मुसाफिर रैन रही थोरी ।
जागु-जागु सुख-नींद त्यागि दै, होत बस्तु की चोरी ॥
मंजिल दूरि भूरि भवसागर, मान क्रूर मति मोरी ।
ललितकिसोरी हाकिमसों डरु, करै जोर बरजोरी ॥
मुसाफिर रैन रही थोरी ।
जागु-जागु सुख-नींद त्यागि दै, होत बस्तु की चोरी ॥
मंजिल दूरि भूरि भवसागर, मान क्रूर मति मोरी ।
ललितकिसोरी हाकिमसों डरु, करै जोर बरजोरी ॥