कुछ ही देर में रानी को होश आया और चिल्लाई "हाय! में इस पेटी में कैसे आ गई! मैं कहाँ हूँ!"
उसका चिल्लाना सुन कर नीचे रखवालों की जान में जान आई। उन्होंने सोचा होगा नागराज रानी का बाल भी बांका न कर सका। रानी सही सलामत है। यह सोच कर उन्होंने उस पेटी को जन्दी से नीचे उतारा। ताला खोल कर देखा लेकिन भगवान ! यह क्या ! पेटी के अन्दर खून के पनाले यह रहे थे। सब लोग माथा पीटने लगे।
राजा ने कटार निकाल कर अपनी छाती में भोक लेना चाहा। लेकिन मन्त्रियों ने उनका हाथ पकड़ कर कहा 'राजन् ! अधीर न होइए। सांप के डसने से सभी लोग मर नहीं जाते! हमारे राज में बड़े-बड़े ओझा-गुनी हैं। उनकी झाड फूंक से रानी जरूर उठ जायेगी।' तुरंत सैकड़ों नामी ओझा-गुनी आकर रानी को झाड़ने पकने लगे ।
इतने में रानी ने फिर आँखे खोल कर राजाको बुलवाया और हाथ पकडकर कहा,
“महाराज! आपके सारे प्रयास व्यर्थ हैं। में अब सिर्फ चन्द पलों की मेहमान हूँ। सारे संसार में कोई ऐसा ओझा-गुनी नहीं है ओ मेरी जान बचा सके। इसलिए मैं आपसे एक प्रतिज्ञा कराना चाहती हूँ। आप भी कसम खाकर प्रतिज्ञा कीजिए कि जब तक मेरी बेटियों को ब्याह कर उन्हें ससुराल नही विदा कर देगे. तब तक आप दूसरा ब्याह नही करेंगे। क्योंकि यदि आप एक दूसरा ब्याह कर लेंगे तो सौत आकर मेरी लड़कियों को नाहक सताएगी और भूखों मार देनी। इन दुधमुंही बच्चियों को आपके हाथों में सौपे जाती हूँ।"
राजा ने तुरंत कसम खाकर कहा- 'मैं मरा ब्याह करूँगा ही नहीं।“
बेचारी रानी के भाग्य में आखिरी बार सन्तान का मुंह देखना भी नहीं लिखा था। वह उसके पहले ही चल बसी। परसों जिसने सन्तान के लिए तपस्या की, मनौतियों मानी, व्रत-उपवास किए, आखिर यह संतान से मिले बिना ही चल बसी। आखीरी दम तक वह लड़कियों का ही नाम रटती रही।
यो कुछ दिन बीत गए। राजा ने लड़कियों को मां की कमी महसूस न होने। दरबारियों ने कई बार दूसरे ब्याह की चर्चा घलाई। मन्त्रियों ने बहुत अग्रह किया। लेकिन राजा ने इन्कार कर दिया।
आखिर मन्त्रियों ने एक उपाय सोचा। उन्होंने राजा की सातो बेटियों को एकांत में बुला कर कहा
“राजकुमारियो हमने तुम्हारे पिताजी से कई बार दूसरा ब्याह करने का आग्रह किया। लेकिन वे तो हमारी बात मानते ही नहीं। अगर तुम सातो बहनें उन पर जोर डालो तो शायद मान जाएं। नई माँ आएगी तो तुम लोगों की भी अच्छी तरह देख-भाल करेगी।“
अब सातों लड़कियों ने भी राजा से दूसरा ब्याह कर लेने का आग्रह किया। लेकिन राजा ने उनकी बात भी टाल दी। लाचार होकर मन्त्रियों ने एक और उपाय किया। उन्होंने बहुत से कोल-भीलों को भेज कर सारा जंगल छनवा डाला। आखिर उन्हें मोहिनी जड़ी मिली। उस जड़ी की महिमा ऐसी थी कि जो उसको खाले, तुरंत तन- मन की सुध भूल कर ब्याह के लिए पागल हो उठे। मन्त्रियों ने रसोइए से कह कर राजा के भोजन में यह जड़ी मिलवा दी। उसका असर हुआ कि दूसरे ही दिन राजा ने मन्त्रियों को बुलवा कर कहा-
“मैं ब्याह करना चाहता हूँ। तुरन्त किसी सुन्दर राजकुमारी को ढूंड लाओ।"
मंत्री तो इसी चाह में बैठे ही थे। एक राजकन्या को देख कर निश्चय किया कि यह लड़की महाराज के लायक है। उस राजकुमारी का नाम रत्नादेवी। चित्र देखने पर मंत्रियों ने भी इसे पसन्द किया। ब्याह के लिए शुभ मुहरत भी तय हो गया.
