“फिर भी" वसन्तसेना ने कहा, “मुझे ऐसा लग रहा है कि अच्छा यहीं होगा यदि मैं अपने गहने आपके पास छोड़ जाऊं। फिर किसी दिन आकर ले जाऊंगी।"
“जैसे आपकी इच्छा," चारुदत्त ने उत्तर दिया, इस पुराने घर में हम उन्हें सुरक्षित रखने का पूरा प्रयत्न करेंगे।"
वसन्तसेना ने अपने सारे गहने उतार कर चारुदत्त को दे दिये। चारुदत्त ने उन्हें मैत्रेय को देते हुए कहा,“इन्हें सुरक्षित रखने का प्रबन्ध करो।"
उसके बाद चारुदत्त और मैत्रेय, वसन्तसेना और मदनिका को उनके घर पहुंचाकर अपने घर लौट आये।
अब चारुदत्त हर वक्त वसन्तसेना के बारे में ही सोचता था| उसकी मूर्ति हर समय उसके मन पर छायी रहती थी। उसे आशा थी कि अगले ही दिन वह अपने गहने लेने के लिए आयेगी। लेकिन उसे चारुदत्त पर इतना विश्वास था कि वह कई दिन तक नहीं आई। चारुदत्त परेशान हो उठा। अपने टूटे-फूटे घर में इतने कीमती गहने रखने में उसे डर लगता था। यदि चोरों को पता लग गया तो वे इन कीमती चीजों को चुराने का प्रयत्न करेंगे। इसके अतिरिक्त, चारुदत्त को वसन्तसेना को देखने की भी बड़ी उत्कण्ठा थी इसीलिये वह उसके आने की राह बेसबरी से देख रहा था।
कुछ दिन बाद उसे लगा कि वह अब और अधिक प्रतीक्षा नहीं कर सकता। उसने मैत्रेय को वसन्तसेना के पास यह पता लगाने के लिए भेजा कि वह अपने गहने लेने कब आयेगी या वह स्वयं उन्हें लेकर उसके घर आये। वसन्तसेना ने वायदा किया कि वह कल साँझ चारुदत्त के यहाँ आयेगी।