जाने अंजाने मिल जाए मुझे अगर,
कलम जो जीवन को लिखता है,
जीवन का हर मक्सद कैसे पूछूंगा मैं उसे, सोचता है,
हर जीवन में कुछ खास छुपा है, जानूंगा कैसे उसे पाता है ||
जाने अंजाने मिल जाए मुझे अगर,
वो राह जो मंजिल तक ले जाती है,
मंजिले हजारो दिखती है, पर राह कठिन नजर क्यों आती है,
हर मंजिल का क्यूं हर रास्ता अलग कर, मंजिले हमको उल्झाये रखतीं है ||
जाने अंजाने मिल जाए मुझे अगर,
पुस्तक जो जीवन समेटती है,
इतने जन है इतने जीवन है, सब कथा अलग कैसे कर पाता है,
हर जीवन का सार है क्या, वो खुदमे कहा दर्शाता है ||
जाने अंजाने मिल जाए मुझे अगर,
नज़र जो सब कुछ देखती है,
आसमान में मैं रोज गुम हो जाता हूं, पर कहीं नहीं वो दिखती है,
हर जीव का ख्याल है क्या उसे, फिर कैसे हर मुश्किल को नई रोकती है ||
जाने अंजाने मिल जाए मुझे अगर,
उदगाता जो धरती का है,
तुम्ही माई और तुमही पिता हो सबके, तो प्यार बंटा हुआ क्यों दिखता है,
हर कोई दरवक्त कुछ पाता है और खोता है, पर उस पाने में और इस खोने मे मुझे अंतर नजर क्यों आता है ||
जाने अंजाने क्या सोच लिया मैंने, मैं सोचता हूं के सोचा क्यों,
पर सोच का इस करू मैं क्या, वो देता है मैं लेता हूं,
जानू हर चिज नहीं मुझे संभव, फिर भी असंभव करता हूँ,
जीवन का या फिर मेरा यह चक्र है शायद जाने अंजाने इसमे ही घुमता रहता हूं ||
शैलेश आवारी
22/10/2021