गौतम बहुतही खुश था क्योंकी गौरीने आज उसे एक प्यारा बेटा दिया था.गौतमको कभी अपने पिताजिका प्यार मिला नहीं क्योंकी उसके माँ-बाप बहुत अर्सेसे अलग रह रहें थे.इसलिए गौतम चाहता था की वो अपने बेटेको अँज अ फादर सारी खुशियाँ देगा.जो एक बापको अपने अपने बच्चोंकेलिए करना चाहीए वो सारी बातें वो करेगा.गौतमकीं जिंदगीमे सबकुछ था.ऐशोआरामकीं जिंदगी और पैसा पर एक कम्प्लीट फँमिली नहीं थी.गौतमकीं माँने उसे बडे नाजोंसे पाला था फीरभी कही ना कही उसे अपनी जिंदगी अधुरी लगतीं थी.
बेटेके आनेसे आज गौतमकी जिंदगीकी ये कमींभी पुरी हो गयी.गौतमकी माँ,गौरी ,गौतम और नन्हासा राजकुमार आर्यन..एक कम्प्लीट फँमिली. धिरे धिरे आर्यन तीन महींनेका हुवा और गौरीने ऑफीस जाना शुरु कर दिया.गौरीके इस फैसलेंसे गौतम थोडा नाराज था लेकीन गौरींकी महत्त्वाकांक्षाओका सम्मान करके गौतमने गौरीको नौकरी करनेकी इजाजत दी.
गौतमकी माँ और गौरीका रीश्ताभी साँस-बहु कम और माँ-बेटी का ज्यादा था.इसलिए गौतमकी माँने आर्यनकी पुरी जिम्मेदारी ली और गौरीके फैसलेंका सम्मान रखा.आज बहुत दिनोंबाद गौरी ऑफीस जानेवाली थी.मन ही मनमें वो बहुत खुश थीं लेकीन आर्यनके लिए वो थोडी उदासभी थी."कुछ पानेकेलिए कुछ खोना पडता है इस हीसाबसे अगर मुझे करीअरपे ध्यान देना है तो आर्यनको कुछ देर छोडनाहीं पडेगा और फीर साँसुमाँभी है.मैं बिनावजहही आर्यनके लिए चिंतित हो रहीं हुँ.",ऐसे बहुत सारे खयाल गौरीकें दिमागमें चल रहें थे.गौतम नाश्तेकें टेबलपें आ बैठा.
"हो गयी तुम्हारी तैयारी."
"हाँ,हो गयी.नाश्ता करके निकलते है."
"नाश्ता रहनेदो,ऑफीसमें कर लेंगे."
"जल्दी निकलो,मूझे देर हो रहीं है."
गौरी थोडीं नाराज थी.मेरा पहला दिन है और ये है की इसे तो हमेशा अपनींही पडी होंती है.गौतम गाडी लेंके बाहर खडा था और हॉर्न बजाने लगा.गौरीभी मुँह फुँलाकर उसके साथ गाडींमे जाके बैठ गयी.गौरीको लग रहाँ था अब ये मुझे रेल्वेस्टेशनपें छोडेगा और निकल जाएगा.गाडी रेल्वेस्टेशन रस्तेसेंही जा रहीं थी की अचानक एक हॉटेलकें सामने गौतमने गाडी पार्क की.हमेशाकी तरह ओठोंहीओठोंमें मुस्कुराते हुए कहाँ,"सरप्राईज".
गौरीके चेहरेंकी तो रौनकहीं बदल गयी.दोंनो हॉटेलके अंदर गए.गौतमने पहलेसेही टेबल बुक करके रखा था.अभी तुम्हारी ट्रेन आनेंमे एक घंटा बाकी है,इसका मतलब हमारे पास 45मिनिट है जो हम शांतीसे यहाँपें गुजार सकते है.सिर्फ तुम और मैं.गौरी बहुतही खुष थी.गौरीने अपनी पसंदका नाश्ता ऑर्डर कीया.गौतमने बात करना शुरू कीया.
"आज बहूतहीं खुबसुरत लग रहीं हो मेरी जान.कोईभी नहीं कहेंगा एक बच्चे की माँ हो तुम.मै चाहताँ हुँ की तुम अपने सारे सपने पुरे करो.आर्यनकी चिंता करनेकी कोई जरूरत नहीं,माँ सब संभाल लेगी.और फीर शामके पाँच बजेतककाहीतो सवाल है.मै बस तुम्हें तुम्हारी सेकंड इनिंगकेलिए बेस्ट ऑफ लक कहना चाहता था."गौतमने धीरेसे एक गिफ्ट टेबलपें रखा.गौरीने गिफ्ट खोला.एक स्मार्टफोन था.गौरीने तुरंत दोनोंका एक सेल्फी निकाला और स्मार्टफोन कें स्क्रीनपर सेट कीया.दोनोंही बहुत खुश थे.प्यारभरीं बातोंमे वक्त कैसे गुजर गया दोनोंकेही ध्यानमें नहीं आया.
नाश्ता खत्म करके दोनो रेल्वेस्टेशन गए.गौरीकी ट्रेन आनेतक दोनोंने इंतजार कीया.उसे ट्रेनमें बैठने दियाँ.खिडकीमें उसके करीब जाकर गौतम बहुतहीं प्यारभरीं नजरोंसे गौरीको देखता रहाँ.गौरीभी गौतमकों अपनी निगाहोंमें समा रहीं थी.कुछ ही देरमें ट्रेन चली गयीं.गौतमभी अपने ऑफीसकेलिए निकल पडा.गौतमकों शामका इंतजार था.गौतम शामको अपनी माँ,आर्यन और गौरीके साथ डीनरके लिए बाहर जानेवाला था.वो मनहीमनमें ईश्वरसे दुवाँ करता था की उसके आशियाँनेको कीसीकी नजर ना लगे.गौतम ऑफीससे जल्दी घर लौट आया.आर्यनको गोदमें लेकर वो घरमेंही टहल रहाँ था.तभी उसने टी.वी.ऑन कीया.टी.व्हीमे रेल्वेस्टेशनपें बॉम्ब फटनेकी न्युज आ रहीं थी.गौतमने फौरन आर्यनको माँ के पास दियाँ और रेल्वेस्टेशन की तरफ निकल पडा.
गौतमने गौरीका फोन ट्राय कीया जो लगहीं नहीं रहा था.रेल्वेस्टेशनपें चारोंतरफ धुवाँ ही धुवाँ था.बहुत सारी लाशें पडीं थी.जो जिंदा थे वो दर्दसे सहमेसे थे.गौतम बहुतहीं डर गया था.गौरीकी ट्रेनभी 4.15बजे आनेवाली थी और ये हादसा उसी वक्त हुवाँ था.गौतमकी नजरे केवल गौरीकोंही ढुँढ रहीं थी.गौतमकी आँखे वो मंजर सह नहीं पा रहीं थी लेकीन गौरीके लिए वो बेचैन हो रहाँ था.घुमते फीरते वो एक जगहपें ठहर गया तभीं उसे गौरीके कपडे नजर आए.उसका दिल मान नहीं रहा था की ये गौरी हो सकती है लेकीन उसने उस लाशका चेहरा देखा तो वो गौरीही थी.
कुछ दिन गौतम खुदको संभाल नहीं पाया.आर्यनका तो उसे होशहीं नहीं था.एक दिन दोपहरको आर्यनके रोनेकी आवाजने उसे नींदसे जगाया और गौतम होशमें आया.उसे अपने जीनेकी वजह आर्यनमें मिली.उसने एक नयी शुरूवात करनेकी कोशिश की.
बॉम्बस्फोट को एक साल पुरा होने के मौकेपर एक रीपोर्टर उसके घर आया.गौतमने उस रीपोर्टरको अपना इंटरव्ह्यू दिया.इस मुलाकातमें गौतमने उन आंतकवादीयोकोंभी एक संदेशा दिया,"तुम लोग कीतनीभी कोशिश करलो,तुम्हारी पराजय निश्चित है.तुम्हारी ये जीत थोडेही वक्त के लिए है.तुम लोग हम आम आदमियोंका कुछ नहीं बिघाड सकते.तुम आशियाँने तोडनेकी कोशिश करो हम उसे सवारनेंकी कोशिश करेंगे.हम फीरसे जिंदगीकी एक नयी शुरूवात करेंगे.मै और मेरा बेटा आजभी जी रहे है."
इस हादसे के बाद गौतमकी जिंदगी अब पुरी तरह बदल गयी.गौतमने खुदका आशियाँना तो खो दिया था लेकीन उसी बॉम्बस्फोट में बिखरे हुए आशियाँने खडे करनेकी कोशिश वो करने लगा.गौरीके नामसेंही उसने मदत केंद्र खोला और आतंकवाद के शिकार हुए लोंगोका हौसला बढाना,उन्हे रोजगार दिलाना ऐसे कामोंमे गौतम अपना वक्त बिताने लगा और जिंदगी के कहीं आयाम उसे नजर आने लगे.अबतक वो सिर्फ खुदका आशियाँना कैसे महफुस रहेगा ये सोचता था लेकीन अब ये सारी दुनियाँही एक आशियाँना होती है.फरक सिर्फ इतना होता है हम खुदको चार दिवांरोंमे बंद करके उसेही अपना आशियाँना समझते है ये बात उसे जिंदगीने सिखा दी.