राजा भीम ने नल और दमयन्ती का विवाह बहुत धूमधाम से किया। कुछ दिनों पश्चात वर-वधू खुशी खुशी निषध चले गये। जब दमयन्ती के स्वयंवर के बाद देवता घर लौट रहे थे तो उन्हें कलि (बुराई का देवता) अपने साथी द्वापर के साथ पृथ्वी की ओर जाते हुए मिला।
इन्द्र ने कलि से पूछा कि, “वह अपने मित्र के साथ इतनी जल्दी-जल्दी कहाँ जा रहा है?”
"हम दमयन्ती के स्वयंवर में जा रहे हैं|" कलि ने उत्तर दिया, "मैंने उसे अपनी पत्नी बनाने का निश्चय किया है।"
देवता हंस पड़े और कहा, “तुम्हें देर हो गई है। स्वयंवर समाप्त हो चुका है और दमयन्ती ने नल को पति चुन लिया है।"
कलि यह नहीं सह सका। वह क्रुद्ध होकर चिल्लाया, “मैं नल को पाठ पढ़ाऊंगा । जरा ठहरो और देखो मैं क्या करता हूँ।"
देवताओं ने उसे क्रोध में आने पर जो खतरे आ सकते हैं उनके बारे में बताया और अपना रास्ता पकड़ा। तब कलि अपने मित्र द्वापर से बोला,
“यह तो हमारा भारी अपमान है। मैं सौगन्ध खाता हूँ कि नल को उसके राज्य से निकालकर रहूँगा। उसका जीना दूभर कर दूंगा। उसके जीवन में किसी कमज़ोर क्षण के आने की प्रतीक्षा करूँगा और अवसर पाते ही उस पर हावी हो जाऊँगा । फिर वह मेरी दया पर निर्भर होगा।"
नल अपनी रानी के साथ बहुत आनन्द से रह रहा था। अपने राज्य पर वह अच्छी तरह शासन कर रहा था। वह न्यायप्रिय था, सब काम ठीक तरह से ठीक समय पर करता और बड़ी ईमानदारी से अपना जीवन बिता रहा था। समय पर दमयन्ती और नल के दो बच्चे हुए। और इस प्रकार समय बीतता गया। कलि प्रतीक्षा कर रहा था।
नल के जीवन में वह ऐसे क्षण की खोज में था कि जब वह उस पर हावी हो सके। उसे पूरे बारह लम्बे वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। तब एक दिन नल जल्दी में था। वह एक धार्मिक अनुष्ठान में उपस्थित होने से पहले अपने को ठीक तरह से शुद्ध न कर सका।