लो आ गया फिर से बारिशों का मौसम,
या यूं कहे कागज़ और कलम का मौसम
अब दिलों की स्याही कागजों पर उतरेगी इस कदर
फिर उनसे मुलाकात या बिछड़ने की घड़ी हो उस कदर
फिर से बारिश में आंखों की नमी घुल जाएगी
देखने वालों को ना ये कभी समझ आएगी
वो अंदर ही अंदर अपने जख्मों को कुरेदता रहेगा
भावनाओं की बारिश में अकेला ही भीगता रहेगा।
-KC