संसार में कौन ऐसा होगा जो सूरज को न जानता हो! सूरज भगवान पूरन की ओर एक किले में रहते हैं। वे हर रोज़ अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर किले से निकलते हैं और आस्मान के रास्ते पश्चिम की सेर करने जाते हैं। सूरज भगवान का किला देखने में जितना सुन्दर है उतना ही मजबूत भी है।

उनके किले के फाटकों पर मोतियों की झालरें झूलती हैं। एक सुन्दर देवी उन फाटकों पर पहरा देती रहती है। वही हर रोज़ सबेरे फाटक खोलती और फिर शाम को बन्द करती है। उस देवी का सुनहरा आचल हमेशा जगमग करता रहता है। उसके काले-काले बाळ हवा के झोंकों में लहराते रहते हैं।

उसका रूप जितना सुन्दर है उतना ही अच्छा उसका स्वभाव भी है। इसीलिए उस देवी को सब कोई प्यार करते हैं। सिर्फ देवता और मनुष्य ही नहीं, अयोध पशु-पक्षी भी उसे देख कर अनन्दित होते हैं। उस देवी का एक ही काम था; सबेरे सूरज भगवान के निकलते समय फाटक खोलना और फिर बन्द कर देना।

दिन भर उसे छुट्टी रहती थी। शाम तक यह जहाँ चाहे घूम सकती थी। शाम को थके-माँदे सूरज भगवान पश्चिमी फाटक पर पहुँच जाते हैं न! इसलिए उस देवी को शाम के वक्त आकर किले का पश्चिमी फाटक खोलना पड़ता। यों वह दिन भर चाहे जहाँ-कहीं घूम ले, पर शाम होते ही, उसे लौटना पड़ता था। नहीं तो सूरज भगवान के लिए फाटक कौन खोलता शाम को फाटक बन्द करते ही फिर सबेरे तक उसे छुट्टी रहती।

फुरसत के समय वह देवी पृथ्वी पर उतर आती और यहाँ के जगलों में, पहाड़ों पर और नदियों के किनारे घूमती-फिरती । इस तरह शाम तक सैर-सपाटे करके यह समय पर अपना काम करने चली जाती। एक दिन जब वह इसी तरह पृथ्वी पर घूम रही थी तो उसे जंगल के राजा वनराज ने देख लिया। देखते ही वह उस पर रुक्ष गया। एसी सुन्दर कन्या उसने पहले कभी नहीं देखी थी। उसने सोचा

"अगर इस से मेरा ब्याह हो जाय तो बड़ा अच्छा हो।"

इसलिए उसने उस देवी को बुला कर अपने मन की बात कही। वनराज की सुन्दरता देख कर वह देवी भी राजी हो गई। लेकिन दिक्कत यही थी कि देवी को सुबह और शाम दोनों वक्त अपनी नौकरी बजानी पड़ती थी। इसलिए उसने वनराज से कहा

“मैं तुम से विवाह करने को राजी हूँ। मगर फुरसत के वक्त ही तुम्हारे यहाँ रह सकूँगी।" वनराज ने इसे मान लिया।

तब से वह देवी रोज़ फुरसत के समय आती और पति की सेवा करके चली जाती। एक दिन जब वह देवी अपने पति की सेवा करने पृथ्वी पर आई तो उसने देखा कि उसका पति बीमार हो कर नीचे जमीन पर पड़ा हुआ है। यह देख कर उसे बढ़ा दुख हुआ। उसने सोचा

“इस नौकरी के कारण ही पति की सेवा करने के लिए मुझे काफी समय नहीं मिलता। लेकिन मैं यह नौकरी छोड़ कर पृथ्वी पर रह भी तो नहीं सकती? इसलिए अगर में अपने पति को भी अपने साथ सूर्य लोक ले जाऊँ तो हमें बिछड़ना पड़ेगा।”

यह सोच कर दूसरे दिन उसने सूरज भगवान से कहा

"भगवन्...! मेरे पति वनराज पृथ्वी पर रहते हैं। इससे मुझे उनकी सेवा के लिए काफ़ी समय नहीं मिलता। अगर उनको भी मेरे साथ यहाँ रहने की इजाजत मिल जाय तो बड़ा अच्छा हो तब हम दोनों में बिछड़ने की नौबत न आएगी और हमें बहुत सुख होगा।" सूरज भगवान ने खुशी से उसकी विनती मान ली।

अब वनराज भी सूर्य-लोक में रहने लगा। देवी को अब पृथ्वी पर उतरने की कोई जरूरत नहीं रही। तुम तो जानते ही हो कि देवता लोग न कभी बूढ़े होते हैं और न कभी मरते ही हैं। लेकिन वनराज तो पृथ्वी का निवासी था। जब देवी और वनराज को सूर्य-लोक में रहते बहुत दिन हो गए तो बनराज पर बुढ़ापे के चिह्न प्रगट होने लगे।

देवी सूर्य-लोक की रहने वाली थी। इसलिए वह पहले की तरह जवान दी बनी रही। तो भी उसने अपने बुढे पति की सेवा में कोई कमी न आने दी। वह पहले की तरह ही उसको प्यार करती रही। धीरे-धीरे वनराज का मुँह पोपला हो गया। आँखों की शक्ति भी जाती रही। सारे बदन पर झुर्रियाँ पड़ गई। आवाज काँपने लगी।

अब वह बिना लाठी टेके दो कदम भी नहीं चल सकता था। एक दिन उसने अपनी पत्नी को बुला कर कहा

“अब में ज्यादा दिन नहीं जीऊँगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि फिर पृथ्वी पर लौट जाऊँ और यहाँ हरी-हरी मुलायम घास पर लेट कर अपनी आँखें मुंदलूँ। मेरे मन में यही एक साध बाकी रह गई है। इसलिए मुझे पृथ्वी पर पहुँचा दो।"

देवी ने सोचा कि पति की इच्छा पूरी करना उसका कर्तव्य है। इसलिए उसने कहा

“आपको सुख पहुँचाने के सिवा में और कुछ नहीं चाहती। अगर आप पृथ्वी पर जाना चाहते हैं तो यह आपकी खुशी है। मैं आपको बुढ़ापे से नहीं बचा सकी। लेकिन मौत से बचा लेना चाहती हूँ। आप हरी पास पर लेट जाना चाहते हैं न? अच्छा, मैं ऐसा उपाय करूंगी, जिससे आप हमेशा हरी-हरी घास पर सुख से विचरते रहें।"

यह कह कर उसने अपने पति को पतिंगा बना दिया और पृथ्वी पर लाकर हरी पास पर छोड़ दिया। आज भी चाँदनी रातों में यह देवी अपने पति को देखने के लिए पृथ्वी पर उतर जाती है। उसे देखते ही पतिंगा आनन्द से आकाश की ओर उड़ने लगता है।

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