एक गाँव में छरियाराम नाम का एक बडा धूर्त उग रहता था। नजदीक ही के एक दूसरे गाँव में एक और ठग रहता था, जिसका नाम था कपटीराम। दोनों लोगों को ठगने में एक दूसरे से बढ़कर थे। संयोगवश ये दोनों एक दिन किसी जगह मिले। इस के पहले इन दोनों में कोई जान पहचान न थी। लेकिन एक ही थैली के चट्टे-बट्टे थे न! इसलिए मिलते ही दोनों एक दूसरे को बड़े प्रेम से 'मामा' कहने लगे। लेकिन असल बात तो यह थी कि, दोनों अपने मन में एक दूसरे को धोखा देने की सोच रहे थे। छलियाराम ने कपटीराम को न्योता देते हुए कहा,

“आज रात हमारे यहाँ तुम्हारी दावत है। जरूर आना”

छलियाराम ने उस रात को अपने घर अच्छे-अच्छे पकवान बनवाए और कहीं से चुरा कर लाई हुई एक सोने की थाली में मेहमान के लिए खाना परोसवाया। खाना खाते खाते कपटीराम ने जो थाली की ओर देखा तो उसकी आँखें चौधिया गई। उसने तुरंत मन में ठान लिया कि किसी न किसी तरह इस थाली को उड़ाना ही चाहिए। इधर छलिया क्या कुछ कम था वह मेहमान को जबर्दस्ती हँस-बैँसकर खिला रहा था, ताकि उसे खाना खाते ही गहरी नींद आ जाए और वह आसानी से उसकी जेब मार ले।

कपटीराम खाना खाने के बाद नींद का बहाना करके लेट रहा। छलियाराम ने सोचा बस, यही मौका है...! उठ कर कपटीराम की कमर में हाथ डाल कर टटोल पर रुपए की थैली का कहीं पता न चला। बेचारा हार गया और जा कर सो रहा। सोते ही कपटीराम उठा और उस के सन्दूक का ताला तोड कर सोने की थाली निकाल ली। फिर उसे अपने तकिए के नीचे रख कर आराम से सो रहा।

थोड़ी देर में छलियाराम की आँख अचानक खुल गई तो उसकी नज़र सबसे पहले सन्दूक पर पड़ी। टूटा ताला देखते ही वह सब कुछ ताड गया। वह दबे पाँव उठा और कपटीराम के बिस्तर के नीचे टटोल कर देखने लगा। आखिर उसे तकिए के नीचे अपनी सोने की थाली मिली। उसने धीरे धीरे बड़ी सफाई से थाली निकाल ली। फिर उसे एक छींके पर रख कर उसमें पानी भर दिया और अपनी चारपाई उस चूंकि के नीचे डाल कर सो रहा। छलियाराम ने सोच,

“अगर कोई थाली पर हाथ लगाएगा तो पानी मुझ पर छसकेगा और में जाग जाऊँगा।”

कपटी आँख बचा कर यह सब कुछ देख रहा था क्योंकि, वास्तव में वह सोया तो था नहीं। उसने छलियाराम को सो जाने दिया। फिर उठ कर चूल्हे में से थोडी राख उठा लाया और धीरे धीरे पानी में डालने लगा। बस, थोडी ही देर में राख ने सारा पानी सोख लिया। अब बिना किसी दिक्त के उसने थाली नीचे उतारली और नजदीक के एक तालाब में छिपा दी। फिर आकर चुपचाप ऐसे सो गया जैसे कुछ जानता ही न हो..!

इतने में छलियाराम जागा और आँख खोलते ही छींक की ओर देखा तो थाली गायब..! लेकिन वह भी कोई उल्लू का पट्टा तो था नहीं..! उठ कर तुरंत कपटीराम की चारपाई के पास गया और उसकी ओर गौर से देखने लगा। उसे कपटीराम के तलवों में कीचड लगा हुआ दिखाई दिया। वह तुरंत भाँप गया कि हो न हो, जरूर यह मेरी थाली तालाब में छुपा आया है। यह धीरे धीरे उसकी चारपाई के पास घुटनों के बल बैठ गया और पैर चाटने लगा|

