ऋतुपर्ण राजा भीम के पास गये। अयोध्या के राजा का इस तरह अचानक आना देखकर भीम आश्चर्य में पड़ गया। उधर वहाँ स्वयंवर की कोई तैयारी न देखकर राजा ऋतुपर्ण को भी कुछ अंटपटा सा लगा।
उसने विदर्भ के राजा का अभिवादन किया और कहा, “मैं आप से मिलने के लिए आया हूँ।"
राजा भीम को इस बात पर विश्वास तो नहीं आया लेकिन उसने अतिथि का आराम से रहने का सारा प्रबन्ध कर दिया। दमयन्ती ने एक रथ के बहुत तेजी से आने की आवाज़ सुनी थी। वह जानती थी कि यह चमत्कार केवल नल ही कर सकता है। उसने वाहुक को देखा। उसे विश्वास नहीं आ रहा था कि यह नल हो सकता है। उसे लग रहा था कि इस सारथी के बारे में कुछ रहस्य है। वह इसका पता लगाना चाहती थी।
दमयन्ती ने अपनी दासी केशनि को बुलाया और कहा, "उस सारथी के पास जाओ जो अभी अभी राजा ऋतुपर्ण के साथ आया है और उसके बारे में सब बातों का पता लगायो। तुम उन शब्दों को दुहरायो जिन्हें मैंने उन दूतों से कहा था जो नल की खोज में गये थे और जो उत्तर मिले उसे मेरे पास लाना।
केशनि वाहुक के पास गई और कहा, “मुझे राजकुमारी दमयन्ती ने भेजा है। वह जानना चाहती हैं कि आप यहाँ किस लिये आये हैं।"
वाहुक ने उत्तर दिया, “मेरे स्वामी ने एक ब्राह्मण से सुना था कि तुम्हारी स्वामिनी कल अपना दूसरा स्वयंवर रचा रही है। वह उसमें उपस्थित होने के लिए उत्सुक था। इस लिए मुझे उसे इतनी तेजी से लाना पड़ा कि वह यहाँ ठीक समय पर पहुँच जाये।"
"तुम्हें याद है कि तुमने तब क्या कहा था जब एक दूत ने तुम से ये शब्द कहे थे ? “ओ जुआरी, तुम अपनी पत्नी को आधा वस्त्र पहने हुए जंगल में छोड़ कर कहाँ चले गये?" केशनि ने पूछा
"हाँ, हाँ, जो मैंने कहा था मुझे याद है," वाहुक ने उत्तर दिया, "और मैं फिर वही दुहराता हूँ। यह दुर्भाग्य था कि जुआरी ने अपनी पत्नी को जंगल में छोड़ा। किन्तु उसका पति उस समय अपने आप में न था। उसे कलि ने बस में कर रखा था। वह अपनी पत्नी की भक्ति का सम्मान करता है। पति के बुरा व्यवहार करने पर भी जो पत्नी अपने पति से प्रेम करती है वह एक सुशील और भद्र महिला है।"
केशनि ने जो कुछ सुना वह सब दमयन्ती को आकर कह सुनाया। दमयन्ती फिर असमंजस में पड़ गई।
इतना बदसूरत आदमी नल कैसे हो सकता है? उसने सोचा कि वह उस पर नजर रखेगी और उसके बारे में और अधिक जानने का यत्न करेगी। उसने केशनि को आदेश दिया कि वह उसके सब कामों पर दृष्टि रखे।
केशनि गई और उसे कुछ अद्भुत बातों का पता चला।