अब हम अपने पाठकों को पुनः कमलिनी के तिलिस्मी मकान की तरफ ले चलते हैं जहां बेचारी तारा को बदहवास और घबड़ाई हुई छोड़ आये हैं।
हम उस बयान में लिख चुके हैं कि छत के ऊपर जो पुतली थी उसे तेजी के साथ नाचते हुए देखकर तारा घबड़ा गई और बदहवास होकर कमलिनी को याद करने लगी, इसका सबब यह था कि यद्यपि बेचारी तारा उस तिलिस्मी मकान का पूरा-पूरा हाल नहीं जानती थी मगर फिर भी बहुत से भेद उसे मालूम थे और कमलिनी से सुन चुकी थी कि जब इस मकान पर कोई आफत आने वाली होगी तब वह पुतली (जिसके नाचने का हाल लिखा जा चुका है) तेजी के साथ घूमने लगेगी, उस समय समझना चाहिए कि इस मकान में रहने वालों की कुशल नहीं है। यही सबब था कि तारा बदहवास होकर इधर-उधर देखने लगी और उसकी अवस्था देखकर किशोरी और कामिनी को भी निश्चय हो गया कि बदकिस्मती ने अभी तक हम लोगों का पीछा नहीं छोड़ा और अब यहां भी कोई नया गुल खिलना चाहता है।
जिस समय तारा घबड़ाकर इधर-उधर देख रही थी, उसकी निगाह यकायक पूरब की तरफ जा पड़ी जिधर दूर तक साफ मैदान था। तारा ने देखा कि लगभग आध कोस की दूरी पर सैकड़ों आदमी दिखाई दे रहे हैं। इसी के साथ ही साथ तारा की तेज निगाह ने यह भी बता दिया कि वे लोग जिनकी गिनती चार सौ से कम न होगी, या तो फौजी सिपाही हैं या लड़ाई के फन में होशियार लुटेरों का कोई गिरोह है जो दुश्मनी के साथ थोड़ी ही देर में इस मकान को घेरकर उपद्रव मचाना चाहता है। इसके बाद तारा की निगाह तालाब पर पड़ी जिस पर उसे पूरा-पूरा भरोसा था और जानती थी कि इस जल को तैरकर कोई भी इस मकान में घुस आने का दावा नहीं कर सकता, मगर अफसोस इस समय तालाब की अवस्था भी बदली हुई थी अर्थात् उसमें का जल तेजी के साथ कम हो रहा था और लोहे की जालियां, जाल या फन्दे, जो जल के अन्दर छिपे हुए थे, अब जल कम होते जाने के कारण धीरे-धीरे उसके ऊपर निकलते चले आ रहे थे। इन्हीं जालियों और फन्दों के कारण कोई आदमी उस तालाब में घुसकर अपनी जान नहीं बचा सकता था और इनका खुलासा हाल हम पहले लिख चुके हैं।
तारा ने जब तालाब का जल घटते और जालों को जल के बाहर निकलते देखा तो उसकी बची - बचाई आशा भी जाती रही, मगर उसने अपने दिल को सम्हालकर इस आने वाली आफत से किशोरी और कामिनी को होशियार कर देना उचित जाना। उसने किशोरी और कामिनी की तरफ देखकर कहा - “बहिन, अब मुझे एक आफत का हाल तो मालूम हो गया जो हम लोगों पर आना चाहती है। (उन फौजी आदमियों की तरफ इशारा करके, जो दूर से इसी तरफ आते हुए दिखाई दे रहे थे) वे लोग हमारे दुश्मन जान पड़ते हैं जो शीघ्र ही यहां आकर हम लोगों को गिरफ्तार कर लेंगे। मुझे पूरा-पूरा भरोसा था कि इस तालाब में तैरकर या घरनाई अथवा डोंगी के सहारे कोई इस मकान तक नहीं आ सकता क्योंकि जल के अन्दर लोहे के जाल इस ढंग से बिछे हुए हैं कि इसमें तैरने वाली चीज बिना फंसे और उलझे नहीं रह सकती, मगर वह बात भी जाती रही। देखो तालाब का जल कितनी तेजी के साथ घट रहा है, और जब सब जल निकल जायगा तो इस बीच वाले जाल को तोड़ या बिगाड़कर यहां तक चले आने में कुछ भी कठिनता न रहेगी। मालूम होता है कि दुश्मनों ने इसका बन्दोबस्त पहले ही से कर रक्खा था अर्थात् सुरंग खोदकर जल निकालने और तालाब सुखाने का बन्दोबस्त किया गया है और निःसन्देह वे अपने काम में कृतकार्य हुए। (कुछ सोचकर) बड़ी कठिनाई हुई। (आसमान की तरफ देख के) मां जगदम्बे, सिवाय तेरे हम अबलाओं की रक्षा करने वाला कोई भी नहीं, और तेरी शरण आए हुए को दुःख देने वाला भी जगत में कोई नहीं। मैं इतना दुःख भोगकर आज तक केवल तेरे ही भरोसे जी रही हूं और जब इसकी प्रसन्नता हुई कि आज तक तेरा ध्यान धरके जान बचाये रहना वृथा न हुआ तो अब यह बात यह क्या क्यों किसके साथ क्या उसके साथ जो तुम पर भरोसा रक्खे नहीं-नहीं, इसमें भी अवश्य तेरी कुछ माया है!”
भगवती की प्रार्थना करते-करते तारा की आंखें बन्द हो गईं। मगर इसके बाद तुरत ही वह चौंकी तथा किशोरी और कामिनी की तरफ देख के बोली, “निःसन्देह महामाया हम अबलाओं की रक्षा करेंगी। हमें हताश न होना चाहिए, उन्हीं की कृपा से इस समय जो कुछ करना चाहिए वह भी सूझ गया। शुक्र है कि इस समय दो-एक को छोड़कर बाकी सब आदमी मेरे घर के अन्दर ही हैं। अच्छा देखो तो सही कि मैं क्या करती हूं।” यह कहती हुई तारा छत के नीचे उतर गई।
हमारे पाठकों को याद होगा कि यह मकान किस ढंग का बना हुआ था। वे भूले न होंगे कि इस मकान के चारों तरफ जो छोटा-सा सहन है, उसके चारों कोनों में चार पुतलियां हाथों में तीर-कमान लिए इस ढंग से खड़ी हैं मानो अभी तीर छोड़ा ही चाहती हैं। इस समय बेचारी तारा छत पर से उतरकर उन्हीं पुतलियों में से एक पुतली के पास आई। उसने इस पुतली का सिर पकड़कर पीठ की तरफ झुकाया और पुतली बिना परिश्रम झुकती चली गई यहां तक कि जमीन के साथ लग गई। इस समय तालाब का जल करीब चौथाई के सूख चुका था, पुतली झुकने के साथ ही जल में खलबली पैदा हुई। उस समय तारा ने प्रसन्न हो पीछे की तरफ फिरकर देखा तो किशोरी और कामिनी पर निगाह पड़ी जो तारा के साथ ही साथ नीचे उतर आई थीं और उसके पीछे खड़ी यह कार्रवाई देख रही थीं। कई लौंडियां भी पीछे की तरफ नजर पड़ीं जो इत्तिफाक से इस समय मकान के अन्दर ही थीं। तारा ने कहा, “कोई हर्ज नहीं दुश्मन हमारे पास नहीं आ सकते।”
किशोरी - मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया कि तुम क्या कर रही हो और इस पुतली के झुकाने से जल में खलबली क्यों पैदा हुई?
तारा - ये पुतलियां इसी काम के लिए बनी हैं कि जब दुश्मन किसी तरकीब से इस तालाब को सुखा डाले और इस मकान में आने का इरादा करे तो इन चारों पुतलियों से काम लिया जाय। इस मकान की कुरसी गोल है और इसमें चार चक्र लगे हुए हैं जिनकी धार तलवार की तरह और चौड़ाई सात हाथ से कुछ ज्यादा होगी, हाथ भर की चौड़ाई तो मकान की दीवार में चारों तरफ घुसी हुई है जिसका सम्बन्ध किसी कल-पुर्जे से है और छह हाथ की चौड़ाई मकान की दीवार से बाहर की तरफ निकली हुई है। ये चारों चक्र जल के अन्छर छिपे हुए हैं और इस मकान को इस तरह घेरे हुए हैं जैसे छल्ला या सादी अंगूठी उंगली को। जब इन चारों पुतलियों में से एक पुतली झुकाकर जमीन के साथ सटा दी जायगी तो एक चक्रा तेजी के साथ घूमने लगेगा, इसी तरह दूसरी पुतली झुकने से दूसरा, तीसरी पुतली झुकने से तीसरा और चौथी पुतली झुकने से चौथा चक्र भी घूमने लगेगा। उस समय किसी की मजाल नहीं कि इस मकान के पास फटक जाय, जो आवेगा उसके चार टुकड़े हो जायेंगे। मैंने जो इस पुतली को झुका दिया है इस सबब से एक चक्र घूमने लगा है और उसी की तेजी से जल में खलबली पैदा हो गई है। पहले मुझे यह हाल मालूम न था, कमलिनी के बताने से मालूम हुआ है। विशेष कहने की कोई आवश्यकता नहीं है, तुम स्वयं देखती हो कि जल किस तेजी के साथ कम हो रहा है। हाथ भर जल कम होने दो फिर स्वयं देख लेना कि कैसा चक्र है और किस तेजी के साथ घूम रहा है।
किशोरी - (आश्चर्य से) मकान की पूरी हिफाजत के लिए अच्छी तरकीब निकाली है।
तारा - इन चक्रों के अतिरिक्त इस मकान की हिफाजत के लिए और भी कई चीजें हैं मगर उनका हाल मुझे मालूम नहीं है।
किशोरी ने गौर से जल की तरफ देखा जो चक्र के घूमने की तेजी से मकान के पास की तरफ खलबला रहा था और उसमें पैदा हुई लहरें किनारे तक जा-जाकर टक्कर खा रही थीं। जल बहुत ही साफ था इसलिए शीघ्र ही कोई चमकती हुई चीज भी दिखाई देने लगी। जैसे-जैसे जल कम होता जाता था, वह चक्र साफ-साफ दिखाई देता था। थोड़ी ही देर बाद जल विशेष घट जाने के कारण चक्र साफ निकल आया जो बहुत ही तेजी के साथ घूम रहा था। किशोरी ने ताज्जुब में आकर कहा, “बेशक अगर इसके पास लोहे का आदमी भी आवेगा तो कटकर दो टुकड़े हो जायगा!” वह बड़े गौर से उस चक्र को देख रही थी कि आदमियों के शोरगुल की आवाजें आने लगीं। तारा समझ गई कि दुश्मन पास आ गये। उसने किशोरी और कामिनी की तरफ देखके कहा, “बहिनो, अब तीन पुतलियां और रह गई हैं, हमें उन्हें भी झटपट झुका देना चाहिए क्योंकि दुश्मन आ पहुंचे। एक पुतली को तो मैं झुकाती हूं और दो पुतलियों को तुम दोनों झुका दो, फिर छत पर चलकर देखो तो सही ईश्वर क्या करता है और इन दुश्मनों की क्या अवस्था होती है।
तीनों पुतलियों का झुकाना थोड़ी देर का काम था जो किशोरी, कामिनी और तारा ने कर दिया और इसके बाद तीनों छत के ऊपर चढ़ गईं। तारा ने एक और काम किया अर्थात् कमान और बहुत से तीर भी अपने साथ छत के ऊपर लेती गई।
चारों पुतलियों के झुक जाने से जल में बहुत ज्यादा खलबली पैदा हुई, मालूम होता था कि जल तेजी के साथ मथा जा रहा है जिससे झाग और फेन पैदा हो रहा था।
अपने यहां की लौंडियों और नौकरों को कुछ समझाकर कामिनी तथा किशोरी को साथ लिए हुए तारा छत के ऊपर चढ़ गई और वहां से जब दुश्मनों की तरफ देखा तो मालूम हुआ कि वे लोग, जो गिनती में चार सौ से किसी तरह कम न होंगे, तालाब के पास पहुंच गये हैं और तालाब के खौलते हुए जल तथा उस एक चक्र को, जो इस समय जल के बाहर निकला हुआ तेजी के साथ घूम रहा था, हैरत की निगाह से देख रहे हैं।
तारा - किशोरी बहिन देखो, अगर इस समय उन चारों पुतलियों का हाल मालूम न होता तो हम लोगों की तबाही में कुछ बाकी न था!
किशोरी - बेशक इस समय तो उन चारों चक्रों ही ने हम लोगों की जान बचा ली। दुश्मन लोग इस समय उन चक्रों को आश्यर्च से ही देख रहे हैं और इस तरफ कदम बढ़ाने की हिम्मत नहीं करते।
कामिनी - मगर हम लोग कब तक इस अवस्था में रह सकते हैं क्या वे चारों चक्र इसी तरह बहुत दिनों तक घूमते रह सकते हैं?
तारा - हां, अगर हम लोग स्वयं न रोक दें तो एक महीने एक बराबर घूमते रहेंगे, इसके बाद इन चक्रों के घुमाने के लिए कोई दूसरी तरकीब करनी होगी जो मुझे मालूम नहीं।
किशोरी - अगर ऐसा है तो महीने भर तक हम लोग बेखौफ रह सकते हैं, और क्या इस बीच में हमारी मदद करने वाला कोई भी नहीं पहुंचेगा!
तारा - क्यों नहीं पहुंचेगा! मान लिया जाय कि हमारा साथी इस बीच में कोई न आवे तो भी रोहतासगढ़ से मदद जरूर आवेगी, क्योंकि यह जमीन रोहतासगढ़ की अमलदारी में है और रोहतासगढ़ यहां से बहुत दूर भी नहीं है, अस्तु ऐसा नहीं हो सकता कि राजा की अमलदारी में इतने आदमी मिलकर उपद्रव मचावें और राजा को कुछ खबर न हो।
कामिनी - ठीक है मगर यह तो कहो कि बहुत दिनों तक काम चलाने के लिए गल्ला इस मकान में है?
तारा - ओह, गल्ले की क्या कमी है, साल-भर से ज्यादा दिन तक काम चलाने के लिए गल्ला मौजूद है!
कामिनी - और जल के लिए क्या बन्दोबस्त होगा! क्योंकि जितनी तेजी के साथ इस तालाब का जल निकल रहा है उससे तो मालूम होता है कि पहर भर के अन्दर तालाब सूख जायगा।
कामिनी की इस बात ने तारा को चौंका दिया। उसके चेहरे से बेफिक्री की निशानियां जो चारों पुतलियों की करामात से पैदा हो गई थीं, जाती रहीं और उसके बदले में घबराहट और परेशानी ने अपना दखल जमा लिया। तारा की यह अवस्था देखकर किशोरी और कामिनी को विश्वास हो गया कि इस तालाब का जल सूख जाने पर बेशक हम लोगों को प्यासे रहकर जान देनी पड़ेगी, क्योंकि अगर ऐसा न होता तो तारा घबराकर चुप न हो जाती, जरूर कुछ जवाब देती। आखिर तारा को चिन्ता में डूबे हुए देखकर कामिनी ने पुनः कुछ कहना चाहा मगर मौका न मिला, क्योंकि तारा यकायक कुछ सोचकर उठ खड़ी हुई, और कामिनी तथा किशोरी को अपने पीछे-पीछे आने का इशारा करके छत के नीचे उतर कमरों में घूमती-फिरती उस कोठरी में पहुंची जिसमें नहाने के लिए छोटा-सा हौज बना हुआ था, जिसमें एक तरफ से तालाब का जल आता और दूसरी तरफ से निकल जाता था। इस समय तालाब में पानी कम हो जाने के कारण हौज का जल भी कुछ कम हो गया था। तारा ने वहां पहुंचने के साथ ही फुर्ती से उन दोनों रास्तों को बन्द कर दिया जिनसे हौज में जल आता और निकल जाता था। इसके बाद एक ऊंची सांस लेकर उसने कामिनी की तरफ देखा, और कहा –
तारा - ओफ, इस समय बड़ा ही गजब हो चला था! अगर तुम पानी के विषय में याद न दिलातीं तो इस हौज की तरफ से मैं बिल्कुल बेफिक्र थी। इसका ध्यान भी न था कि तालाब का जल कम हो जाने पर यह हौज भी सूख जायगा और तब हम लोगों को प्यासे रहकर जान देनी पड़ेगी।
किशोरी - तो इससे जाना जाता है कि तालाब सूख जाने पर, सिवाय इस छोटे से हौज के और कोई चीज ऐसी नहीं है जो हम लोगों की प्यास बुझा सके?
