ऐसा न हो कि इसी देखा - देखी में इन लोगों का दिमाग बिगड़ जाय। कोई ऐसी तरकीब करनी चाहिए कि जिससे इनकी यह दशा बदले और आपस में बातचीत करने लगें। आखिर कुमारी का हाथ पकड़ चंपा बोली -
“कुमारी, तुम तो कहती थीं कि कुमार जिस रोज मिलेंगे उनसे पूछूंगी कि वनकन्या किसका नाम रखा था? वह कौन औरत है? उससे क्या वादा किया है? अब किसके साथ शादी करने का इरादा है? क्या वे सब बातें भूल गईं, अब इनसे न कहोगी?”
किसी तरह किसी की लौ तभी तक लगी रहती है जब तक कोई दूसरा आदमी किसी तरह की चोट उसके दिमाग पर न दे और उसके ध्यान को छेड़कर न बिगाड़े इसीलिये योगियों को एकांत में बैठना कहा है। कुंअर वीरेन्द्रसिंह और कुमारी चंद्रकान्ता की मुहब्बत बाजारू न थी, वे दोनों एक रूप हो रहे थे; दिल ही दिल में अपनी जुदाई का सदमा एक ने दूसरे से कहा और दोनों समझ गए मगर किसी पास वाले को मालूम न हुआ, क्योंकि जुबान दोनों की बंद थी। हां चंपा की बात ने दोनों को चौंका दिया, दोनों की चार आंखें जो मिल - जुलकर एक हो रही थीं हिल - डोलकर नीचे की तरफ हो गईं और सिर नीचा किए हुए दोनों कुछ - कुछ बोलने लगे। क्या जाने वे दोनों क्या बोलते थे और क्या समझते, उनकी वे ही जानें। बेसिर - पैर की टूटी - फूटी पागलों की - सी बातें कौन सुने, किसके समझ में आए। न तो कुमारी चंद्रकान्ता को कुमार से शिकायत करते बनी और न कुमार उनकी तकलीफ पूछ सके।
वे दोनों पहरों आमने - सामने बैठे रहते तो शायद कहीं जुबान खुलती, मगर यहां दो घंटे बाद सिद्धनाथ योगी ने दोनों को फिर अलग कर दिया। लौंडी ने बाहर से आकर कहा, “कुमार, आपको सिद्धनाथ बाबाजी ने बहुत जल्द बुलाया है, चलिए देर मत कीजिए।”
कुमार की यह मजाल न थी कि सिद्धनाथ योगी की बात टालते, घबराकर उसी वक्त चलने को तैयार हो गए। दोनों के दिल की दिल ही में रह गई।
कुमारी चंद्रकान्ता को उसी तरह छोड़ कुमार उठ खड़े हुए, कुमारी को कुछ कहा ही चाहते थे, तब तक दूसरी लौंडी ने पहुंचकर जल्दी मचा दी। आखिर कुंअर वीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह उस कमरे के बाहर आए। दूर से सिद्धनाथ बाबा दिखाई पड़े जिन्होंने कुमार को अपने पास बुलाकर कहा -
“कुमार, हमने तुमको यह नहीं कहा था कि दिन भर चंद्रकान्ता के पास बैठे रहो। दोपहर हुआ चाहती है, जिन लोगों को खोह के बाहर छोड़ आए हो वे बेचारे तुम्हारी राह देखते होंगे।”
कुमार - (सूरज की तरफ देखकर) जी हां दिन तो...
बाबा -  दिन तो क्या?
कुमार - (सकपकाये से होकर) देर तो जरूर कुछ हो गई, अब हुक्म हो तो जाकर अपने पिता और महाराज जयसिंह को जल्दी से ले आऊं?
बाबा - हां जाओ उन लोगों को यहां ले आओ। मगर मेरी तरफ से दोनों राजाओं को कह देना कि इस खोह के अंदर उन्हीं लोगों को अपने साथ लायें जो कुमारी चंद्रकान्ता को देख सकें या जिसके सामने वह हो सके।
कुमार - बहुत अच्छा।
बाबा - जाओ अब देर न करो।
कुमार - प्रणाम करता हूं।
बाबा - इसकी कोई जरूरत नहीं, क्योंकि आज ही तुम फिर लौटोगे।
तेज - दण्डवत।
बाबा - तुमको तो जन्म भर दण्डवत करने का मौका मिलेगा, मगर इस वक्त इस बात का ख्याल रखना कि तुम लोगों की जबानी कुमारी से मिलने का हालखोह के बाहर वाले न सुनें और आती वक्त अगर दिन थोड़ा रहे तो आज मत आना।
तेज - जी नहीं हम लोग क्यों कहने लगे!
बाबा - अच्छा जाओ।
दोनों आदमी सिद्धनाथ बाबा से बिदा हो उसी मालूमी राह से घूमते - फिरते खोह के बाहर आए।

 

 


 

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel