बहुत पुरानी बात है। एक था बूढा , एक थी बुढिया। एक दिन बूढा मेला देखने गया, वहा पर उसने एक बकरी खरीदी। बकरी लेकर वह घर आया और अगले दिन उसने अपने बड़े बेटे को बकरी चराने भेजा।
लडका चरागाह से शाम तक बकरी चराता रहा और दिन ढलते ही उसे घर वापस ले चला। घर के पास पहुचा ही था कि देखता क्या है - वाडे के फाटक पर लाल लाल जूते पहने बूढा खडा है।
बूढे ने पूछा, “बकरी, री बकरी, तूने कुछ खाया-पिया?"
बकरी बोली.... “नही, बाबा, न मैंने कुछ खाया, न पिया... "
“उछल-कूदकर निकट पेड के जब मे आई,
तब इक पत्ती मौका पाकर मैने खाई।
भरा सरोवर दिखा सामने चलते-चलते ,
झट से बढकर एक बूद बस मैंने पी ली,
खाने को बस यही मिला था,
पीने को बस यही मिला था।“
बूढे को बडा गुस्सा आया कि बेटे ने उसकी प्यारी प्यारी बकरी की ठीक से देखभाल क्यो नहीं की? उसने आव देखा न ताव बेटे को घर से निकाल दिया। दूसरे दिन बूढ़े ने अपने छोटे लडके को बकरी चराने भेजा। लडका सुबह से शाम तक बकरी चराता रहा और दिन ढलने पर घर की ओर चल पड़ा। अभी वह बाडे के फाटक पर पहुचा ही था कि लाल लाल जूते पहने बूढा खडा था।
बूढे ने फिर पूछा, "बकरी, री बकरी, तूने कुछ खाया-पिया?"
"नहीं, बाबा, न मैने कुछ खाया, न पिया," बकरी ने पहले जैसा राग आलापा
“उछल-कूदकर निकट पेड के जब मे आई,
तब इक पत्ती मौका पाकर मैने खाई।
भरा सरोवर दिखा सामने चलते-चलते ,
झट से बढकर एक बूद बस मैंने पी ली,
खाने को बस यही मिला था,
पीने को बस यही मिला था।“
बूढे ने इस लड़के को भी घर से निकाल दिया। तीसरे दिन बुढिया को बकरी चराने भेजा गया। बुढिया दिन भर बकरी चराती रही और शाम होते ही उसे घर वापस ले आई। अभी बुढिया वाडे के फाटक तक पहुची ही थी कि लाल लाल जूते पहने बूढा वहा मौजूद था।
बूढे ने बकरी से फिर वही सवाल किया "बकरी, री बकरी, तूने कुछ खाया-पिया?"
“नही, बाबा, न मैंने कुछ खाया, न पिया," बकरी फिर वही रोना लेकर बैठ गई ,
“उछल-कूदकर निकट पेड के जब मे आई,
तब इक पत्ती मौका पाकर मैने खाई।
भरा सरोवर दिखा सामने चलते-चलते ,
झट से बढकर एक बूद बस मैंने पी ली,
खाने को बस यही मिला था,
पीने को बस यही मिला था।“
बूढे ने अपनी बुढिया को भी निकाल दिया। चौथे दिन वह खुद बकरी चराने गया। दिन भर वह बकरी चराता रहा, दिन ढलते ही वह घर की तरफ चल दिया। लाल लाल जूते पहने बाडे के फाटक पर झट से रुक गया।
इस बार भी बूढे ने बकरी से पूछा, “बकरी, री बकरी, तूने कुछ खाया-पिया?"
"नही बाबा, न मैंने कुछ खाया, न पिया," इसके आगे बकरी ने वही सब फिर कह सुनाया।
“उछल-कूदकर निकट पेड के जब मे आई,
तब इक पत्ती मौका पाकर मैने खाई।
भरा सरोवर दिखा सामने चलते-चलते ,
झट से बढकर एक बूद बस मैंने पी ली,
खाने को बस यही मिला था,
पीने को बस यही मिला था।“
बूढा क्रोध से आग बबूला हो उठा। वह लोहार के यहा जा पहुचा, लोहार से उसने छुरी की धार तेज कराई और घर आकर बकरी को हलाल करने लगा कि इसी बीच वह रस्सी तोडकर निकल भागी। और जंगल मे जा पहुची। जंगल मे उसे खरगोश की बिल दिखलाई दी। वह भीतर पहुचकर बिल के ऊपर छिपकर बैठ गई। ।
इसी समय खरगोश अपनी बिल मे आ पहुचा और उसे लगा कि कोई उसकी बिल मे छिपकर बैठा है। खरगोश ने पूछा, "घर मे कौन है?"
बिल पर बैठी बकरी बोली,
“नक्कू बकरी ,नक्कू बकरी
खाल है मेरी उधड़ी उधडी।
उल्टा पुल्टा मेरा काम
तीन टके है मेरा दाम।
दुम को अपनी हिला-हिलाकर
मारूंगी मै रुला रुलाकर
तुम्हे रौंदकर, कुचल कुचलकर
सिंग मारकर तुम्हे फाडकर
लडना भिडना मेरा काम
होगा तेरा काम तमाम ।“
खरगोश डरकर घर से निकल भागा ओर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। वहा बैठा रोता रहा।
तभी उधर से भालू कही जा रहा था। उसने पूछा “अरे, खरगोशवे, रो क्यो रहा है?”
खरगोश बोला, " भालू भाई, मेरी बिल मे एक खतरनाक जानवर घुसा बैठा है। रोऊ न तो क्या करू?”
भालू ने उसे धीरज बधाया, "मै उसे निकाल बाहर करूगा ..”
झटपट बिल तक जाकर भालू ने पूछा
"खरगोश की बिल मे कौन है?
बकरी ने बिल से ही जवाव दिया
“नक्कू बकरी ,नक्कू बकरी
खाल है मेरी उधड़ी उधडी।
उल्टा पुल्टा मेरा काम
तीन टके है मेरा दाम।
दुम को अपनी हिला-हिलाकर
मारूंगी मै रुला रुलाकर
तुम्हे रौंदकर, कुचल कुचलकर
सिंग मारकर तुम्हे फाडकर
लडना भिडना मेरा काम
होगा तेरा काम तमाम ।“
भालू डरकर बिल से निकल भागा।
"नही, खरगोश, मैं उसे नही भगा सकता। मैं खुद उससे डरता हू।“
भालू ने टके सा जवाब दे दिया। खरगोश फिर पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगा। अचानक उधर से भेडिया निकला। उसे रोता देखकर पूछने लगा
“अरे, खरगोशवे, रो क्यो रहा है?”
खरगोश बोला, “भेडिये भैया, मेरी बिल मे एक खतरनाक जानवर घुसा बैठा हे | रोऊ न तो क्या करू? "
भेडिया बोला, " मै उसे खदेडकर बाहर कर दूगा....”
'भालू हिम्मत हार गया तो तुम्हारी क्या बिसात?" खरगोश
“अरे, मै चुटकियो मे उसे भगा दूगा।“
भेडिया बिल पर पहुचा, उसने आवाज लगाकर पूछा
"खरगोश की बिल मे कौन है?”
“नक्कू बकरी ,नक्कू बकरी
खाल है मेरी उधड़ी उधडी।
उल्टा पुल्टा मेरा काम
तीन टके है मेरा दाम।
दुम को अपनी हिला-हिलाकर
मारूंगी मै रुला रुलाकर
तुम्हे रौंदकर, कुचल कुचलकर
सिंग मारकर तुम्हे फाडकर
लडना भिडना मेरा काम
होगा तेरा काम तमाम ।“
भेडिया भी डर के मारे निकल भागा।
“नही, खरगोश, मैं उसे नहीं भगा सकता। उस जानवर से तो डर लगता है।“
भेडिया भी दुम दबाकर खिसक लिया। खरगोश फिर पहले की तरह पेड़ के नीचे बैठकर रोने पीटने लगा।
अचानक उधर से लोमडी गुजरी, उमने खरगोश को रोता हुआ देखकर पूछा
“अरे, खरगोशवे, रो क्यो रहा है...”