कामिनी - और यह हौज तीन-चार दिन से ज्यादा काम नहीं चला सकता, ऐसी अवस्था में उन चक्रों का महीने-भर तक घूमना ही वृथा है, क्योंकि हम लोग प्यास के मारे मौत के मेहमान हो जायंगे। अफसोस, जिस कारीगर ने इस मकान की हिफाजत के लिए ऐसी चीजें बनाईं, और जिसने यह सोचकर कि तालाब का जल सूख जाने पर भी इस मकान में रहने वालों पर मुसीबत न आवे, ये घूमते वाले चक्र बनाये उसने इतना न सोचा कि तालाब सूखने पर यहां के रहने वाले जल कहां से पीयेंगे। उसे इस मकान में एक कुआं भी बना देना था।
तारा - ठीक है, मगर जहां तक मैं खयाल करती हूं कि इस मकान के बनाने वाले कारीगर ने इतनी बड़ी भूल न की होगी। उसने कोई कुआं अवश्य बनाया होगा, लेकिन मुझे तो उसका पता मालूम ही नहीं। खैर, देखा जायगा, मैं उसका पता अवश्य लगाऊंगी।
कामिनी - मुझे एक बात का खतरा और भी है।
तारा - वह क्या?
कामिनी - वह यह है कि तालाब सूख जाने पर ताज्जुब नहीं कि यहां तक पहुंचने के लिए इस मकान के नीचे सुरंग खोदने और दीवार तोड़ने की कोशिश दुश्मन लोग करें।
तारा - ऐसा तो हो ही नहीं सकता, इस मकान की दीवार किसी जगह से किसी तरह टूट नहीं सकती।
इसी बीच तालाब के बाहर से विशेष कोलाहल की आवाज आने लगी, जिसे सुन तारा, किशोरी और कामिनी मकान के ऊपर चली गईं, और छिपकर दुश्मनों का हाल देखने लगीं। वे लोग इस मकान में पहुंचना कठिन जानकर शोरगुल मच रहे थे और कई आदमी हाथ में तीरकमान लिए इस वास्ते भी तैयार दिखाई दे रहे थे कि कोई आदमी इस मकान के बाहर निकले तो उस पर तीर चलावें। किशोरी ने बड़ी गौर से दुश्मनों की तरफ देखकर तारा से कहा, “बहिन तारा, इन दुश्मनों में बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनको मैं बखूबी पहचानती हूं, क्योंकि जब मैं अपने बाप के घर में थी, तो ये लोग मेरे बाप के नौकर थे।
तारा - ठीक है, मैं भी इन लोगों को पहचानती हूं, बेशक ये लोग तुम्हारे बाप के नौकर हैं और उन्हीं को छुड़ाने के लिए यहां आये हैं।
किशोरी - (चौंककर) तो क्या मेरे पिता इसी मकान में कैद हैं?
तारा - हां, वे भी इसी मकान में कैद हैं।
किशोरी को जब यह मालूम हुआ कि उसका बाप इस मकान में कैद है तो उसके दिल पर एक प्रकार की चोट-सी बैठी। यद्यपि उसने अपने बाप की बदौलत बहुत तकलीफें उठाई थीं। बल्कि यों कहना चाहिए कि अभी तक अपने बाप की बदौलत दुःख भोग रही है और दर-दर मारी-मारी फिरती है, मगर फिर भी किशोरी का दिल पाक साफ और शीघ्र ही पसीज जाने वाला था। वह अपने बाप का हाल सुनते ही कुछ देर के लिए वे सब बातें भूल गई जिनकी बदौलत आज तक दुर्दशा की छतरी उसके सिर पर से नहीं हटी थी। इसके साथ ही पल भर के लिए उसकी आंखों के सामने वह खंडहर वाला दृश्य भी घूम गया जहां उसके सगे भाई ने खंजर से उसकी जान लेने के लिए वीरता प्रकट की थी। मगर रामशिला वाले साधु के पहुंच जाने से कुछ न कर सका था। वह यह भी जानती थी कि उसका भाई भीमसेन पिता की आज्ञा पाकर मेरी जान लेने के लिए आया था और अब भी अगर पिता का बस चले तो मेरी जान लेने में विलम्ब न करे, मगर फिर भी कोमल-हृदया किशोरी के दिल में बाप को देखने की इच्छा प्रकट हुई, और उसने डबडबाई हुई आंखों से तारा की तरफ देखकर गद्गद् स्वर से कहा –
किशोरी - बहिन, तुम्हें आश्चर्य होगा कि यदि मैं पिता को देखने की इच्छा प्रकट करूं, मगर लाचार हूं, जी नहीं मानता।
तारा - हां, यदि कोई दूसरी बेकसूर लड़की ऐसे पिता से मिलने की इच्छा प्रकट करती तो अवश्य आश्चर्य की जगह थी, मगर तेरे लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि मैं तेरे स्वभाव को अच्छी तरह जानती हूं, परन्तु बहिन किशोरी, मुझे निश्चय है कि तू अपने पिता को देखकर प्रसन्न न होगी, बल्कि तुझे दुःख होगा, वह तुझे देखते ही बेबस रहने पर भी हजारों गालियां देगा, और कच्चा ही खा जाने के लिए तैयार हो जायगा।
किशोरी - तुम्हारा कहना ठीक है, परन्तु मैं माता-पिता की गाली को आशीर्वाद समझती हूं, यदि वे कुछ कहेंगे तो कोई हर्ज नहीं, और मैं ज्यादा देर तक उनके पास ठहरूंगी भी नहीं, केवल एक नजर देखकर पिछले पैर लौट आऊंगी। मुझे विश्वास है कि दुश्मन लोग जो तालाब के बाहर खड़े हैं, इस समय मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकते और यदि तुम्हारी कृपा होगी तो मैं ऐसे समय में भी बेफिक्री के साथ अपने पिता को एक नजर देख सकूंगी।
तारा - खैर, जब ऐसा कहती हो तो लाचार मैं तुम्हें कैदखाने में ले चलने के लिए तैयार हूं, चलकर अपने पिता को देख लो।
कामिनी - क्या मैं भी तुम लोगों के साथ चल सकती हूं?
तारा - हां-हां, कोई हर्ज नहीं, तू भी चलकर अपनी रानी माधवी को एक नजर देख ले।
लौंडियों को बुलाकर हौज के विषय में तथा और भी किसी विषय में समझा-बुझाकर किशोरी और कामिनी को साथ लिए हुए तारा वहां से रवाना हुई और एक कोठरी में से लालटेन तथा खंजर ले दूसरी कोठरी में गई जिसमें किसी तरह का सामान न था। इस कोठरी में मजबूत ताला लगा हुआ था जो खोला गया और तीनों कोठरी के अन्दर गईं। कोठरी बहुत छोटी थी और इस योग्य न थी कि वहां का कुछ हाल लिखा जाय। इस कोठरी के नीचे एक तहखाना था जिसमें जाने के लिए छोटा-सा मगर लोहे का खूब मजबूत दरवाजा जमीन में दिखाई दे रहा था। तारा ने लालटेन जमीन पर रखकर कमर में से ताली निकाली और तहखाने का दरवाजा खोला। नीचे बिल्कुल अंधकार था इसलिए तारा ने जब लालटेन उठाकर दिखाया तो छोटी-छोटी सीढ़ियां नजर पड़ीं। किशोरी, कामिनी को पीछे-पीछे आने का इशारा करके तारा तहखाने में उतर गई मगर जब नीचे पहुंची तो यकायक चौंककर ताज्जुब भरी निगाहों के साथ इस तरह चारों तरफ देखने लगी जैसे किसी की कोई अनमोल, अलभ्य और अनूठी चीज यकायक सामने से गुम हो जाय और वह आश्चर्य से चारों तरफ देखने लगे।
