लोमहर्षणने कहा - प्राचीन कालकी बात है महर्षि दर्वि वहाँ चार समुद्रोंको ले आये थे । उनमेसे प्रत्येक समुद्रमें स्त्रान करनेसे मनुष्योंको हजार गोदान करनेका फल प्राप्त होता है । द्विजोत्तमो ! उस तीर्थमें जो तपस्या की जाती है, वह पापीद्वारा की गयी होनेपर भी सिद्ध हो जाती है । द्विजो ! वहाँ शतसाहस्त्रिक एवं शातिक नामके दो तीर्थ हैं । उन दोनों ही तीर्थोंमें स्त्रान करनेवाला मनुष्य हजार गौ - दान करनेका फल प्राप्त करता है । वहीं सरस्वतीके तटपर सोमतीर्थ भी स्थित है, जिसमें स्त्रान करनेसे पुरुष राजसूययज्ञका फल प्राप्त करता है ॥१ - ४॥
माताकी सेवा करनेसे जो पुण्य प्राप्त होता है, उस पुण्य - फलको इन्द्रियोंपर विजय प्राप्त करनेवाला श्रद्धालु मनुष्य रेणुकातीर्थमें जाकर प्राप्त कर लेता है और ब्रह्माद्वारा सेवित ऋणमोचन नामके तीर्थमें जाकर देवऋण, ऋणि - ऋण और पितृ - ऋणसे छूट जाता है । कुमार ( कार्तिकेय ) - का अभिषेकस्थल ओजसनामसे विख्यात हैं; उस तीर्थमें स्त्रान करनेसे मनुष्य कीर्ति प्राप्त करता है और वहाँ श्राद्ध करनेसे उसे कार्तिकयके लोककी प्राप्ति और वहाँ श्राद्ध करनेसे उसे कार्तिकमे लोककी प्राप्ति होती है । चैत्रमासकी शुक्ला षष्ठी तिथिमें जो मनुष्य वहाँ श्राद्ध करेगा, वह गगामें श्राद्ध करनेसे जो पुण्य प्राप्त होता है, उस पुण्यको प्राप्त करता है ॥५ - ८॥
राहुद्वारा सूर्यके ग्रस्त हो जानेपर ( सूर्यग्रहण लगनेपर ) सन्निहति तीर्थमें किये गये श्राद्धके समान वहाँका श्राद्ध पुण्यप्रद होता है; इसमें अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये । पूर्वसमयमें वायुने कहा था कि ओजसतीर्थमें किये गये श्राद्धका क्षय नहीं होता है । इसलिये प्रयत्नपूर्वक वहाँ श्राद्ध करना चाहिये । चैत्र मासके शुक्लपक्षकी षष्ठी तिथिके दिन जो उसमें श्रद्धापूर्वक स्त्रान करेगा, उसके पितरोंको अक्षय ( कभी भी क्षय न होनेवाले ) जलकी प्राप्ति होगी । तीनों लोकोंमें विख्यात एक ' पञ्चवट ' नामका तीर्थ है, जहाँ स्वयं भगवान् महादेव योगसाधना करनेकी मुद्रामें विराजमान हैं ॥९ - १२॥
उस ( पञ्चवट ) स्थानपर स्त्रान करके देवाधिदेव महादेवकी पूजा करनेवाला मनुष्य गणपतिका पद और देवताओंके साथ आनन्द प्राप्त करता हुआ प्रसन्न रहता है । श्रेष्ठ द्विजो ! ' कुरुतीर्थ ' विख्यात तीर्थ है, जिसमें कुरुने कीर्तिकी प्राप्तिके लिये धर्मकी खेती करनेके होकर इन्द्रने कहा - सुन्दर व्रतोंके करनेवाले राजर्षि ! तुम्हारी इस तपस्यासे मैं संतुष्ट हूँ । ( सुनो ) इस कुरुक्षेत्रमें जो लोग इन्द्रका यज्ञ करेंगे, वे लोग पापरहित हो जायँगे और पवित्र लोकोंको प्राप्त होंगे । इतना कहकर इन्द्रदेव मुस्कराकर स्वर्ग चले गये । बिना खिन्न हुए इन्द्र बारंबार आये और उपहासपूर्वक उनसे ( उनकी योजनाके सम्बन्धमें कुछ ) पूछ - पूछकर चले गये । कुरुने जब उग्र तपस्याद्वारा अपनी देहका कर्षण किया तो इन्द्रने प्रेमपूर्वक उनसे कहा - ' कुरु ! तुम्हें जो कुछ करनेकी इच्छा हो उसे कहो ' ॥१३ - १८॥
कुरुने कहा - इन्द्रदेव ! जो श्रद्धालु मानव इस तीर्थमें निवास करते हैं, वे परमात्मरुप परब्रह्मके लोकको प्राप्त करते हैं । इस स्थानसे अन्यत्र पाप करनेवालों एवं पञ्चपातकोंसे दूषित मनुष्य भी इस तीर्थमें स्त्रान करनेसे मुक्त होकर परमगतिको प्राप्त करता है । ( लोमहर्षणने कहा - ) श्रेष्ठ ब्राह्मणो ! कुरुक्षेत्रमें कुरुतीर्थ सर्वाधिक पवित्र है । उसका दर्शन कर पापात्मा मनुष्य ( भी ) मोक्ष प्राप्त कर लेता है तथा कुरुतीर्थमें स्त्रानकर पापोंसे छूट जाता है एवं कुरुकी आज्ञासे परमपद ( मोक्ष ) - को प्राप्त करता है ॥१९ - २२॥
फिर ( कुरुतीर्थमें स्त्रान करनेके बाद ) शिवद्वारमें स्थित स्वर्गद्वारको जाय ( और स्त्रान करे ); क्योंकि वहाँ ( शिवद्वारमें ) स्त्रान करनेसे मनुष्य परमपदको प्राप्त करता है । शिवद्वार जानेके पश्चात् तीनों लोकोंमें विख्यात अनरक नामके तीर्थमें जाय । उस अनरकके पूर्वमें ब्रह्मा, दक्षिणमें महेश्वर, पश्चिममें रुद्रपत्नी एवं उत्तरमे पद्मनाभ और इन सबके मध्यमें अनरक नामका तीर्थ स्थित है; वह तीनों लोकोंके लिये भी दुर्लभ है - ॥२३ - २५॥
जिस ( अनरकतीर्थ ) - में स्त्रान करनेवाला मनुष्य छोटे - बड़े सभी पापोंसे छूट जाता है । जब वैशाखमासकी षष्ठी तिथिको मङ्गल दिन हो तब वहाँ स्त्रान करनेसे मनुष्य पापोंसे छूट जाता है । ( उस दिन ) खाद्य पदार्थसे संयुक्त चार करक ( करवे या कमण्डलु ) एवं मालपुओं आदिसे सुशोभित कलशका दान करे । पहले अन्नसे युक्त करवोंसे देवताकी पूजा करे, फिर सम्पूर्ण पापोंके नाश करनेवाले कलशका दान करे । जो मानव इस विधानसे स्त्रान करता है, वह सम्पूर्ण पापोंसे छूट जायगा और परमपदको प्राप्त करेगा । इसके अतिरिक्त ( वैशाखके सिवा ) अन्य समयमें भी मङ्गलके दिन षष्ठी तिथि होनेपर उस तीर्थमें की हुई पूर्वोक्त क्रिया मुक्ति देनेवाला होगी ॥२६ - ३०॥
श्रेष्ठ द्विजो ! वहीं समस्त पापोंका विनाश करनेवाला तीर्थ - शिरोमणि काम्यकवन नामका एक तीर्थ है । जो मनुष्य उसमें स्त्रान करता है, वह सभी देवोंकी अनुमतिसे परमपदको प्राप्त करता है । इस वनमें प्रवेश करनेसे ही मनुष्य अपने समस्त पापोंसे छूट जाता है । इस पवित्र वनमें पूषा नामके सूर्यभगवान् प्रत्यक्ष रुपसे स्थित हैं । द्विजश्रेष्ठो ! उन सूर्यभगवानके दर्शनसे मुक्ति प्राप्त होती है । रविवारको उस तीर्थमें स्त्रान करनेवाला मनुष्य विशुद्ध - देह हो जाता है और अपने मनोरथको प्राप्त करता है ॥३१ - ३४॥
॥ इस प्रकार श्रीवामनपुराणमें इकतालीसवाँ अध्याय समाप्त हुआ ॥४१॥