गाड़ी अपनी गति से चली जा रही थी। डिप्टी से धीरे-धीरे बात भी आरम्भ हो गयी और उसी बात में पता चला कि उसके धर्म में लिखा है कि स्त्रियाँ इसी प्रकार कपड़ों से अपना शरीर ढककर बाहर निकला करें। ऐसे धर्म के सम्बन्ध में मुझे और जानकारी प्राप्त करने की आकांक्षा हुई और उनसे और भी बातें हुईं। धीरे-धीरे उनसे एक प्रकार की मित्रता भी हो गयी।
थोड़ी देर बाद एक स्टेशन आया और उन्हें प्यास लगी। उन्होंने किसी को पुकारा और स्वयं एक पुरानी केटली लेकर पानी के लिये दरवाजे पर खड़े हो गये। एक सरकारी नौकर वेतन तो काफी पाता ही होगा, फिर भी गिलास न लेकर केटली में पानी लेना मेरी समझ में नहीं आया। सम्भव है यह भी उनका धर्म हो। क्योंकि मैंने सुना है हिन्दुस्तान में धर्म ने विचित्र-विचित्र आज्ञायें दे रखी हैं। परन्तु इससे भी आश्चर्य की बात यह जान पड़ी कि इस देश में पानी दो प्रकार का होता है। कोई ऐसा देश नहीं जहाँ पानी दो तरह का हो। मैंने अभी दोनों को देखा नहीं था। मुझे ऐसा पता चला कि गाड़ी छूट चली, परन्तु वह खाली केटली लिये लौटे। मैंने पूछा तो उन्होंने कहा कि वह हिन्दू का पानी था। मैं मुसलमानी पानी पीता हूँ। जान पड़ा कि खाना भी ऐसा ही होता है।
तीन बजे मेरे जलपान का समय हो गया। स्टेशन आते ही मैंने जलपान के लिये होटलवाले को आज्ञा दी। उनके लिये मैंने जलपान मँगाया। उनकी श्रीमतीजी ने दूसरी ओर मुँह करके चाय पी, इस प्रकार जिससे मैं न देख पाऊँ। जलपान के बाद मैंने दो बोतल व्हिस्की लाने को कहा और दो गिलास।
जब मैंने उन्हें दिया तब उन्होंने जोरों से इन्कार कर दिया। बोले - 'मेरे तो धर्म में इसको देखना पाप है। आप भले आदमी हैं, इसलिये आपको अपने सामने पीने दिया, नहीं तो भला सामने कोई पी तो ले।' मैं पी रहा था। गाड़ी चली जा रही थी। उनकी स्त्री शौचालय में गयीं। ज्यों ही वह भीतर चली गयीं, डिप्टी साहब मुँह बनाकर बोले - 'क्षमा कीजिये। मैं उनके सामने नहीं पीता। अब पी सकता हूँ।' मैंने पूछा - 'अभी तो आप कह रहे थे कि धर्म के विरुद्ध है।' उन्होंने कहा - 'बात यह है कि अरब में तो जुरूर मना है और धर्म के विरुद्ध भी है। स्त्रियों के सामने पीना जरा ठीक नहीं। स्त्रियाँ डर जाती हैं। बात यह है कि हमारे यहाँ कहा गया है कि शराब में शैतान रहता है। इसलिये स्त्रियाँ यदि पियें या देख लें तो उनके ऊपर बुरा असर पड़ता है। हम लोग स्वतन्त्र आदमी हैं। इसलिये शैतान का कोई प्रभाव हमारे ऊपर पड़ नहीं सकता।'
मैंने दूसरे गिलास में उँड़ेलकर उन्हें दिया। उन्होंने जैसे ही मुँह लगाया, शौचालय के खुलने की आवाज आयी। झट से सारा गिलास मुँह के भीतर उँड़ेल लिया और हाथ में गिलास लेकर कहने लगे - 'देखिये विलायत में कैसे सुन्दर गिलास बनते हैं। यहाँ दो-एक स्थान पर बनते भी हैं पर उनमें सफाई नहीं। ऐसे गिलास में पानी पीने का मन करता है। कितना सुडौल, कितना साफ और बनावट देखिये। बिल्कुल ढोल के समान।'
एक घूँट में आधा गिलास व्हिस्की पीने का प्रभाव दस ही मिनट में उनके ऊपर आ गया। वह लगे गाने। क्या गा रहे थे, यह तो मैं नहीं समझ सका, परन्तु वह जोर-जोर से गाने और झूमने लगे। मेरा भी पाँव ताल देने लगा।
अब तो दूसरी बोतल भी खुली और मैंने एक गिलास में भरकर पीना आरम्भ किया। इस बार दूसरे गिलास में भरकर वह स्वयं पी गये। अबकी बार उन्होंने अपनी श्रीमती के कारण संकोच नहीं किया।
डिप्टी साहब गाना ठीक गा रहे थे या केवल चिल्ला रहे थे, कौन जाने! परन्तु मुझे पाँव चलाते-चलाते नाचने की धुन सवार हो गयी। मैं खड़ा हो गया और नाचने लगा। डिप्टी साहब हाथ से ताली बजाने लगे और जोर से गाने लगे।
मैं नाचने लगा। मगर अकेले नाचना ऐसा ही मालूम होता था जैसे मक्खन के बिना रोटी खाना। मैंने डिप्टी साहब को दोनों हाथों से पकड़ लिया। वह तो घबरा उठे और चिल्ला पड़े - 'खून! खून!!' - और अपनी स्त्री का चोगा पकड़ने के लिये उन्होंने हाथ बढ़ाया। डिप्टी साहब कमजोर थे। मैंने उन्हें सीने से चिपका लिया और लगा घूम-घूमकर वाल्ज (एक प्रकार का नाच) नाचने। पहले तो डिप्टी साहब घबराये, परन्तु मैंने उन्हें नहीं छोड़ा और आध घंटे तक हम लोग नाचते रहे। मुझे तो बड़ा आनन्द आया। केवल डिप्टी साहब की दाढ़ी साही के काँटे की भाँति मेरे मुख को रह-रहकर छेदती थी। जब मुझे विशेष कष्ट होने लगा तब बायें हाथ से मैंने उनकी दाढ़ी पकड़ ली और दाहिने हाथ से उनको हृदय से लगा घूमता था।
सैकड़ों बार जीवन में मैंने नाचा था। परन्तु पुरुष के साथ नाचने का जीवन में पहला अवसर था। वह आनन्द तो नहीं आया, परन्तु थोड़ा आनन्द तो जुरूर आया ही। यह नाच और भी चलता, परन्तु नाचते-नाचते पता नहीं किस वस्तु में उनका लम्बा कोट फँस गया और झटका लगा। जिस झटके के तीन परिणाम हुए। उनके लंबे कोट का आधा भाग सारे कोट से अलग हो गया जैसे अमरीका इंग्लैंड अलग हो गये थे। उनकी दाढ़ी के चौथाई बाल मेरे हाथ में आ गये और वह बर्थ पर गिरे और उन्हीं के पेट पर मैं भी। यह घटना देखकर कपड़े के अन्दर से उनकी स्त्री ऐसे चिल्लायी जैसे किसी कुतिया का किसी ने कान पकड़कर खींच लिया हो।
परन्तु हम दोनों तो उठ खड़े हो गये और हँसने लगे। डिप्टी साहब के कोट का - जिसका नाम उन्होंने 'शेरवानी' बताया - पीछे का चौथाई भाग फर्श से लिपटा हुआ था। उसकी उन्हें चिन्ता न थी। नौकर सामान लिये किसी दूसरे डब्बे में बैठा था। आगे बदल लेंगे। उन्हें चिन्ता अपनी एक चौथाई दाढ़ी की थी।
यह इत्तफाक था कि झटका कुछ इस प्रकार लगा कि बीच के एक चौथाई बाल टूट पड़े। उन्होंने कहा कि इस बीच के बाल के लिये क्या किया जाये। बाल अभी तक मेरे हाथ में ही थे। मैंने उन्हें देकर कहा - 'इससे काम चल सके तो लीजिये। इसीलिये मैंने इसे नहीं फेंका। ऐसे बहुत-से प्लास्टर हैं जिनसे यह फिर जमाये जा सकते हैं और कुछ तो काम दे ही सकते हैं। यदि कुल मुंडा देने में आपको आपत्ति है तो किसी प्रकार इसको वहीं चिपका लीजिये।'
जहाँ से बाल उखड़ गये थे वहाँ उन्हें पीड़ा होने लगी। इधर अब उनका ध्यान गया। यहाँ दवा क्या मिलती। एक बार मुझे घुटने में चोट लगी थी तब मैंने व्हिस्की मल दी थी। वह मेरे मित्र हो गये थे और मेरे साथ नाच में उन्हें यह कष्ट हुआ था इसलिये उनकी सहायता करना मेरे लिये आवश्यक था।
दोनों बोतलों में जो थोड़ी व्हिस्की रह गयी थी, हथेली पर उँड़ेलकर मैंने उनकी दाढ़ी में, जहाँ से बाल उखड़ गये थे, मल दी। मलते ही वह उछलकर लगे नाचने। परन्तु इस बार वह अकेले। तब तक कानपुर स्टेशन आ गया।