“लोमडी दीदी, मेरी झोपड़ी में एक खतरनाक जानवर घुमा बैठा है। में वेघर हो गया है। रोऊ न तो क्या करू?” खरगोश
लोमडी बोली " मै उसे निकाल बाहर करूंगी।“
"भालू ने कोशिश की, लेकिन हार मान गया, भेडिये ने भी कोशिश की , लेकिन दुम दबाकर भाग गया। आखिर तुम उसे कैसे भगा सकती हो?" खरगोश
"देख लेना, अगर निकाल बाहर न करु तो मेरा नाम भी लोमड़ी नहीं....”
लोमडी ने आवाज लगाई, "खरगोश की बिल मे कौन है?"
तब बकरी बिल से बोली
“नक्कू बकरी ,नक्कू बकरी
खाल है मेरी उधड़ी उधडी।
उल्टा पुल्टा मेरा काम
तीन टके है मेरा दाम।
दुम को अपनी हिला-हिलाकर
मारूंगी मै रुला रुलाकर
तुम्हे रौंदकर, कुचल कुचलकर
सिंग मारकर तुम्हे फाडकर
लडना भिडना मेरा काम
होगा तेरा काम तमाम ।“
लोमडी थर थर कापने लगी और वहा से निकल भागी।
"डर के मारे मेरा बुरा हाल है, में तेरी मदद नहीं कर सकती, खरगोश| "
खरगोश फिर पेड के नीचे बैठकर रोने लगा। वह लगातार सुबकिया ले लेकर रोए जा रहा था।
न जाने कहा से एक केकडा रेंगता रेंगता चला आया और पूछने लगा, "खरगोश भैया, तुम क्यो रो रहे हो?"
“भाई केकडे, मेरी झोपड़ी में एक खतरनाक जानवर घुसा बैठा हैं..तुम ही बताओ, मै रोऊ न तो क्या करू?”
"ठीक है, मैं उसे निकाल बाहर करूगा”
“भालू ने कोशिश की, लेकिन हार मान गया, भेडिये ने भी कोशिश की, लेकिन दुम दबाकर भाग गया, लोमडी ने भी कोशिश की, लेकिन थर थर कापने लगी। तुम भी नाकाम साबित होगे।"
"देख लेना, अगर मै उसे निकाल बाहर न करू तो कहना...”
केकडा झोपड़ी मे रेंगता हुआ घुस गया। फिर उसने जोर से पूछा, "खरगोश की बिल मे कौन है ?
बकरी पहले की तरह बिल से बोली ।
“नक्कू बकरी ,नक्कू बकरी
खाल है मेरी उधड़ी उधडी।
उल्टा पुल्टा मेरा काम
तीन टके है मेरा दाम।
दुम को अपनी हिला-हिलाकर
मारूंगी मै रुला रुलाकर
तुम्हे रौंदकर, कुचल कुचलकर
सिंग मारकर तुम्हे फाडकर
लडना भिडना मेरा काम
होगा तेरा काम तमाम ।“
लेकिन केकडा जरा भी नही डरा। वह रेगता हुआ आगे बढता रहा, धीरे से बिल के अंदर जा पहुचा। वहा उसने बकरी को अपने मजबूत पंजे मे जकड़ लिया और बोला
“मुर्ख नही हू, समझ गई तू?”
उसने इधर पंजा कसा, उधर बकरी मिमियाने लगी। वह बिल से कूदकर बहार आई भागी और सिर पर पैर रखकर गायब हो गई। खरगोश खुशी खुशी उछलने कुदने लगा। वह अपनी बिल मे आया और केकडे के प्रति आभार प्रकट किया। तब से आज तक वह अपनी बिल मे रहता चला आ रहा है।