उनकी तपस्या इतनी उग्र थी कि देवता लोग घबरा उठे। यहां तक कि देवराज इन्द्र को भी लगा कि उनकी गद्दी खतरे में है। इस खतरे को दूर करने के लिए उन्होंने अपनी सभा की सबसे रूपवती और चतुर अप्सरा को बुलाकर कहा कि वह धरती पर जाये और किसी भी तरह विश्वामित्र की तपस्या भंग करे ।
मेनका सहमत हो गई और विश्वामित्र के पास पहुंची। उसने उनके चारों ओर घूम घूमकर नाचना और गाना शुरू कर दिया। विश्वामित्र उस समय ध्यानमग्न होकर तपस्या कर रहे थे। लेकिन उनकी यह तपस्या देर तक नहीं चल सकी। विश्वामित्र मेनका के सौन्दर्य से पराजित हो गये और उनकी तपस्या भंग हो गई। उन्होंने मेनका से विवाह कर लिया और वे दोनों इकटठे रहने लगे।
कुछ समय बाद उनके यहां एक अति सुन्दर कन्या का जन्म हुआ। अब मेनका का ध्येय पूरा हो चुका था।
वह वापिस इन्द्र सभा में जाना चाहती थी। इसलिए उसने बच्ची विश्वामित्र को देनी चाही लेकिन वह फिर से तपस्या आरम्भ करना चाहते थे। उन्होंने बच्ची को अपने पास रखने से इनकार कर दिया। मेनका बच्ची को इन्द्रलोक नहीं ले जा सकती थी। इसलिए उसने बच्ची को वहीं जंगल में छोड़ दिया और स्वयं इन्द्रसभा में चली गई।
नन्ही बच्ची अकेली वन में पड़ी थी। जल्दी ही उसके चारों ओर कई पक्षी इकट्ठे हो गये। उन्होंने अपने पंख बच्ची के ऊपर फैला दिये जिससे वह ठंड से बच सके।