राजा के नथुने पर

जब आ बैठा मच्छर,

शहर, शहर, गली, गली

मची प्रचण्ड खलबली।

 

सब दरबारी, वज़ीर,

बड़े बड़े शूर, वीर

भाला, बरछी लेकर

टूट पड़े मच्छर पर।

 

पर उसको पा न सके,

वे उसको छू न सके।

भाला, बरछी लेकर

लौट गए शरमा कर।

 

मार मार कर चकर,

फिर आ बैठा मुच्छर,

राजा के नधुने पर

घड़ी शान से जम कर।

 

मुँह बाए दरबारी

खड़े बड़ी लाचारी,

क्या करते? हाय! बड़ी

विपदा अब आन पड़ी।

 

इतने में एक वीर

झपटा ज्यों, चले तीर।

जमा दिया उस मच्छर पर

इक मुका कस कर।

 

'हाय हाय! हाय! राम!"

कहते राजा घड़ाम

से नीचे लोट गया;

पर मच्छर छट गया।

 

देख वीरता मारी

फूल गए दखारी।

राजा ने भी खुश हो

दिया मंत्रि-पद उसको।

 

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