ये विषय भारतीय समाज का आज एक ऐसा सच बन चुका है जिसका पता सबको है पर बात कोई नही करना चाहता।
एक ऐसी दुविधा जो है दूसरे व्यक्ति के मन मे है ।
लोग समंझ नही पा रहे कि क्या वो गलत कर रहे या सही ।
हर वक्त का एक द्वंद सबके भीतर है।
हमारे बड़े बोलते है बेटा ये गलत है वो गलत है समाज इसकी इजाजत नही देता।
धर्म गुरु बोलते है खुशी खुद के भीतर ही है बाहर कही नही।
खुद में जाओ ।खुद में ढूंढो।और जो इस सबमे है वो खुशी बाहर ही देख रहा है।
उसके लिए खुशी बाहर ही है।अंदर का उसको कुछ पता नही ।
बहुत से सवालों के जबाब किसी को नही मिल रहे ।
लेकिन सोचे कि इसकी शुरुआत कैसे हुई ।जब हमारे मम्मी पापा थे तो उनका तो ऐसा नही था ।फिर आज की चालीस की जनेरेशन को क्या हुआ ।
अचानक से लोग एक दूसरे की तरफ आकर्षित होने लगे ।
और हर दूसरे व्यक्ति की लाइफ में कोई और आ गया ।
कहि पे लोग पुराने रिश्तों को तोड़ने लगे और नए में जाने लगे।कहि पर अपनी इक्छाओ को दबाकर घुट घुट कर जीने लगे ।
कही छुपकर रिश्ते बनाने लगे और खुद की खुशियों और परिवार की जिम्मेदारियो में दोनों को निभाने लगे ।
लेकिन हर जगह नुकसान किसका हुआ ।हमारी आत्मा का ।
वो कहि न कही मरी।
क्योंकि सच बोलने से रिश्ते टूट जाएंगे और झूठ बोलना आत्मा का स्वभाव नही है ।
ऐसा नही कि ये सिर्फ औरतों का मसला हो आदमियों के लिए भी उतना ही कठिन है।
पर मेरे ज़हन में आया कि ये हुआ क्यों ।
क्या कारण है कि अचानक सबकी ज़िंदगी मे ये सब होने लगा ।
तो उस समय पर नज़र डाली।
90s पर जब सभी 20 22 साल के थे ।
सोशल मीडिया नही था ,whtsup ,फेसबुक नही था ।मोबाइल भी मुश्किल था ।
लोग लव लेटर्स लिखा करते थे ।बड़ी मुश्किलों से अपने दिल की बात कह पाते थे ।
सालों लग जाते थे किसी को आई लव यू बोलने में ।और कुछ लोग तो कभी नही बोल पाते थे ।
मिलना तो बहुत ही मुश्किल था ।दूर से देख ले वही काफी था।
फिर सबकि शादियां हुई।
ज्यादातर अरेंज मेरिज ही हुई।
कुछ लोगो ने तो देखा भी नही और शादी कर ली ।
उस वक्त एक बात प्रचलन में थी ।लव मैरिज टूट जाती हैं।
ऐसा क्यों होता था आज जब में सोचती हूं तो लगा कि वहाँ एक बार निर्णय ले चुके थे दो लोग की साथ रहना है।वो निर्णय ही बहुत कठिन था और वही लोग जल्दी निर्णय ले सकते है कि नही रह पा रहे ।
जो जीवन साथी चुनने का निर्णय नही ले पाया वो छोड़ने का तो और नही ले पायेगा ।अपनी जिंदगी को जैसी मिली उसी में खुश रहना है इसे मान लेना ।
पहले हमारे यहाँ जॉइंट फैमिली का रिवाज था।उसे आदर्श भी माना जाता था।
फिर फैमिली छोटी होने लगी।फिर धीरे धीरे लोग बिल्कुल अकेले भी रहने लगे।
इससे मेरे मन मे ये ख्याल भी आया कि क्या फैमिली में ही रहकर इंसान स्वतंत्र नही हो सकता।
क्या परिवार में वो आज़ाद नही हो सकता ।
जो कुछ भी अपने मन का करने के लिए अलग होना ही जरूरी हो गया।
पुरुषों के विवाहेत्तर संबंध प्रचलन में थे लेकिन समाज ने उन्हें हमेशा बुरी नज़र से ही देखा है ।इसलिए पुरुष छुपाते है।
ताकि समाज की दृष्टि में वो सम्मान बना रहे ।
फिर स्त्रियों के भी बनने लगे ।स्त्रियों को तो पहले से ही उतनी सत्ता प्राप्त नही ।
उसे तो पसंद के कपड़े तक पहनने की जद्दोजहद में सालों गुज़र जाते है।
फिर ये तो बहुत अलग उसका रूप।
किसी भी कीमत पर समाज को बर्दाश्त नही ।
वो भी एक द्वंद में फंसी रहती है ।
ऊपर से स्त्री हो या पुरुष दोनों में आत्म ग्लानि।कि वो कुछ ऐसा कर रहे है जो समाज में मान्य नही है ।
कर सभी रहे पर छुपकर ।
जो उन्हें समाज मे तो इज़ज़त दिलवाए है पर खुद की नज़र में नही।पर ऐसा हुआ क्यों।
मुझे लगता है उस वक्त तो शादी हो गई नही पता था कि जीवन साथी का मतलब क्या होता है।और शादी जिम्मेदारी भी बन गई ।
फिर उसमें सब व्यस्त रहे ।पैसे कमाना ,बच्चो को पालना , लगातार एक दौड़ में शामिल।
पर जब खुद के लिए पल तलाशे तो वो कहि न थे ।खुशी कहि न थी ।
ऐसा नही कि जिससे आपकी शादी हुई वो साथी गलत चुना हो गया ।
ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा जो समाज बना उसने जो सिखाया वही हमने बिना सोचे समझे मान लिया ।
उस पर प्रश्न खड़े नही किये ।
लड़कियों को सिखाया गया कि तुमहे घर के काम करना है।शादी के बाद परिबार का ख्याल रखना है।पति का रखो या न रखो परिवार का रखना ।
खुद दुख सह लेना परिवार दुखी न हो ।
त्याग करना अपनी इच्छाओं का ।
और पति को कि अगर वो सबके सामने पत्नी को प्रेम करेगा तो जोरू का ग़ुलाम होगा।
वो पत्नी वाले काम करेगा तो लोग उसकी हंसी उड़ाएंगे ।
और वो बार बार पत्नी के पास नहीं जा सकता चाहे उसका मन हो।
फिर 90s में अगर होटल जाना तो मंदिर का बोलकर ही जाना होगा ।
उस समय के लोगो ने शादी के पहले तो लाइफ जी ही नही थी और शादी के बाद भी इतनी पाबंदियां।
बेचारो को पहले ही ब्रह्मचारी बना दिया ।फिर एक दो साल में बच्चे और वही ज़िंदगी जो आज लोग तड़पकर कहने लगे शादी न ही करो तो अच्छा।
जब लड़की की शादी होती है तो बहुत सपने होते है पति उसकी बात सुनेगा ।#285327433
एक ऐसी दुविधा जो है दूसरे व्यक्ति के मन मे है ।
लोग समंझ नही पा रहे कि क्या वो गलत कर रहे या सही ।
हर वक्त का एक द्वंद सबके भीतर है।
हमारे बड़े बोलते है बेटा ये गलत है वो गलत है समाज इसकी इजाजत नही देता।
धर्म गुरु बोलते है खुशी खुद के भीतर ही है बाहर कही नही।
खुद में जाओ ।खुद में ढूंढो।और जो इस सबमे है वो खुशी बाहर ही देख रहा है।
उसके लिए खुशी बाहर ही है।अंदर का उसको कुछ पता नही ।
बहुत से सवालों के जबाब किसी को नही मिल रहे ।
लेकिन सोचे कि इसकी शुरुआत कैसे हुई ।जब हमारे मम्मी पापा थे तो उनका तो ऐसा नही था ।फिर आज की चालीस की जनेरेशन को क्या हुआ ।
अचानक से लोग एक दूसरे की तरफ आकर्षित होने लगे ।
और हर दूसरे व्यक्ति की लाइफ में कोई और आ गया ।
कहि पे लोग पुराने रिश्तों को तोड़ने लगे और नए में जाने लगे।कहि पर अपनी इक्छाओ को दबाकर घुट घुट कर जीने लगे ।
कही छुपकर रिश्ते बनाने लगे और खुद की खुशियों और परिवार की जिम्मेदारियो में दोनों को निभाने लगे ।
लेकिन हर जगह नुकसान किसका हुआ ।हमारी आत्मा का ।
वो कहि न कही मरी।
क्योंकि सच बोलने से रिश्ते टूट जाएंगे और झूठ बोलना आत्मा का स्वभाव नही है ।
ऐसा नही कि ये सिर्फ औरतों का मसला हो आदमियों के लिए भी उतना ही कठिन है।
पर मेरे ज़हन में आया कि ये हुआ क्यों ।
क्या कारण है कि अचानक सबकी ज़िंदगी मे ये सब होने लगा ।
तो उस समय पर नज़र डाली।
90s पर जब सभी 20 22 साल के थे ।
सोशल मीडिया नही था ,whtsup ,फेसबुक नही था ।मोबाइल भी मुश्किल था ।
लोग लव लेटर्स लिखा करते थे ।बड़ी मुश्किलों से अपने दिल की बात कह पाते थे ।
सालों लग जाते थे किसी को आई लव यू बोलने में ।और कुछ लोग तो कभी नही बोल पाते थे ।
मिलना तो बहुत ही मुश्किल था ।दूर से देख ले वही काफी था।
फिर सबकि शादियां हुई।
ज्यादातर अरेंज मेरिज ही हुई।
कुछ लोगो ने तो देखा भी नही और शादी कर ली ।
उस वक्त एक बात प्रचलन में थी ।लव मैरिज टूट जाती हैं।
ऐसा क्यों होता था आज जब में सोचती हूं तो लगा कि वहाँ एक बार निर्णय ले चुके थे दो लोग की साथ रहना है।वो निर्णय ही बहुत कठिन था और वही लोग जल्दी निर्णय ले सकते है कि नही रह पा रहे ।
जो जीवन साथी चुनने का निर्णय नही ले पाया वो छोड़ने का तो और नही ले पायेगा ।अपनी जिंदगी को जैसी मिली उसी में खुश रहना है इसे मान लेना ।
पहले हमारे यहाँ जॉइंट फैमिली का रिवाज था।उसे आदर्श भी माना जाता था।
फिर फैमिली छोटी होने लगी।फिर धीरे धीरे लोग बिल्कुल अकेले भी रहने लगे।
इससे मेरे मन मे ये ख्याल भी आया कि क्या फैमिली में ही रहकर इंसान स्वतंत्र नही हो सकता।
क्या परिवार में वो आज़ाद नही हो सकता ।
जो कुछ भी अपने मन का करने के लिए अलग होना ही जरूरी हो गया।
पुरुषों के विवाहेत्तर संबंध प्रचलन में थे लेकिन समाज ने उन्हें हमेशा बुरी नज़र से ही देखा है ।इसलिए पुरुष छुपाते है।
ताकि समाज की दृष्टि में वो सम्मान बना रहे ।
फिर स्त्रियों के भी बनने लगे ।स्त्रियों को तो पहले से ही उतनी सत्ता प्राप्त नही ।
उसे तो पसंद के कपड़े तक पहनने की जद्दोजहद में सालों गुज़र जाते है।
फिर ये तो बहुत अलग उसका रूप।
किसी भी कीमत पर समाज को बर्दाश्त नही ।
वो भी एक द्वंद में फंसी रहती है ।
ऊपर से स्त्री हो या पुरुष दोनों में आत्म ग्लानि।कि वो कुछ ऐसा कर रहे है जो समाज में मान्य नही है ।
कर सभी रहे पर छुपकर ।
जो उन्हें समाज मे तो इज़ज़त दिलवाए है पर खुद की नज़र में नही।पर ऐसा हुआ क्यों।
मुझे लगता है उस वक्त तो शादी हो गई नही पता था कि जीवन साथी का मतलब क्या होता है।और शादी जिम्मेदारी भी बन गई ।
फिर उसमें सब व्यस्त रहे ।पैसे कमाना ,बच्चो को पालना , लगातार एक दौड़ में शामिल।
पर जब खुद के लिए पल तलाशे तो वो कहि न थे ।खुशी कहि न थी ।
ऐसा नही कि जिससे आपकी शादी हुई वो साथी गलत चुना हो गया ।
ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा जो समाज बना उसने जो सिखाया वही हमने बिना सोचे समझे मान लिया ।
उस पर प्रश्न खड़े नही किये ।
लड़कियों को सिखाया गया कि तुमहे घर के काम करना है।शादी के बाद परिबार का ख्याल रखना है।पति का रखो या न रखो परिवार का रखना ।
खुद दुख सह लेना परिवार दुखी न हो ।
त्याग करना अपनी इच्छाओं का ।
और पति को कि अगर वो सबके सामने पत्नी को प्रेम करेगा तो जोरू का ग़ुलाम होगा।
वो पत्नी वाले काम करेगा तो लोग उसकी हंसी उड़ाएंगे ।
और वो बार बार पत्नी के पास नहीं जा सकता चाहे उसका मन हो।
फिर 90s में अगर होटल जाना तो मंदिर का बोलकर ही जाना होगा ।
उस समय के लोगो ने शादी के पहले तो लाइफ जी ही नही थी और शादी के बाद भी इतनी पाबंदियां।
बेचारो को पहले ही ब्रह्मचारी बना दिया ।फिर एक दो साल में बच्चे और वही ज़िंदगी जो आज लोग तड़पकर कहने लगे शादी न ही करो तो अच्छा।
जब लड़की की शादी होती है तो बहुत सपने होते है पति उसकी बात सुनेगा ।#285327433
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