कलि ने नल के जीवन की इस कमी को देखा जिसके बारे में नल ने सोचा तक न था। यह अवसर पाकर वह नल के जीवन में प्रवेश कर गया। उस दिन से उसने नल को हथिया लिया। अब वह पुराना नल नहीं था। वह ज़रा-ज़रा-सी बात पर गुस्सा हो जाता और सारा समय चिड़चिड़ा-सा रहता। वह लोगों की छोटी-छोटी गलतियाँ देखता और उनपर चिल्लाता । नल जुआ खेलने का शौकीन था। यह खेल वह अपने मित्रों, मन्त्रियों और कभी-कभी दमयन्ती के साथ भी खेलता। नल का एक पुष्कर नाम का भाई था।
पुष्कर नल से बहुत ईर्ष्या करता था, लेकिन उसके सामने उसकी एक न चलती थी। कलि पुष्कर से मिला और उससे वायदा किया कि वह नल को राज्य से बाहर निकालने और उसका राज्य हथिया लेने में उसकी सहायता करेगा।
पुष्कर राज्य पर अधिकार करने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। कलि ने पुष्कर को सलाह दी कि नल को जुआ खेलने के लिए निमन्त्रण दे।
बाजी जीतने में वह पुष्कर की सहायता करेगा। पुष्कर ने नल को जुआ खेलने के लिए ललकारा। नल को यह विचार तब असह्य था कि उसका छोटा भाई पुष्कर उसे खेलने के लिए चुनौती दे। वह अपने आपको एक निपुण खिलाड़ी समझता था। उसने चुनौती को स्वीकार कर लिया। और सोचा कि वह पुष्कर को ज़रा मज़ा चखायेगा। खेलने का समय निश्चित हो गया|
कलि ने अपने मित्र द्वापर को बुलाकर कहा कि खेलने के पासे में प्रवेश करके वह हर बार पुष्कर को बाजी जिताये। द्वापर राजी हो गया। खेल शुरू हुआ। नल प्रारम्भ से ही हारने लगा। लेकिन बराबर उसे यही आशा बनी रही कि अगली बाजी वह अवश्य जीतेगा। किन्तु वह हर बार हारता ही गया।
दाँव बहुत ऊँचा था और एक-एक करके वह अपना सब कुछ हार रहा था। दमयन्ती ने खेल बन्द कर देने के लिए नल की बहुत मिन्नत की, उसके मन्त्रियों और मित्रों से भी खेल बन्द करने के लिए कहा लेकिन नलने एक न सुनी। उसके भीतर तो कलि था और उसका प्रभाव इतना अधिक था कि जो कोई भी उसे खेल बन्द करने के लिए कहता उसी पर वह गुस्सा हो जाता।
दमयन्ती आने वाली दुर्घटना की संभावना देख रही थी। उसने नल के सारथी से अपने दोनों बच्चों को अपने पिता के घर पहुंचा पाने के लिए कहा। सारथी ने ऐसा ही किया। नल सब कुछ हार गया, अपना राज्य, अपना महल, और कोष भी। यहाँ तक कि वह अपने राजसी कपड़े भी खो बैठा। अन्त में पुष्कर ने उससे दमयन्ती को दाँव पर लगाकर खेलने के लिए कहा। लेकिन नल इससे सहमत न हुआ और खेलना बन्द कर दिया।
नल खड़ा हो गया| उसने अपना मुकट, आभूषण तथा कपड़े उतार कर फेंक दिये और बाहर निकल गया। दमयन्ती ने भी अपने आभूषण मूल्यवान कपड़े उतार कर साधारण कपड़े पहन लिए और नल के पीछे हो ली। पुष्कर ने राज्य पर अधिकार कर लिया और आदेश दिया कि जो कोई भी नल की सहायता करने का यत्न करेगा उसे मौत के घाट उतार दिया जायेगा।
नल और दमयन्ती एक-एक वस्त्र में महल से निकल पड़े। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ जाएं। निषध में वे कहीं भी नहीं रह सकते थे।