श्रमाची महती

जरि वाटे भेटावे
प्रभुला डोळ्यांनी देखावे।। जरि....।।

श्रम निशिदिन तरि बापा!
सत्कर्मी अनलस रंगावे।। जरि....।।

प्रभु रात्रंदिन श्रमतो
विश्रांतीसुख त्या नच ठावे।। जरि....।।

प्रभुला श्रम आवडतो
जरि तू श्रमशिल तरि तो पावे।। जरि....।।

पळहि न दवडी व्यर्थ
क्षण सोन्याचा कण समजावे।। जरि....।।

सत्कर्मांची सुमने
जमवुन प्रभुपद तू पुजावे।। जरि....।।

रवि, शशि, तारे, वारे
सागर, सरिता, श्रमति बघावे।। जरि....।।

सेवेची महती जाणी
कष्टांची महती जाणी
कष्टुनिया प्रभुपद गाठावे।। जरि....।।

-धुळे तुरुंग, मे १९३२

मन माझे सुंदर होवो


मन माझे सुंदर होवो
वरी जावो
हरी गावो
प्रभुपदकमली रत राहो।। मन....।।

द्वेषमत्सरा न मिळो अवसर
कामक्रोधा न मिळो अवसर
निष्पाप होउनी जावो।। मन....।।

प्रेमपूर हृदयात भरू दे
भूतदया हृदयात भरू दे
शम, समता, सरिता वाहो।। मन....।।

पावित्र्याचे वातावरण
चित्ताभोवति राहो भरून
कुविचार-धूलि ना येवो।। मन....।।

आपपर असा न उरो भाव
रंक असो अथवा तो राव
परमात्मा सकळी पाहो।। मन....।।

धैर्य धरू दे, त्यागा वरु दे
कष्टसंकटां मिठी मारु दे
आलस्य लयाला जावो।। मन....।।

अशेचा शुभ दीप जळू दे
नैराश्याचे घन तम पळू दे
मनि श्रद्धा अविचल राहो।। मन....।।

सत्याची मज सेवा करु दे
सत्यास्तव मज केवळ जगु दे
सत्यात स्वर्ग मम राहो।। मन....।।

करुनी अहर्निश आटाआटी
ध्येयदेव गाठायासाठी
हे प्राण धावुनी जावो।। मन....।।

-धुळे तुरुंग, जून १९३२

आपण साहित्यिक आहात ? कृपया आपले साहित्य authors@bookstruckapp ह्या पत्त्यावर पाठवा किंवा इथे signup करून स्वतः प्रकाशित करा. अतिशय सोपे आहे.
Comments
Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel