ऊपर के बयान में जो कुछ लिख आये हैं उस बात को कई दिन बीत गये, आज भूतनाथ को हम फिर मायारानी के पास बैठे हुए देखते हैं। रंग-ढंग से जाना जाता है कि भूतनाथ की कार्रवाइयों से मायारानी बहुत ही प्रसन्न है और वह भूतनाथ को कद्र और इज्जत की निगाह से देखती है। इस समय मायारानी के सामने सिवाय भूतनाथ के कोई दूसरा आदमी मौजूद नहीं है।
मायारानी - इसमें कोई सन्देह नहीं कि तुमने मेरी जान बचा ली।
भूतनाथ - गोपालसिंह को धोखा देकर गिरफ्तार करने में मुझे बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आज दो दिन से केवल पानी के सहारे मैं जान बचाये हूं। अभी तक तो कोई ऐसी बात नहीं हुई जिससे कमलिनी या राजा वीरेन्द्रसिंह के पक्ष वाले किसी को मुझ पर शक हो। राजा गोपालसिंह के साथ केवल देवीसिंह था जिसको मैंने किसी जरूरी काम के लिए रोहतासगढ़ जाने की सलाह दे दी और उसके जाने के बाद गोपालसिंह को बातों में उलझाकर दारोगा वाले मकान में ले जाकर कैद कर दिया।
मायारानी - तो उसे तुमने खत्म ही क्यों न कर दिया?
भूतनाथ - केवल तुम्हारे विश्वास के लिए उसे जीता रख छोड़ा है।
मायारानी - (हंसकर) केवल उसका सिर ही काट लाने से मुझे पूरा विश्वास हो जाता! पर जो हुआ सो हुआ अब उसके मारने में विलम्ब न करना चाहिए!
भूतनाथ - ठीक है, जहां तक हो, अब इस काम में जल्दी करना ही उचित है क्योंकि अबकी दफे यदि वह छूट जायगा तो मेरी बड़ी दुर्गति होगी।
मायारानी - नहीं-नहीं, अब वह किसी तरह नहीं बच सकता। मैं तुम्हारे साथ चलती हूं और अपने हाथ से उसका सिर काटकर सदैव के लिए टंटा मिटाती हूं। घंटे भर और ठहर जाओ, अच्छी तरह अंधेरा हो जाने पर ही यहां से चलना उचित होगा, बल्कि तब तक तुम भोजन भी कर लो क्योंकि दो दिन के भूखे हो। यह तो कहो कि किशोरी और कामिनी को तुमने कहां छोड़ा?
भूतनाथ - किशोरी और कामिनी को मैं एक ऐसी खोह में रख आया हूं जहां से सिवाय मेरे कोई दूसरा उन्हें निकाल ही नहीं सकता। बहुत दिनों से मैं स्वयं उस खोह में रहता हूं और मेरे आदमी भी अभी तक वहां मौजूद हैं। अब केवल एक बात का खुटका मेरे जी में लगा हुआ है।
मायारानी - वह क्या?
भूतनाथ - यदि कमलिनी मुझसे पूछेगी कि किशोरी और कामिनी को कहां रख आये तो मैं क्या जवाब दूंगा यदि यह कहूंगा कि रोहतासगढ़ तुम्हारे तालाब वाले मकान में रख आया हूं तो बहुत जल्द झूठा बनूंगा और सब भंडा फूट जायगा।
मायारानी - हां सो तो ठीक है, मगर तुम चालाक हो, इसके लिए भी कोई न कोई बात जरूर सोच लोगे।
भूतनाथ - खैर, जो होगा देखा जायगा। अब कहिये कि आपका काम तो मैंने कर दिया अब इसका इनाम मुझे क्या मिलता है आपका कौल है कि जो मांगोगे वही मिलेगा।
मायारानी - हां-हां, जो कुछ तुम मांगोगे वही मिलेगा। जरा दारोगा वाले मकान में चलकर उसे मारकर निश्चिन्त हो जाऊं तो तुम्हें मुंहमांगा इनाम दूं। अच्छा यह तो कहो कि तुम चाहते क्या हो?
भूतनाथ - दारोगा वाला मकान मुझे दे दीजिए और उसमें जो अजायबघर है उसकी ताली मेरे हवाले कर दीजिए।
मायारानी - (चौंककर) उस अजायबघर का हाल तुम्हें कैसे मालूम हुआ?
भूतनाथ - कमलिनी की जुबानी मैंने सुना था कि वह भी तिलिस्म ही है और उसमें बहुत अच्छी-अच्छी चीजें हैं।
मायारानी - ठीक है मगर उसमें बहुत-सी ऐसी चीजें हैं जो यदि मेरे दुश्मनों के हाथ लगें तो आफत ही हो जाय।
भूतनाथ - मैं उस जगह को अपने लिए चाहता हूं किसी दूसरे के लिए नहीं, मेरे रहते कोई दूसरा आदमी उस मकान से फायदा नहीं उठा सकता।
मायारानी - (देर तक देखकर) खैर मैं दूंगी क्योंकि तुमने मुझ पर भारी अहसान किया है, मगर उस ताली को बड़ी हिफाजत से रखना। यद्यपि उसका पूरा-पूरा हाल मुझे मालूम नहीं है तथापि मैं समझती हूं कि वह कोई अनूठी चीज है क्योंकि गोपालसिंह उसे बड़े यत्न से अपने पास रखता था, हां अगर तुम अजायबघर की ताली मुझसे न लो तो मैं बहुत ज्यादा दौलत तुम्हें देने के लिए तैयार हूं।
भूतनाथ - आप तरद्दुद न कीजिये, उस चीज को आपका कोई दुश्मन मेरे कब्जे से नहीं ले जा सकता और आप देख लेंगी कि महीने भर के अन्दर ही अन्दर मैं आपके दुश्मनों का नाम-निशान मिटा दूंगा और खुल्लमखुल्ला अपनी प्यारी स्त्री को लेकर उस मकान में रहकर आपकी बदौलत खुशी से जिन्दगी बिताऊंगा।
मायारानी - (ऊंची सांस लेकर) अच्छा, दूंगी।
भूतनाथ - तो अब उसके देने में विलम्ब क्या है?
मायारानी - बस, उस काम से निपट जाने की देर है।
भूतनाथ - वहां भी केवल आपके चलने की ही देर है।
मायारानी - मैं कह चुकी हूं कि तुम भोजन कर लो, तब तक अंधेरा भी हो जाता है।
मायारानी ने घण्टी बजाई, जिसकी आवाज सुनते ही कई लौंडियां दौड़ी हुई आईं और हाथ जोड़कर सामने खड़ी हो गईं। मायारानी ने भूतनाथ के लिए भोजन का सामान ठीक करने को कहा, और यह बहुत जल्द हो गया। भूतनाथ ने भोजन किया और अंधेरा होने पर मायारानी के साथ दारोगा वाले मकान में चलने के लिए तैयार हुआ। मायारानी ने धनपत को भी साथ लिया और तीनों आदमी चेहरे पर नकाब डाले घोड़ों पर सवार हो वहां से रवाना हुए तथा बात-की-बात में दारोगा वाले मकान के पास जा पहुंचे।1 पेड़ों के साथ घोड़ों को बांध तीनों आदमी उस मकान के अन्दर चले। हम ऊपर लिख आये हैं कि मायारानी ने इस मकान की ताली भूतनाथ को दे दी थी और मकान का भेद भी उसे बता दिया था। इसलिए भूतनाथ सबके आगे हुआ और उसके पीछे धनपत और मायारानी जाने लगीं। भूतनाथ उस मकान के दाहिनी तरफ वाले दालान में पहुंचा, जिसमें एक कोठरी बन्द दरवाजे की थी, मगर यह नहीं जान पड़ता था कि यह दरवाजा क्योंकर खुलेगा या ताली लगाने की जगह कहां है। दरवाजे के पास पहुंचकर भूतनाथ ने बटुए में से एक ताली निकाली और दरवाजे के दाहिनी तरफ की दीवार में जो लकड़ी की बनी हुई थी, पैर से धक्का देना शुरू किया। चार-पांच ठोकरों के बाद लकड़ी का एक छोटा-सा तख्ता अलग हो
1. इस मकान का जिक्र कई दफे आ चुका है, नानक इसी मकान में बाबाजी से मिला था।
गया, और उसके अन्दर हाथ जाने लायक सूराख दिखाई दिया। ताली लिए हुए उसी छेद के अन्दर भूतनाथ ने हाथ डाला और किसी गुप्त ताले में ताली लगाई। कोठरी का दरवाजा तुरत खुल गया और तीनों अन्दर चले गये। भीतर जाकर वह दरवाजा पुनः बन्द कर लिया, जिससे वह लकड़ी का टुकड़ा भी ज्यों-का-त्यों बराबर हो गया, जिसके अन्दर हाथ डालकर भूतनाथ ने ताला खोला था।
कोठरी के अन्दर बिल्कुल अंधेरा था इसलिए भूतनाथ ने अपने बटुए में से सामान निकालकर मोमबत्ती जलाई। अब मालूम हुआ कि कोठरी के बीचोंबीच में लोहे का एक गोल तख्ता जमीन में जड़ा हुआ है जिस पर लगभग चार या पांच आदमी खड़े हो सकते थे। उस तख्ते के बीचोंबीच में तीन हाथ ऊंचा लोहे का एक खम्भा था और उसके ऊपर एक चर्खी लगी हुई थी। तीनों आदमी उस खम्भे को थामकर खड़े हो गये और भूतनाथ ने दाहिने हाथ से चर्खी को घुमाना शुरू किया, साथ ही घड़घड़ाहट की आवाज आई और खम्भे के सहित वह लोहे का टुकाड़ा जमीन के अन्दर घुसने लगा। यहां तक कि लगभग बीस हाथ के नीचे जाकर जमीन पर ठहर गया और तीनों आदमी उस पर से उतर पड़े। अब ये तीनों एक लम्बी-चौड़ी कोठरी के अन्दर घुसे। कोठरी के पूरब तरफ दीवार में एक सुरंग बनी हुई थी, पश्चिम तरफ कुआं था, उत्तर तरफ चार सन्दूक पड़े हुए थे और दक्षिण तरफ एक जंगलेदार कोठरी बनी हुई थी, जिसके अन्दर एक आदमी जमीन पर औंधा पड़ा हुआ था और पास की जमीन खून से तरबतर हो रही थी। उसे देखते ही भूतनाथ चौंककर बोला –
भूतनाथ - ओफ, मालूम होता है कि इसने सिर पटककर जान दे दी (मायारानी की तरफ देखके) क्योंकि तुम्हारा सामना करना इसे मंजूर न था!
मायारानी - शायद ऐसा ही हो! आखिर मैं भी तो इसे मारने को ही आई थी। अच्छा हुआ, इसने अपनी जान आप ही दे दी, मगर अब यह क्योंकर निश्चय हो कि यह अभी जीता है या मर गया?
धनपत - (गौर से गोपालसिंह को देखकर) सांस लेने की आहट नहीं मालूम होती, जहां तक मैं समझती हूं इसमें दम नहीं है।
भूतनाथ - (मायारानी से) आप इस जंगले में जाकर इसे अच्छी तरह देखिये, कहिये तो ताला खोलूं।
मायारानी - नहीं-नहीं, मुझे अब भी इसके पास जाते डर मालूम होता है, कहीं नकल न किये हो! (गोपालसिंह को अच्छी तरह देखके) वह तिलिस्मी खंजर इसके पास नहीं दिखाई देता।
भूतनाथ - वह खंजर देवीसिंह ने एक सप्ताह के लिए इससे मांग लिया था, और इस समय उसी के पास है।
मायारानी - तब तो तुम बेखौफ इसके अन्दर जा सकते हो, अगर जीता भी होगा तो कुछ न कर सकेगा, क्योंकि इसका हाथ खाली है और तुम्हारे पास तिलिस्मी खंजर है!
भूतनाथ - बेशक, मैं इसके पास जाने में नहीं डरता।
उस जंगले के दरवाजे में एक ताला लगा हुआ था जिसे भूतनाथ ने खोला, और अन्दर जाकर राजा गोपालसिंह की लाश को सीधा किया, तब मायारानी की तरफ देखकर कहा, “अब इसमें दम नहीं है, आप बेखौफ चली आवें और इसे देखें।” मायारानी धनपत का हाथ थामे हुए उस कोठरी के अन्दर गई और अच्छी तरह गोपालसिंह को देखा। सिर फट जाने और खून निकलने के साथ ही दम निकल जाने से गोपालसिंह का चेहरा कुछ भयानक-सा हो गया था। मायारानी को जब निश्चय हो गया कि इसमें दम नहीं है, तब वह बहुत खुश हुई और भूतनाथ की तरफ देखकर बोली, “अब मैं इस दुनिया में निश्चिन्त हुई। मगर इस लाश का भी नाम-निशान मिटा देना ही उचित है।”
भूतनाथ - यह कौन-सी बड़ी बात है। इसे ऊपर ले चलिए, और जंगल में से लकड़ियां बटोरकर फूंक दीजिए।
मायारानी - नहीं-नहीं, रात के वक्त जंगल में विशेष रोशनी होने से ताज्जुब नहीं कि किसी को शक हो या राजा वीरेन्द्रसिंह का कोई ऐयार ही इधर आ निकले और देख ले।
भूतनाथ - खैर, जाने दीजिए, इसकी भी एक सहज तरकीब बताता हूं।
मायारानी - वह क्या?
भूतनाथ - इसे ऊपर ले चलिए और टुकड़े-टुकड़े कर नहर में डाल दीजिए, बात की बात में मछलियां खा जायेंगी।
मायारानी - हां, यह राय बहुत ठीक है। अच्छा, इसे ले चलो।
भूतनाथ ने उस लाश को उठाकर उस लोहे के तख्ते पर रखा और तीनों आदमी खम्भे को थामकर खड़े हो गए। भूतनाथ ने उस चर्खी को उल्टा घुमाना शुरू किया। बात-की-बात में वह तख्ता ऊपर की जमीन के साथ बराबर मिल गया। भूतनाथ ने अन्दर से कोठरी का दरवाजा खोला और उस लाश को बाहर दालान में लाकर पटक दिया। इसके बाद उस कोठरी का दरवाजा जिस तरह पहले खोला था, उसी तरह बन्द कर दिया। मायारानी के इशारे से धनपत ने कमर से खंजर निकालकर लाश के टुकड़े किए और हड्डी और मांस नहर में डालने के बाद, नहर से जल लेकर जमीन धो डाली। इसके बाद हर तरह से निश्चिन्त हो अपने-अपने घोड़े पर सवार होकर तीनों आदमी तिलिस्मी बाग की तरफ रवाना हुए और आधी रात जाने के पहले ही वहां पहुंचकर भूतनाथ ने कहा, “बस लाइए, अब मेरा इनाम दे दीजिये।”
मायारानी - हां-हां, लीजिए, इनाम देने के लिए मैं तैयार हूं। (मुस्कुराकर) लेकिन भूतनाथ, अगर इनाम में अजायबघर की ताली मैं तुम्हें न दूं, तो तुम क्या करोगे क्योंकि मेरा काम तो हो ही चुका है!
भूतनाथ - करेंगे क्या, बस अपनी जान दे देंगे!
मायारानी - अपनी जान दे दोगे तो मेरा क्या बिगड़ेगा?
भूतनाथ - (खिलखिलाकर हंसने के बाद) क्या तुम समझती हो कि मैं सहज ही में अपनी जान दे दूंगा नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। पहले तो मैं कमलिनी के पास जाकर अपना कसूर साफ-साफ कह दूंगा, इसके बाद तुम्हारे सब भेद खोल दूंगा, जो तुमने मुझे बताये हैं। इतना ही नहीं, बल्कि तुम्हारी जान लेकर तब कमलिनी के हाथ से मारा जाऊंगा। इस बाग का, दारोगा वाले मकान का, और मनोरमा के मकान का, रत्ती-रत्ती भेद मुझे मालूम हो चुका है और तुम खुद समझ सकती हो कि मैं कहां तक उपद्रव मचा सकता हूं! तुम यह भी न सोचना कि इस समय इस बाग में रहने के कारण मैं तुम्हारे कब्जे में हूं, क्योंकि वह...।
मायारानी - बस-बस, बहुत जोश में मत आओ, मैं दिल्लगी के तौर पर इतना कह गई, और तुम सच ही समझ गये! इस बात का पूरा-पूरा विश्वास रखना कि मायारानी वादा पूरा करने से हटने वाली नहीं है और इनाम देने में भी किसी से कम नहीं है। बैठो, मैं अभी अजायबघर की ताली ला देती हूं।
भूतनाथ - लाइए, और मुझे भी अपने कौल का सच्चा ही समझिये, ऐसे काम कर दिखाऊंगा कि खुश हो जाइएगा और ताज्जुब कीजिएगा।
मायारानी - देखो रंज न होना, मैं तुमसे एक बात और पूछती हूं।
भूतनाथ - (हंसकर) पूछिये-पूछिये।
मायारानी - अगर मैं धोखा देकर कोई दूसरी चीज तुम्हें दे दूं, तो तुम कैसे समझोगे कि अजायबघर की ताली यही है?
भूतनाथ - भूतनाथ को निरा मौलवी न समझ लेना। उस ताली को जो किताब की सूरत में है और जिसे दोनों तरफ से भौंरो ने घेरा हुआ है, भूतनाथ अच्छी तरह पहचानता है।
मायारानी - शाबाश, तुम बहुत ही होशियार और चालाक हो, किसी के फरेब में आने वाले नहीं, मालूम होता है कि इतनी जानकारी तुम्हें उसी कम्बख्त कमलिनी की बदौलत...?
भूतनाथ - जी हां, बेशक ऐसा ही है, मगर हाय! जिस कमलिनी ने मेरी इतनी इज्जत की, मैं आपके लिए उसी के साथ दुश्मनी कर रहा हूं और सो भी केवल इसी अजायबघर की ताली के लिए!
मायारानी - अजायबघर की ताली तो तुम्हारी इच्छानुसार तुम्हें देती ही हूं इसके बाद इससे भी बढ़कर एक ऐसी चीज तुम्हें दूंगी जिसे देखकर तुम भी कहोगे कि मायारानी ने कुछ दिया।
भूतनाथ - बेशक मुझे आपसे बहुत-कुछ उम्मीद है।
भूतनाथ को उसी जगह बैठाकर मायारानी कहीं चली गई, मगर आधे घण्टे के अन्दर एक जड़ाऊ डिब्बा हाथ में लिए हुए आ पहुंची और वह डिब्बा भूतनाथ के सामने रखकर बोली, “लीजिए, वह अनोखी चीज हाजिर है।” भूतनाथ ने डिब्बा खोला। उसके अन्दर गुटके की तरह एक छोटी-सी पुस्तक थी जिसे उलट-पुलटकर भूतनाथ ने अच्छी तरह देखा और तब कहा, “बेशक यही है। अच्छा, अब मैं जाता हूं, जरा कमलिनी से मिलकर खबर लूं कि उधर क्या हो रहा है।”
भूतनाथ अजायबघर की ताली लेकर मायारानी से बिदा हुआ और तिलिस्मी बाग के बाहर होकर खुशी-खुशी उत्तर की तरफ चल निकला मगर थोड़ी ही दूर जाकर खड़ा हो गया और इधर-उधर देखने लगा। पेड़ की आड़ में से दो आदमी निकलकर भूतनाथ के सामने आये और एक ने आगे बढ़कर पूछा, “टेम गिन चाप'1 इसके जवाब में भूतनाथ ने कहा, “चेह2!” इतना सुनकर उस आदमी ने भूतनाथ को गले से लगा लिया। इसके बाद तीनों आदमी एक साथ आगे की तरफ रवाना हुए।
1. (टेम गिन चाप) मिली वह ताली
2. (चेह) हां।

 

 


 

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel