"ओह, इनकी देखभाल करना,” वह अनुसूया और प्रियंवदा से बोली। "मैं इन सबको तुम्हारी देखरेख में छोड़ रही हूँ।" 

उसके बाद महर्षि कण्व और माता गौतमी ने उसे शिक्षा दी कि उसे अपने नये घर में कैसा व्यवहार करना चाहिए। उन्होंने उसे आशीर्वाद और शुभ कामनायें भी दी। 

“एक और बात,” अनुसूया बोली, “यदि राजा कहे कि वह तुम्हें नहीं जानते तो उनकी अंगूठी उन्हें दिखा देना।"

"कसी अजीब बात कह रही हो...!" शकुन्तला अचरज से बोली। “मेरे पति ऐसी बुरी बात क्यों कहेंगे।"

"अरे यह तो एक मजाक है..!" प्रियंवदा बोली, “फिर भी उनको अंगूठी दिखा देना।”

शकुन्तला जाने लगी तो महर्षि कण्व बहुत उदास हो उठे। “अब मुझे पता चला कि लड़की को विदा करते समय माता-पिता की क्या दशा होती है।” वे बोले “तपस्वी होते हुए भी इस विचार से कि वह जा रही है मेरा दिल भारी हो रहा है।" 

शकुन्तला ने उनके गले से लगकर कहा, “बाबा, मुझे आपकी बहुत याद आयेगी।"

महर्षि कण्व ने उसे प्यार से थपथपाया और धन-धान्य से परिपूर्ण होने का आशीर्वाद दिया। जब वह माता गौतमी और दो तपस्वी लड़कों के साथ जा रही थी तो उसे लगा कि पीछे से कोई उसका आंवल खींच रहा है। उसने मुड़कर देखा । वही नन्हा हिरण शावक था जिसे उसने पाला था।

"मेरे प्रिय, अब मुझे रोकने से कोई लाभ नहीं होगा," शावक के मुख को ऊंचा करके उसे थपथपाती हुई|

आंखों में आंसू भर कर वह बोली "तुम्हें मुझे छोड़ना ही पड़ेगा, मेरे प्रिय शावक...! लेकिन तुम्हारी देखरेख में कोई कमी नहीं होगी।"

माता गौतमी और दो युवक तपस्वियों के साथ शकुन्तला दुष्यन्त के महल की ओर चल पड़ी।

यह एक लम्बी यात्रा थी और उन्हें हस्तिनापुर पहुंचने में कई दिन लग गए। इसी बीच में दुष्यन्त दुर्वासा के श्राप के प्रभाव से शकुन्तला को और महर्षि कण्व के आश्रम में जाने की बात और जो सब कुछ वहाँ हुआ था, बिलकुल भूल गये थे। जब शकुन्तला अपने साथियों के साथ महल में पहुंची तो राजा को सन्देश भेजा गया कि महर्षि कण्व के आश्रम से दो युवक तपस्वी और दो स्त्रियां आई हैं।

राजा ने अपने सेवकों से अतिथियों का उचित आदर सत्कार करने के लिए कहा। उसके बाद वह उनसे मिलने गया। उसने सम्मान के साथ सबका अभिवादन किया और महर्षि का कुशल समाचार पूछा।

"आपके लिए मैं क्या कर सकता हूँ ?” उसने उनसे पूछा, “महर्षि का क्या आदेश है ? आश्रम में सब ठीक तो हैं ?" 

"महर्षि स्वस्थ और सानन्द हैं," एक तपस्वी युवक ने उत्तर दिया। "उन्होंने महाराज के लिए एक विशेष सन्देश भेजा है।" 

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