यह तहखाना दस हाथ चौड़ा और पन्द्रह हाथ लम्बा था। इसकी अवस्था कहे देती थी कि यह जगह केवल हथकड़ी-बेड़ी से सुशोभित कैदियों की खातिरदारी के लिए ही बनाई गई है। बिना चौखट-दरवाजे की छोटी-छोटी दस कोठरियां जो एक के साथ दूसरी लगी हुई थीं एक तरफ और उसी ढंग की उतनी ही कोठरियां उसके सामने दूसरी तरफ बनी हुई थीं। इतनी कम जमीन में बीस कोठरियों के ध्यान ही से आप समझ सकते हैं कि कैदियों का गुजारा किस तकलीफ से होता होगा।
दोनों तरफ तो कोठरियों की पंक्ति थी और बीच में थोड़ी-सी जगह इस योग्य बची हुई थी कि यदि कैदियों को रोटी-पानी पहुंचाने या देखने के लिए कोई जाय तो अपना काम बखूबी कर सके। इसी बची हुई जमीन के एक सिरे पर तहखाने में आने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थीं। जिस राह से इस समय तारा, किशोरी और कामिनी आई थीं उसी के सामने अर्थात् दूसरे सिरे पर लोहे का एक छोटा मजबूत दरवाजा था जो इस समय खुला था और एक बड़ा-सा खुला हुआ ताला उसके पास ही जमीन पर पड़ा हुआ था जो बेशक उसी दरवाजे में उस समय लगा होगा जब वह दरवाजा बन्द होगा। इसी दरवाजे को खुला हुआ और अपने कैदियों को न देखकर तारा चौंकी और घबराकर चारों तरफ देखने लगी थी।
तारा - बड़े आश्चर्य की बात है कि हथकड़ी-बेड़ी से जकड़े हुए कैदी क्योंकर निकल गये और इस दरवाजे का ताला किसने खोला। निःसन्देह या तो हमारे नौकरों में से किसी ने कैदियों की मदद की या कैदियों का कोई मित्र इस जगह आ पहुंचा। मगर नहीं, इस दरवाजे को दूसरी तरफ से कोई खोल नहीं सकता, परन्तु...?
किशोरी - क्या यह किसी सुरंग का दरवाजा है?
तारा - समय पड़ने पर आने-जाने के लिए यह एक सुरंग है जो यहां से बहुत दूर जाकर निकली है। वर्षों हो गये इस सुरंग से कोई काम नहीं लिया गया, केवल उस दिन यह सुरंग खोली गई थी जिस दिन तुम्हारे पिता गिरफ्तार हुए थे क्योंकि वे इसी सुरंग की राह से यहां लाए गये थे।
कामिनी - मैं समझती हूं कि इस सुरंग के दरवाजे को बन्द करने में जल्दी करनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि इस राह से दुश्मन लोग आ पहुंचें और हमारा बनाबनाया खेल बिगड़ जाय।
किशोरी - मेरी तो यह राय है कि इस सुरंग के अन्दर चलकर देखना चाहिए, शायद कैदियों का कुछ...!
तारा - मेरी भी यही राय है, मगर इस तरह खाली हाथ सुरंग के अन्दर जाना उचित न होगा, शायद दुश्मनों का सामना हो जाय, अच्छा ठहरो मैं तिलिस्मी नेजा लेकर आती हूं।
इतना कहकर तारा तिलिस्मी नेजा लेने के लिए चली मगर अफसोस उसने बड़ी भारी भूल की कि सुरंग के दरवाजे को बिना बन्द किए ही चली आई और इसके लिए उसे बहुत रंज उठाना पड़ा अर्थात् जब वह तिलिस्मी नेजा लेकर लौटी और तहखाने में पहुंची तो वहां किशोरी और कामिनी को न पाया, निश्चय हो गया कि उसी सुरंग की राह से जिसका दरवाजा खुला हुआ था दुश्मन आये और किशोरी तथा कामिनी को पकड़ के ले गये।