लीला की जुबानी दोनों नकाबपोशों, सिपाहियों और धनपत का हाल सुनकर मायारानी बहुत ही उदास और परेशान हो गई। वह आशा जो तिलिस्मी दरवाजा बन्द करने और बेहोशी का अद्भुत धूरा छिड़कने पर उसे बंधी थी, बिल्कुल जाती रही। तिलिस्म में जाकर तिलिस्मी दरवाजे को बन्द करना, तिलिस्मी दवा पीना और लीला को पिलाना, बेहोशी की बुकनी फूलों के गमलों में डालना - सब बिल्कुल ही व्यर्थ हो गया। धनपत दोनों नकाबपोशों के कब्जे में पड़ गया और सब सिपाही भी सहज ही में बाग के बाहर हो गये। इस समय उन दोनों नकाबपोशों की कार्रवाइयों ने उसे इतना बदहवास कर दिया कि वह अपने बचाव की कोई अच्छी सूरत सोच नहीं सकती थी। आखिर वह हर तरह से दुःखी होकर फिर उसी तहखाने के अन्दर गई जिसमें पहली दफा जाकर बाग के दूसरे दर्जे का दरवाजा तिलिस्मी रीति से बन्द किया था। हम ऊपर लिख आये हैं कि वहां दीवार में बिना दरवाजे की पांच आलमारियां थीं और एक आलमारी में तांबे के बहुत से डिब्बे रक्खे थे। इस समय मायारानी ने उन्हीं डिब्बों को खोल-खोलकर देखना शुरू किया। ये डिब्बे छोटे और बड़े हर प्रकार के थे। कई डिब्बे खोल-खोलकर देखने के बाद मायारानी ने एक डिब्बा खोला जिसका पेटा एक हाथ से कम न होगा। उस डिब्बे में एक हाथीदांत का तमंचा बारह अंगुल का और छोटी-छोटी बहुत-सी गोलियां रक्खी हुई थीं। उन गोलियों का रंग लाल था, और उनके अलावा एक ताम्रपत्र भी उस डिब्बे के अन्दर था। मायारानी इस डिब्बे को लेकर वहां से रवाना हुई और तहखाने का दरवाजा बन्द करती हुई अपने स्थान पर उस जगह पहुंची जहां उसकी लौंडियां उसकी राह देख रही थीं। उसने सब लौंडियों के सामने ही उस डिब्बे को खोला और ताम्रपत्र हाथ में लेकर पढ़ने लगी, जब पूरी तरह पढ़ चुकी तो लीला की तरफ देखकर बोली, “तू देखती है कि मैं किस बला में फंस गई हूं।'
लीला - जी हां, मैं बखूबी देख रही हूं। दोनों नकाबपोशों की तरफ जब ध्यान देती हूं तो कलेजा कांप जाता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अब कोई भारी उपद्रव उठने वाला है क्योंकि नकाबपोशों की बदौलत इस बाग के सिपाही भी बागी हो गए हैं।
मायारानी - बेशक ऐसा ही है और ताज्जुब नहीं कि वे सिपाही लोग जो इस समय मेरे पंजे से निकल गए हैं मेरे बाकी के फौजी सिपाहियों को भी भड़कावें।
लीला - इसमें कुछ भी सन्देह नहीं, बल्कि इन सिपाहियों की बदौलत आपकी रिआया भी बागी हो जायगी और तब जान बचाना मुश्किल हो जायगा। अफसोस, आपने व्यर्थ ही अपने दोनों भेद मुझसे छिपा रक्खे, नहीं तो मैं इस विषय में कुछ राय देती!
मायारानी - (ताज्जुब से) दोनों भेद कौन से?
लीला - एक तो यही धनपत वाला।
मायारानी - हां, ठीक है, और दूसरा कौन?
लीला - (मायारानी के कान की तरफ झुककर धीरे से) राजा गोपालसिंह वाला, जिन्हें भूतनाथ की मदद से आपने मार डाला!
लीला की बात सुनकर मायारानी चौंक पड़ी, वह अपनी जगह से उठ खड़ी हुई और लीला का हाथ पकड़ के किनारे ले जाकर धीरे-से बोली, “देख लीला, तू केवल मेरी लौंडियों की सरदार ही नहीं बल्कि बचपन की साथी और मेरी सखी भी है। सच बता, गोपालसिंह वाला भेद तुझे कैसे मालूम हुआ?
लीला - आप जानती ही हैं कि मुझे कुछ ऐयारी का भी शौक है।
मायारानी - हां, मैं खूब जानती हूं कि तू ऐयारी भी कर सकती है लेकिन इस किस्म का काम मैंने तुझसे कभी लिया नहीं।
लीला - यह मेरी बदकिस्मती थी, नहीं तो मैं अब तक ऐयारा की पदवी पा चुकी होती।
मायारानी - ठीक है, खैर, तो इससे मालूम हुआ कि तूने ऐयारी से गोपालसिंह वाला भेद मालूम कर लिया?
लीला - जी हां, ऐसा ही है। मैंने ऐयारी से और भी बहुत से भेद मालूम कर लिये हैं जिनकी खबर आपको भी नहीं और जिनको इस समय कहना मैं उचित नहीं समझती, मगर शीघ्र ही उस विषय में मैं आपसे बातचीत करूंगी। इस समय तो मुझे केवल इतना ही कहना है कि किसी तरह अपनी जान बचाने की फिक्र कीजिये क्योंकि मुझे भूतनाथ की दोस्ती पर शक है।
मायारानी - क्या तू समझती है कि भूतनाथ ने मुझे धोखा दिया?
लीला - जी हां, बल्कि मैं तो यही समझती हूं कि राजा गोपालसिंह मारे नहीं गये, बल्कि जीते हैं।
मायारानी - अगर ऐसा है तो बड़ा ही गजब हो जायगा। मगर इसका कोई सबूत भी है?
लीला - आज तो नहीं, मगर कल तक मैं इसका सबूत आपको दे सकूंगी।
मायारानी - अफसोस, अफसोस! मैं इस समय किले में जाकर अपने दीवान से राय लेने वाली थी मगर अब तो कुछ और ही सोचना पड़ा।
लीला - (उस डिब्बे की तरफ इशारा करके जो अभी तिलिस्मी तहखाने में से मायारानी लाई थी) पहले यह बताइये कि इस डिब्बे को आप किस नीयत से लाई हैं यह हाथीदांत का तमंचा कैसा है और ये गोलियां क्या काम दे सकती हैं?
मायारानी - ये गोलियां इसी तमंचे में रखकर चलाई जायंगी। इसके चलाने में किसी तरह की आवाज नहीं होती और गोली भी आध कोस तक जा सकती है। जब यह गोली किसी के बदन पर लगेगी या जमीन पर गिरेगी तो एक आवाज देकर फट जायगी और इसके अन्दर से बहुत-सा जहरीला धुआं निकलेगा। वह धुआं जिसकी नाक में जायगा वह आदमी फौरन ही बेहोश हो जायगा। अगर हजार आदमियों की भीड़ आ रही हो तो उन सभी को बेहोश करने के लिए केवल दस-पांच गोलियां काफी हैं।
लीला - बेशक यह बहुत अच्छी चीज है और ऐसे समय में आपको बड़ा काम दे सकती है, मगर मैं समझती हूं कि उस डिब्बे में पांच सौ से ज्यादा गोलियां न होंगी, इसके बाद कदाचित् वह ताम्रपत्र कुछ काम दे सके जो उस डिब्बे में है और जिसे आपने लोगों के सामने पढ़ा था।
मायारानी - वाह तुम बहुत समझदार हो। बेशक ऐसा ही है। इस ताम्रपत्र में उन गोलियों के बनाने की तरकीब लिखी है। इस तिलिस्म में ऐसी हजारों चीजें हैं मगर लाचार हूं कि तिलिस्म का पूरा हाल मुझे मालूम नहीं है बल्कि चौथे दर्जे के विषय में तो मैं कुछ भी नहीं जानती। फिर भी जो कुछ मैं जानती हूं या जहां तक तिलिस्म में मैं जा सकती हूं वहां ऐसी और भी कितनी ही चीजें हैं जो समय पर मेरे काम आ सकती हैं।
लीला - अब यही समय है कि उन चीजों को लेकर आप यहां से चल दीजिये क्योंकि इस बाग तथा आपके राज्य पर अब आफत आना ही चाहती है। मैंने सुना है कि राजा वीरेन्द्रसिंह की बेशुमार फौज जमानिया की तरफ आ रही है, बल्कि यों कहना चाहिए कि आज-कल में पहुंचना ही चाहती है।
मायारानी - हां, यह खबर मैंने भी सुनी है। यदि गोपालसिंह का और धनपत का मामला न बिगड़ा होता तो मैं मुकाबला करने के लिए तैयार हो जाती, परन्तु इस समय तो मुझे अपनी रिआया में से किसी का भी भरोसा नहीं।
लीला - भरोसे के साथ-ही-साथ आप समझ रखिए कि आप अपने किसी नौकर पर हकूमत की लाल आंख भी अब नहीं दिखा सकतीं। मगर इन बातों में वृथा देर हो रही है। इस विषय को बहुत जल्द तय कर लेना चाहिए कि अब क्या करना और कहां जाना मुनासिब होगा।
मायारानी - हां, ठीक है मगर इसके भी पहले मैं तुमसे यह पूछती हूं कि तुम इस मुसीबत में मेरा साथ देने के लिए कब तक तैयार रहोगी?
लीला - जब तक मेरी जिन्दगी है या जब तक आप मुझ पर भरोसा करेंगी।
मायारानी - यह जवाब तो साफ नहीं है, बल्कि टेढ़ा है।
लीला - इस पर आप अच्छी तरह गौर कीजिएगा मगर यहां से निकल चलने के बाद।
मायारानी - अच्छा, यह तो बताओ कि मेरी और लौंडियों का क्या हाल है?
लीला - आपकी लौंडियां केवल चार-पांच ऐसी हैं जिन पर मैं भरोसा कर सकती हूं, बाकी लौंडियों के विषय में मैं कुछ भी नहीं कह सकती और न उनके दिल का हाल ही जाना जा सकता है।
मायारानी - (ऊंची सांस लेकर) हाय, यहां तक नौबत पहुंच गई! यह सब मेरे पापों का फल है। अच्छा जो होगा देखा जायगा। इस अनूठे तमंचे और गोलियों को मैं सम्हालती हूं और थोड़ी देर के लिए पुनः तिलिस्मी तहखाने में जाकर देखती हूं कि मेरे काम की ऐसी कौन-सी चीज है जिसे सफर में अपने साथ ले जा सकूं। जो कुछ हाथ लगे सो ले आती हूं और बहुत जल्द तुमको और उन लौंडियों को साथ लेकर निकल भागती हूं जिन पर तुम भरोसा रखती हो। कोई हर्ज नहीं, इस गई-गुजरी हालत में भी मैं एक दफा लाखों दुश्मनों को जहन्नुम पहुंचाने की हिम्मत रखती हूं!
इसके जवाब में पीछे की तरफ से किसी गुप्त मनुष्य ने कहा - “बेशक-बेशक, तुम मरते-मरते भी हजारों घर चौपट करोगी!”

 

 


 

Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel