एक सुंदर पावों वाली मसहरी पर महाराज सुरेन्द्रसिंह लेटे हुए हैं। ऐयारों के सिरताज जीतसिंह उसी मसहरी के पास फर्श पर बैठे तथा दाहिने हाथ से मसहरी पर ढासना लगाये धीरे-धीरे बातें कर रहे हैं।
महा - इंद्रदेव का स्थान बहुत ही सुंदर और रमणीक है, यहां से जाने का जी नहीं चाहता।
जीत - ठीक है, इस स्थान की तरह इंद्रदेव का बर्ताव भी चित्त को प्रसन्न करता है, परंतु मेरी राय यही है कि जहां तक जल्द हो यहां से लौट चलना चाहिए।
महा - हम भी यही सोचते हैं। इन लोगों की जीवनी और आश्चर्य भरी कहानी तो वर्षों तक सुनते ही रहेंगे परंतु इंद्रजीत और आनंद की शादी जहां तक जल्द हो सके कर देनी चाहिए जिससे और किसी तरह के विघ्न पड़ने का फिर डर न रहे।
जीत - जरूर ऐसा होना चाहिए, इसीलिए मैं चाहता हूं कि यहां से जल्द चलिए। भरतसिंह वगैरह की कहानी वहां ही सुन लेंगे या शादी के बाद और लोगों को भी यहां ले आवेंगे जिससे वे लोग भी तिलिस्म और इस स्थान का आनंद ले लें।
महा - अच्छी बात है, खैर यह बताओ कि कमलिनी और लाडिली के विषय में भी तुमने कुछ सोचा।
जीत - उन दोनों के लिए जो कुछ आप विचार रहे हैं वही मेरी भी राय है, उनकी भी शादी दोनों कुमारों के साथ कर ही देनी चाहिए।
महा - है न यही राय?
जीत - जी हां मगर किशोरी और कामिनी की शादी के बाद क्योंकि किशोरी एक राजा की लड़की है इसलिए उसी की औलाद को गद्दी का हकदार होना चाहिए यदि कमलिनी के साथ पहले शादी हो जाएगी तो उसी का लड़का गद्दी का मालिक समझा जाएगा, इसी से मैं चाहता हूं कि पटरानी किशोरी ही बनाई जाय।
महा - यह बात तो ठीक है, अस्तु ऐसा ही होगा और साथ ही इसके कमला की शादी भैरो के साथ और इंदिरा की तारा के साथ करा दी जाएगी।
जीत - जो मर्जी।
महाराज - अच्छा तो अब यही निश्चय रहा कि दलीपशाह और भरथसिंह की बीती यहां से चलने के बाद घर ही पर सुननी चाहिए।
जीत - जी हां, सच तो यों है कि ऐसा करना ही पड़ेगा क्योंकि इन लोगों की कहानी दारोगा और जैपाल इत्यादि कैदियों से घना संबंध रखती है बल्कि यों कहना चाहिए कि इन्हीं लोगों के इजहार पर उन लोगों के मुकदमे का दारोमदार (हेस-बेस) है और यही लोग उन कैदियों को लाजबाब करेंगे।
महा - निःसंदेह ऐसा ही है, इसके अतिरिक्त उन कैदियों ने हम लोगों तथा हमारे सहायकों को बड़ा दुःख दिया है और दोनों कुमारों की शादी में भी बड़े-बड़े विघ्न डाले हैं अतएव उन कम्बख्तों को कुमारों की शादी का जल्सा भी दिखा देना चाहिए जिससे ये लोग भी अपनी आंखों से देख लें कि जिन बातों को वे बिगाड़ा चाहते थे वे आज कैसी खूबी और खुशी के साथ हो रही हैं, इसके बाद उन लोगों को सजा देनी चाहिए। मगर अफसोस तो यह है कि मायारानी और माधवी जमानिया ही में मार डाली गर्ईं नहीं तो वे दोनों भी देख लेतीं कि...।
जीत - खैर उनकी किस्मत में यही बदा था।
महा - अच्छा तो एक बात का और खयाल करना चाहिए।
जीत - आज्ञा।
महा - भूतनाथ वगैरह को मौका देना चाहिए कि वे अपने संबंधियों से बखूबी मिल-जुलकर अपने दिल का खुटका निकाल लें क्योंकि हम लोग तो उनका हाल वहां चलकर ही सुनेंगे।
जीत - बहुत खूब।
इतना कहकर जीतसिंह उठ खड़े हुए और कमरे से बाहर चले गये।