महाराज शुभ घड़ी में बारात सजा कर लक्षापुर गए और रत्नादेवी को ब्याह लाए। लेकिन न जाने क्यों, उस माह में असगुन ही असगुन हुए। लौटते वक्त बारात एक पेड़ के नीचे से गुजर रही थी। ठीक उसी समय एक डाली टूटकर बारातियों पर गिरी। पर राजा पाल-बाल बच गया।
राजधानी में आने के बाद राजा ने मंत्रियों और पुरोहितों को बुला कर कहा-
" तुम ही लोगों ने मेरे ब्याह की बात उठाई। तुम्ही ने लड़की पसन्द की। फिर ब्याह में इतने असगुन क्यों हुए? क्या तुम में से कोई बता सकता है कि इसका मतलब क्या है।"
मंत्रियों ने कई तरह की बातें बना कर राजा की शंका दूर करनी चाही। लेकिन राजा का मन नि:शंक नहीं हुआ। जड़ी का असर अब तक मिट गया था। अपनी कसम उसे याद आ गई। इसलिए नई रानी से उसका चित्त उचट गया। उसने उसके लिए अलग महल बनवा दिया। वह खुद सातो लड़कियों के साथ दुसरे महल में रहने लगा। वह कभी नई रानी के आवास की तरफ न जाता था और न उससे कोई बातें भी करना चाहता था।
एक दिन राजा को किसी काम से राज छोड़ कर ही बाहर जाना पड़ा। लड़कियों को छोड़ कर व्ह कही नही जाना चाहता थ। इसलिए उसने मंत्रियों से कहा कि मैं राजकुमारियों को साथ ले वाऊंगा। यह बात वब रत्नादेवी को मालुम हुई तो उसने चुपके से अपनी सौतेली लड़कियों के पास जाकर कहा
"प्यारी बेटियो! राजा तुम्हें भी अपने साथ परदेस ले जाना चाहते हैं। लेकिन तुम परदेस जाओगी तो बताओ, यहाँ तुम्हें कौन नहला धुलाएगा? कौन खिलाए- पिलाएगा। तुमारी देखभाल कौन करेगा! इसलिए अच्छा हो अगर तुम पिताजी से कह दो कि हम तुम्हारे साथ नहीं आ सकती। कहो, हम लोग यहाँ नई अम्मा के पास रहेंगी।"
राजा ने जब लड़कियों से चलने की बात उठाई तो उन्होंने इन्कार कर दिया। राजा ने सोचा-
“जब इन्हें नई रानी से इतना प्रेम है तो हर्ज क्या ! इनै यही रहने दें।'
व्ह उन्हें रत्नादेवी के महल में छोड़ कर चला गया। दूसरे दिन अमावस्या थी। रत्नादेवी ने सातों लड़कियों को अपने पास घुला कर कहा-
'बेटियो! आज पूनो है। जो लड़कियों आज का व्रत करती हैं और दिन भर उपवास करके रात को चंद्रमा का मुंह देखने के बाद पारण करती हैं कहते हें अच्छे घर मिलने हैं। तुम लोग भी आज उपवास करो न?'”
भोली-भाली लड़कियों ने पहले सो उसकी बात मान ली। किन ज्यों-ज्यों दिन बढ़ता गया, भूख के मारे उनकी अमहियों ऐंठने लगी और पेट में चूहे कूदने लगे। अखिर उन्होंने अपनी सौतेली माँ से कहा
'अच्छा घर मिलें या न मिले हमारी बला से। हम भूखी नहीं रह सकती। हमें खाना दो”
यह सुन कर रानी ने चिंगड़ कर कहा-
“मुरख कहीं की! तो फिर तुम लोगों ने कहा क्यों कि हम व्रत करेगी। क्या मैं तुम्हारे रिप हमेशा चूल्हे पर हाँडी चढ़ाके रहूँ।“
यह कह कर उसने सब को कस-कसके दो दो तमाचे मर दिए। बेचारी बचियों में अब तक किसी ने ऐसा सहन नही किया था। सब सिसक सिसक कर रोने लगीं। अब उनें पछतावा हुआ कि वे पिता के साथ क्यों न गई। रानी ने फिर कहा
“व्रत करने वाली कभी बेकार नहीं बैठती। इसलिए तुम लोग घड़े उठा कर कुंए से पानी भर दो।“
यद कह कर उसने उनको सात फूटे बड़े दिए। राजा की लाड़ली लड़कियों, हाय। उन्हें अपने हाथो काम करने की नौबत कहा आई थी। घड़े तो दूर, कभी लोटिया में भी उन्होंने पानी नही भरा था। फिर वे कुए से पानी कैसे खिचती। लेकिन बेचारी करें तो क्या ! सौतेली माँ का डर जो कपा रहा था। उन्हें प्यास भी जोर से सता रही थी। डरती डरती उन्होंने थोड़ा पनी माँगा तो सौतेली माँ ने जवाब दिया-
'पहले पानी भर लाओ तभी पीने को पानी मिलेगा।'
बेचारी सातों बहनें सात घड़े उठा कर कुंए की और चली। उनकी आँखों से टपटप आंसू बह रहे थे। मन में माँ की याद आ रही थी। माँ के सिवा उनकी सुन कौन लेता!
