अधिमासव्रत
( हेमाद्रि ) - यह व्रत मनुष्योंके सम्पूर्ण पापोंका हरण करनेवाला है । इसमें एकभुक्त, नक्त या उपवास और भगवान् भास्करका पूजन तथा कांस्यपात्रमें भरे हुए अन्न - वस्त्रादिका दान किया जाता है । प्राचीन कालमें नहुष राजाने इन्द्रत्वप्राप्तिके मदसे अपने नरयान ( पालकी ) को वहन करनेमें महर्षि अगस्त्यको नियुक्त करके ' सर्प - सर्प ' ( चलो - चलो ) कह दिया था । उस धृष्टताके कारण वह स्वयं सर्प हो गया । अन्तमें व्यासजीके आदेशानुसार अधिमासका व्रत करनेसे वह सर्पयोनिसे मुक्त हुआ । ...... व्रतका विधान यह है कि अधिमास आरम्भ होनेपर प्रातःस्त्रानादि नित्यकर्म करके विष्णुस्वरुप ' सहस्त्रांशु ' ( हजार किरणवाले सूर्यनारायणका ) पूजन करे । विविध प्रकारके घी, गुड़ और अन्नका नित्य दान करे तथा घी, गेहूँ और गुड़के बनाये हुए तैंतीस अपूप ( पूओं ) को कांस्यपात्रमें रखकर ' विष्णुरुपी सहस्त्रांशुः सर्वपापप्रणाशनः । अपूपान्नप्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ॥' से प्रतिदिन दान करे और ' यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुडो यस्य वाहनम् । शङ्खः करतले यस्य स मे विष्णुः प्रसीदतु ॥' से प्रार्थना करे तो कुरुक्षेत्रादिके स्त्रान, गो - भू - हिरण्यादिके दान और अगणित ब्राह्मणोंको भोजन करानेके समान फल होता है तथा सब प्रकारके धन, धान्य, पुत्र और परिवार बढ़ते हैं ।
( ४ ) पुरुषोत्तममासव्रत ( भविष्योत्तरपुराण ) - इस व्रतके विषयमें श्रीकृष्णने कहा था कि इसका फलदाता, भोक्ता और अधिष्ठाता - सब कुछ में हूँ । ( इसी कारणसे इसका नाम पुरुषोत्तम है । ) इस महीनेमें केवल ईश्वरके उद्देश्यसे जो व्रत, उपवास, स्त्रान, दान या पूजनादि किये जाते हैं, उनका अक्षय फल होता है और व्रतीके सम्पूर्ण अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं ।
( ५ ) मलमासव्रत ( देवीभागवत ) - इस महीनेंमें दान, पुण्य या शरीर - शोषण - जो भी किया जाय, उसका अक्षय फल होता है । यदि सामर्थ्य न हो तो ब्राह्मण और साधुओंकी सेवा सर्वोत्तम है । इससे तीर्थस्त्रानादिके समान फल होता है । पुण्यके कामोंमें व्यय करनेसे धन क्षीण नहीं होता, बल्कि बढ़ता है । जिस प्रकार अणुमात्र बीजके दान करनेसे वट - जैसा दीर्घजीवी महान् वृक्ष होता है, वैसे ही मलमासमें दिया हुआ दान अधिक फल देता है ।
( ६ ) अधिमासीयार्चव्रत ( पूजापङ्कजभास्कर ) - आधिमासके व्रतोमें भगवानकी पूजन - विधिमें यह विशेषता है कि गन्धयुक्त पुष्प और श्रीसूक्तके मन्त्न - इनके साथमें भगवानके नामोंका एक - एक करके उच्चारण करता हुआ उनके पुष्प अर्पण करे । नाम ये हैं - १ - कूर्माय, २- सहस्त्रशीर्ष्णे, ३ - देवाय, ४ - सहस्त्राक्षपादाय, ५ - हरये, ६ - लक्ष्मीकान्ताय, ७ - सुरेश्वराय, ८ - स्वयम्भुवे, ९ - अमिततेजसे, १० - ब्रह्मप्रियाय, ११ - देवाय, १२ - ब्रह्मगोत्राय । पुनः लक्ष्म्यै नमः, कमलायै नमः, श्रियै नमः, पद्मवासायै नमः, हरिवल्लभायै नमः , क्षीराब्धितनायै नमः , इन्दिरायै नमः - इन नामोंसे पुष्प अर्पण करके ' पुराणपुरुषेशान सर्वशोकनिकृन्तन । अधिमासव्रते प्रीत्या गृहाणार्घ्यं श्रिया सह ॥ ' पुराणपुरुषेशान जगद्धातः सनातन । सपत्नीको ददाम्यर्घ्यं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणे ॥ देवदेव महाभाग प्रलयोत्पत्तिकारक । कृपया सर्वभूतस्य जगदानन्दकारक । गृहाणार्घ्यमिमं देव दयां कृत्वा ममोपरि ॥' - इन मन्त्रोंसे तीन बार अर्घ्य दे तो महाफल होता है ।