सन् १९८२ में दीवाली की घनी अधेरी डरावनी रात में लोकदेवता कल्लाजी ने अपने सेवक सरजुदासजी के शरीर में अवतरित हो मुझे चित्तौड़ के किले पर लगने वाला भूतों का मेला दिखाया तब मैंने अपने को अहोभाग्यशाली माना कि मै पहला जीवधारी था, जिसने उस अलौकिक, अद्भुत एवं अकल्पनीय मेले को अपनी आँखों से देखा।