चित्तौड़ में कल्लाजी का निवास: कल्लाजी अचानक गायब हो गये तो दुशमन यह नहीं जान पाये कि वे मर गये या किसी ओर चल दिये होंगे| या वे अपने निवास में जाकर छिप गये हैं। यह सब सैनिकों में इस प्रकार फैल गया मानो उन्होने सारी ओर से घेर लिया और तोपों द्वारा पूरे घर को उडा दिया केवल इट और रेतसी रह गई है। कोई नहीं जानता कि कल्लाजी का यह निवास कमाल की हवेली के पास, पत्ता महल के पीछे था। सपूर्ण जीवन संपदों की करुण-कठोर कहानी है। स्वामी-भक्ति और देश से बार मा सर्वस्व समर्पण कर देने में ये सदैव आगे रहे। साठ वर्ष की उम्र में इसने अपना शरीर छोड़ा। नागों का हमारे पाश कई दृष्टियों से बड़ा महत्व और माहात्म्य है|
कल्लाजी नागयोनी में: यह नाग एक समान १ फण से लेकर सहस्त्र फण तक के होते है। कलाजी को अपने काम भनी प्रार की। ये पांच फणी नाग योनि लिये हैं। इनका विच अन्तर्ग, और पाल तीनो लोको में है। जब ये पृथ्वी पर आते हैं तब इन्हें कोई रोक नही पड़ता है। अतः ये अपने सेवकों के शरीर में प्रवेश करते है|
लोक देवता कल्लाजी के करीब ७०० थानक है। इन शानको देवणे या शनि रविवार को चौकी लगती है। बडी सख्या में लोग इन देवरों पर जमा हात हैं और इनके दर्शन कर, इनका आशिष प्राप्त कर कृतार्थ होते है। कल्लाजी सबको सुना है। उनकी हर प्रकार की समस्या का समाधान करते हैं। दुख दूर करते हैं और अमन चेन देते है।
सबका इलाज: सबका समाधान: इनके दरबार से कोई खाली नहीं लौटता। पुत्र विहीन द्रंपनियों की यहां गोद भी जाकर उन्हें संतान प्रदान की जाती है...! पागल कुत्ता, भुजेग, मोहिंग, बि आदि के कटे लोगो का जहर दूर किया जाकर उन्हें चगा बनाया जाता है। गूगे, बहरे, पागल| आकर ठीक होते हैं। मिरगी, हृदय रोगी तथा लकव से पीड़ित यश आगम पाने में पट की बाड, खांसी, बुखार, सर्दी, हैजा, निमोनिया जैसी बीमारियां पलक झप में जिनमें समय में हवा होती हैं।
कैन्सर जैसी असाध्य बीमारियों का भी यहां इलाज है। इनके यहां कोई भी लाइलाज नहीं है। भूत, प्रेत, जिंद, डाकण, चूडैलण भी यहां भागते नजर आने - यह इलाज होता है, केवल शक्ति (तलवार) का स्पर्श देने से, भभूत ('तधन की राख) से या फिर लच्छे की बैल बांधने से। कभी-कभी ये विना शरीर चीरे, खून की एक भी बूद बहाये ऑपरेशन करके भी बीमारी का शमन करते हैं तब अच्छे-अच्छे सर्जन तक आश्चर्यचकित हो देखते रह जाते हैं। अधे कवि सूरदास ने अपने अन्तर की अनुभूतियों से ये पंक्तियां उचरित की थीं जाकी कृपा पंगु गिरि लंगै, अंधे को सब कुछ दरसाई।
बहिरो सुने, मूक पुनि बोले, रंक चलै सिर छत्र धराई। मैंने कल्लाजी के यहां इन पंक्तियों को सार्थक चरितार्थ होते देखी। इनके दरबार में कोई बीमारी ऐसी नहीं जिसका इलाज न हो, कोई समस्या ऐसी नहीं जिसका समाधान न हो। कल्लाजी का जब भी गादी पर पधारना होता है उनके साथ नो देवियां रहती हैं। हरसिद्धि, आवड, करणी, निद्रा, सरस्वती सब की सब इनके कार्यों में हाथ बंटाती हैं। करणी तलवार की नोक पर रहती है जो बीमार के शरीर में प्रवेश कर बीमारी गलाती है। आवह मूठ पर रहती है। कृपा के भाई बलगम भी ये ही थे जिन्होंने कुरूक्षेत्र के युद्ध में अपना लोहा दिया। म मा लक्षण भी ये ही थे जिन्होंने शूर्पणखा की नाक काटी और सीता जगाई| इसलिए इनकी कीर्ति की यश गाथा हजारों कोस तक गाव में हेलो कास हजार|