भूषण जगताला!
भूषण जगताला
होइल, भूषण जगताला
भारत मिळवुन श्रेष्ठ पदाला।। भूषण....।।
विद्या येतिल कलाहि येतिल
भारत जरि हा स्वतंत्र झाला।। भूषण....।।
शिकविल समता, स्नेह, सुजनता
देइल जगता शांतिसुखाला।। भूषण....।।
प्रेमाच्या स्वर्गास विनिर्मिल
पूजिल मग शुभ प्रभुपद-कमला।। भूषण....।।
-अमळनेर, ऑगस्ट १९३१
भारतजननी सुखखनि साजो
भारतजननी सुखखनि साजो
तद्विभवाने स्वर्गहि लाजो।। भारत....।।
स्वातंत्र्याची अमृतधारा
प्राशुन निशिदिन रुचिर विराजो।। भारत....।।
विद्यावैभववाङमयशास्त्रे
कलादिकांचा डंका वाजो।। भारत....।।
पावन मोहन सुंदर शोभून
नाम तिचे शुभ भुवनी गाजो।। भारत....।।
दिव्य शांतिची अमृत-सु-धारा
संतप्त जगा सतत पाजो।। भारत....।।
-अमळनेर, १९२९
हृदय जणु तुम्हां ते नसे!
हृदय जणु तुम्हां ते नसे।।
बंधु उपाशी लाखो तरिहि
सुचित विलास कसे।। हृदय....।।
परदेशी किति वस्तू घेता
बंधुस घास नसे।। हृदय....।।
बाबू गेनू जरि ते मरती
तरिही सुस्त कसे।। हृदय....।।
खादी साधी तीहि न घेता
असुन सुशिक्षितसे।। हृदय....।।
माणुसकी कशि तीळ ना उरली
बसता स्वस्थ कसे।। हृदय....।।
जगतामध्ये निज आईचे
हरहर होइ हसे।। हृदय....।।
कोट्यावधी तुम्हि पुत्र असोनी
माता रडत बसे।। हृदय....।।
देशभक्त ते हाका मारिति
त्यांचे बसत घसे।। हृदय....।।
स्वदेशिचे ते साधे अजुनी
तत्त्व न चित्ति ठसे।। हृदय....।।
बंधू खरा जो बंधुसाठी
प्राणहि फेकितसे।। हृदय....।।
पुत्र खरा जो मातेसाठी
सर्वहि होमितसे।। हृदय....।।
बंधू रडता आई मरता
कुणि का स्वस्थ बसे।। हृदय....।।
-अमळनेर, सप्टेंबर १९३१