शिवरात्रि का दिन था। मालती की माता ने उसे भगवान महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करीब के नगर के एक शिव मन्दिर में जाने के लिए कहा था। मालती और लवंगिका वहां गई और शिव पर चढ़ाने के लिए पास के बगीचे से फूल इकट्ठे करने लगीं। भगवती कामन्दकी को मालती के मन्दिर जाने के बारे में पता था।
उन्होंने माधव को भी वहां उपस्थित रहने के लिए कहा था। भगवती कामन्दकी भी वहां पहुंच गई। उन्होंने मालती को पास बिठा लिया और उसे बताया कि माधव उसके लिए कितना व्याकुल हो रहा है। मालती को माधव की वेदना के बारे में जान कर बहुत दुःख हुआ। इसके बाद लवंगिका ने मालती की दयनीय अवस्था के बारे में बताया। अचानक वहां का शान्त वातावरण किसी के चिल्लाने से अशान्त हो उठा,
“सावधान, सावधान, एक शेर छूट गया है। वह आदमियों और पशुओं पर हमला कर रहा है। एक लड़की भागती हुई दिखाई दी। वह चिल्ला रही थी|"
“सहायता, सहायता करो। नन्दन की बहन मदयंतिका पर शेर हमला कर रहा है। उसे उस जंगली जानवर से बचाओ।"
माधव तुरन्त दौड़ कर वहां गया और पूछा, “वह कहां है? मदयंतिका कहां है?"
मालती डर से चिल्ला उठी। अचानक कहीं से मकरन्द तलवार से लैस वहां आ धमका और शेर पर झपटा। शेर ने लड़की को तो छोड़ दिया और मकरन्द पर धावा बोल दिया। मकरन्द बहुत वीरता से लड़ा और उसने शेर को मार दिया। लेकिन वह भी बुरी तरह से घायल हो गया था और उसके घावों से खून बह रहा था। कामन्दकी ने तुरन्त मकरन्द को अपने विहार में भिजवा दिया। वहां उसका उपचार अच्छी तरह हो सकता था।
मदयंतिका भी घायल हुई थी लेकिन उसकी हालत चिन्ताजनक नहीं थी। वहां पर उपस्थित लोगों में बहुत डर फैल गया था। लेकिन जल्दी ही फिर सब कुछ शान्त हो गया। मालती, माधव और मदयन्तिका नियमित रूप से मकरन्द की खबर लेने के लिए कामन्दकी के विहार में जाते रहे। कुछ ही दिनों में उसके घाव भर गये और उसकी खोई शक्ति लौट आई। मालती और माधव उसे देखने के लिए प्रति दिन आते थे। एक दिन माधव को सैनिक कवायद में भाग लेना था। इसलिए मालती अकेले ही मकरन्द को देखने के लिए गई।
लौटते समय भगवती कामन्दकी ने मालती को अपने साथ एक भिक्षुणी ले जाने के लिए कहा लेकिन उसने मना कर दिया। कुछ देर बाद भगवती कामन्दकी परेशान हो उठी। उन्हें मालती के बारे में चिन्ता होने लगी थी। उन्होंने एक भिक्षुणी को नगर में यह पता लगाने के लिए भेजा कि मालती ठीकठाक घर पहुंच गई है न| भिक्षुणी को पता लगा कि मालती अभी घर नहीं पहुंची है। वह तुरन्त माधव को यह खबर देने के लिए गयीं।
माधव उसी दम अपना घोड़ा लेकर बाहर निकल आया।