लक्ष्मी देवी को अपनी भूखी-प्यासी सन्तान की पुकार सुनाई पड़ी तो उसने उस कुप के पास केले के पेड़ उगा दिए। सातों बहनों ने अब पके हुए केले देखे तो वे खु शी से उछल पड़ी। उन्होंने भर-पेट केले खाए और फिर घड़ों में पानी भर कर लौट पड़ी। लेकिन फूटे पक्षों में पानी कसे टिकता? घड़े उठाते ही सारा पानी बह गया। उनके कपड़े भीग गए। जब तक ये घर पहुंची तो घडों में बूंद भर पानी भी न रह गया।
“ये घड़े तो फूटे हैं, मॉसी” लडकियों ने सौतेली माँ से कहा।
"बेशर्म लड़कीयों तुमने पानी तो भरा नहीं; पर से घड़े भी फोड़ लाई!"
यह कह कर नई रानी ने एक छड़ी उठाई और लगी उन्हें सटा-सट मारने लगी। बेचारी लडकियां तड़प तड़प कर रह गई। रोती-रोती उन्होंने कहा-
“माँसी! हमें क्यों इस तरह सताती हो! हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। खाना न सही, क्या हमें पीने के लिए थोड़ा पानी भी न दोगी?”
“अच्छा, ठहरो अभी तुम्हारे लिए दूध ला देती हूँ।“
यह कह कर रानी अन्दर गई। उसने सात लोटों में दूध भर कर उनमें जहर मिला दिया और लाकर उन्हें दे दिया। चरी लड़कियों को क्या मालूम था! निधड़क उसे पी गई। लेकिन पल में जहर ने आना प्रभाव दिखाया। उनकी छती घड़कने लगी। जीभे सूख गई और आँखे जलने लगी। उन्होंने कहा-
'अरे! यह दूध तो बड़ा कडवा है माँसी”
"नही तो क्या तुम्हारे लिए अमृत रखा हैं?”
यह कह कर रत्नादेवी ने उन सबको एक अँधेरी कोठरी में बन्द कर दिया और बाहर से सांखल चढ़ा दी।
यहाँ लक्ष्मी देवी ने जब अपनी अधमरी संतान को देखा तो उसने जहर का प्रभाव दूर कर दिया। लड़कियों मीठी नींद में सो गई।
रत्नादेवी रात को निश्चित होकर सोई। उसने समझा कि सबेरे तक उसके कलेजे का काँटा दूर हो जाएगा। लेकिन जब सबेरे उठ कर उसने उतावली के साथ कोठरी का दरवाजा खो[ला तो उसके अचरज का ठिकाना न रहा। लडकिया तो अभी जीती थी।
“माँसी! चौद उगा कि नहीं।" उन्होंने पूछा।
"अभी नहीं उगा है। तुम लोग सो जाओ। वा उगेगा तो में तुमको जगा दूंगी।"
यह कह कर रानी फिर कोठरी का दरवाजा बन्द कर चली गई। उसे बड़ा अचरज हुआ कि ये लड़किया कैसे बच गई। दूसरा दिन भी बीत गया। लड़कीयों ने रानी से पुछा
"मांसी ! क्या चाँद अभी तक नहीं उगा?!"
'चाँद उगा और डूब भी गया। रानी ने कहा।
“तब हमें खाना दोना"
“तुम चाँद देखे बिना खा लोगी तो बुढे वर मिलेंगे।“ रानी ने कहा।
“लेकिन हमें बड़ी भूख जो लग ही है। अब हम खाना खाये बिना नही रह सकती माँसी!” लड़कियों ने रोते हुए कहा।
“अच्छा तो नहा-धोकर आ जाओ। मैं खाना परोसती हूँ।“रनी ने कहा।
नहीं माँसी हमें अँधेरे में डर साता है। लड़कियों ने कहा।
“तुम्हे कोई भूत नहीं खा जाएगा। अच्छा, चलो! मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।'”
यह कह कर रानी उन्हें अपने साथ नगर के बाहर जल में एक उजड़े मंदिर के पास ले गई
“तुम लोग अन्दर जाकर देवता को प्रणाम कर आओ। तुम्हें अच्छे वर मिलेंगे।"
यह कह कर रानी ने लड़कियों को अन्दर भेज कर बाहर से ताला लगा दिया और महल में लौट आई। वे अबोध लड़कियों नौ दिन तक बिना दाना-पानी के उजड़े मंदिर में बंद रहीं। माँ के सिवा उनकी सुखी देहे और चिपके हुए पेट देख कर कौन तरस खाए !
लक्ष्मी देवी ने जब अपनी सन्तान को भूख से तड़पते हुए देखा तो उसने मंदिर में अनेकों शहद के छत्ते लगा दिए। अधमरी लड़कियों के मुंहों में मधु की धार बरसने संगी। थोड़ी देर में उनकी भूख मिट गई और जान में जान आई।