“हे ईश्वर, अंगूठी का क्या हुआ...!" वह चिल्लाई, "निश्चय ही मैंने उसे रास्ते में खो दिया है।" उसने अब स्वयं को बहुत असहाय अनुभव किया।
"शायद जब तुम नदी में नहा रही थीं तब वह खो गई होगी,” गौतमी दुखी होकर बोली।
"अच्छा, अच्छा," राजा ने मुस्कराहट को दबाते हुए कहा, “एक और मनगढन्त कहानी।"
शकुन्तला अब और न सह सकी। वह रोने लगी और अपने भाग्य को कोसने लगी। तपस्वी युवकों को बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने राजा से कहा कि उसका व्यवहार अनुचित है। लेकिन दुष्यन्त अपनी बात पर अड़े रहे और दुहराते रहे कि इससे पहले वह शकुन्तला से मिले ही नहीं।
"हमने वैसा ही किया जैसे हमें बाबा ने करने को कहा था। उनका सन्देश भी आपको दे दिया है," तपस्वी युवक बोले। “यह रही आपकी पत्नी...! अब आप जाने, आपका काम जाने। इसे रखो या बाहर निकालो। अब हमें वापिस आश्रम जाना चाहिए।” युवक और गौतमी वापिस चल पड़े।
शकुन्तला रोने लगी और चिल्लाई, “माता गौतमी और प्यारे भाइयो, मुझे अकेली छोड़कर मत जाओ। मुझे अपने साथ बाबा के पास ले चलो। मैं यहाँ क्या करूँगी।"
लेकिन युवक गुस्से में थे। वे बोले, “तुमने हमें काफी परेशान कर लिया। हम जानते हैं कि राजा आश्रम में आये थे और उन्होंने तुम से विवाह किया था। लेकिन राजा तो समझता है कि हम झूठ बोल रहे हैं। यह तुम्हारे पति का घर है और तुम्हारा स्थान यहीं है चाहे जो भी हो।"
इन क्रूर शब्दों को शकुन्तला नहीं सह सकी। उसे इतना धक्का लगा कि वह बेहोश हो गई। फिर एक अजीब सी बात हुई। सफेद कपड़ों में एक सुन्दर स्त्री बादलों में से निकलकर प्रकट हुई और बेहोश शकुन्तला को उठाकर लोप हो गई। सब लोग चकित से ताकते ही रह गये। राजा अपने प्रकोष्ठ में वापिस आये लेकिन जो दृश्य उन्होंने देखा था उससे वह बहुत परेशान थे।
इसमें सन्देह नहीं था कि शकुन्तला एक अतीव सुन्दर और भद्र महिला थी। लेकिन जो कुछ उसने कहा था उस पर उन्हें विश्वास नहीं आ रहा था। यह भी सच था कि उनकी अंगूठी उनके पास नहीं थी लेकिन उन्हें याद नहीं आ रहा था कि उन्होंने उसे किसे भेंट में दिया था, शकुन्तला को या किसी और को।
दुष्यन्त के राजमहल में आते समय शकुन्तला, माता गौतमी और दोनों तपस्वी कई जगह आराम करने के लिए ठहरे थे। शकुन्तला ने गंगा नदी में स्नान भी किया था और अंगूठी उसको बिना पता चले ही वहीं गिर गई थी। एक मछली ने उसे निगल लिया था। कुछ दिनों के पश्चात् वह मछली एक मछेरे ने पकड़ ली। चूंकि मछली बहुत बड़ी थी उसने सोचा कि वह उसे बेचेगा नहीं बल्कि अपने परिवार के लिए ले जाएगा। जब उसने मछली को चीरा तो उसके भीतर एक सुन्दर अंगूठी पाकर उसे बहुत अचरज हुआ।
“इसे बेचने से हमें अच्छे पैसे मिलेंगे,” उसकी पत्नी बोली।
"हां, हां, अवश्य,” मछेरे ने उत्तर दिया। “मैं इसे बाज़ार ले जाकर बेच दूंगा।"
मछेरा अंगूठी लेकर बाज़ार चला गया। लेकिन कुछ सिपाहियों ने राजा की अंगूठी देख ली। उन्होंने सोचा कि शायद मछेरे ने इसे चुराया है। वे उसे महल में ले गये। एक सिपाही राजा को अंगूठी दिखाने चला गया। उसने बताया कि उसने एक मछेरे को इस अंगूठी के साथ पकड़ा है। राजा ने अंगूठी को बस एक बार देखा और वह बिलकुल बदल गये।
"अंगूठी बहुत कीमती है," अंगूठी की ओर देखते हुए राजा बोले।
उन्होंने आदेश दिया कि मछेरे को छोड़ दिया जाय और खूब इनाम दिया जाय । सिपाही चकित हो उठा लेकिन राजा का आदेश तो आदेश ही था और मछेरा खुशी- खुशी घर चला गया।