जिससे मालूम हो कि यह पानी में कितनी गहराई तक गया है ! क्योंकि वह जानता था कि उस के पैर पानी में जिस गहराई तक फस गये है| जहाँ फिके होंगे वहाँ तक चाटने में फीके होंगे और उसके बाद नमकीन..! कपटीराम के पैर घुटनों तक फीके लगे। इस से छलियाराम ने जान लिया कि वह घुटनों तक पानी में पैठा है। वह तुरंत दौड़ता हुआ तालाब की ओर गया और घुटनों तक की गहराई में इधर उधर खोजने लगा। जल्दी ही उसकी मेहनत फली और यह थाली लिए खुशी खुशी घर लौटा।

इसी बीच कपटीराम की आँख खुली तो देखता क्या है?? कि छलियाराम का बिस्तर खाली है। यह समझ गया कि जरूर वह थाली की खोज में गया होगा। उसने सोचा, “यह तो बड़ा गुरु घंटाल मालूम होता है। भला तो इसी में है कि, दुश्मनी छोड़ कर मैं इसे अपना साझीदार बना लुँ।”

छलियाराम दरवाजे पर आया तो कपटी उसके सामने जाकर बोला,

“मामा...! अब तक मैं तुम को बुध्दु समझे हुए था। लेकिन तुम तो बडे घाघ निकले। आओ, आज से हम दोनों दोस्ती कर लें। आगे से हम दोनों साझे पर काम करें तो खूब काम होगा। जो कुछ मिलेगा दोनों आधा आधा बाँट लेंगे।”

इस बात पर छलियाराम भी राजी हो गया। एक दिन एक शुभ-घड़ी में से दोनों दोस्त चोरी करने चले। राह में कपटी ने छलिया से कहा,

“देखो..! मामा..! मैंने सुना है कि हमारे गाँव का लाला दयाराम मर गया है। हम लाख के भाई और उसकी स्त्री के पास जाकर कहेंगे कि लालाजी ने हम से एक हजार रुपया उधार लिया था और चुकाया नहीं था। वे तो अचानक मर गए, इसलिए अब आप हमारा रुपया चुका दीजिए। लेकिन इसमें एक दिकत है। वे लोग जब पूछेंगे कि तुम्हारी बात का सबूत क्या है तो हम क्या जवाब देंगे?"

“वह जवाब भी तुम्हीं सोच निकालो न..?” छलियाराम ने कहा।

“अच्छा तो सुनो, जहाँ लालाजी की चिता जलाई गई थी वहीं एक गड्ढ्ढा खोद कर मैं तुम्हें गाड़ दूँगा। डरो नहीं, साँस लेने के लिए एक ओर एक छोटा सा छेद रख छोडूंगा। फिर मैं लालाजी के भाई और बीबी के पास जाकर रुपया माँगूगा और जब सबूत चाहेंगे तो कहूँगा, “आइए, वहाँ लालाजी को जला दिए गए थे वहाँ जाकर मैं पुकारता हूँ। अगर वे हामी भर देंगे तो आप मेरा रुपया दीजिएगा, नहीं तो नहीं।””

“हाँ, जब में उन्हें यहाँ ले आऊँगा और लालाजी का नाम लेकर पुकारूँगा तो तुम्हें जवाब देना होगा। मैं तुम से पूछुँगा कि तुम ने मुझ से एक हजार रुपया उधार लिया था कि नहीं? तब तुम हामी भर देना। अगर हमारी चाल चल गई तो दोनों आधा आधा बाँट लेंगे।” कपटीराम ने कहा।

दोनों कपटी व छलिया राजी हो गया। होशियारी पर फूले न समाए। खोदा और छलिया को उसमें छिपा कर कपटी लालजी के घर गया। जो सोचा था वही हुआ। लालाजी के भाई ने कहा कि बिना किसी सबूत के हम रुपया नहीं चुका सकते। तब कपटी उनको मरघट में ले आया और लालाजी का नाम लेकर पुकारने लगा।

“क्यों क्या काम है..?” छलियाराम ने गड्ढे के अंदर से पूछा।

“क्यों लालाजी...! आपने से मुझ से एक हजार रुपया उधार लिया था कि नहीं..?” कपटीराम ने पूछा।

“हाँ..! हाँ..! लिया क्यों नहीं था ?" छलियाराम ने गड्ढे के अंदर से जवाब दिया। बेचारे लालाजी के भाई ने समझा सचमुच लालाजी ही जवाब दे रहे हैं।

उसने कपटीराम को घर ले जाकर एक हजार गिनकर दिया। कपटीराम लौट कर फिर वहाँ आया जहाँ जमीन के अंदर छलियाराम उसकी राह देख रहा था। उसने एक बढा पत्थर उठा कर गढे के मुँह पर रख दिया जिससे वह आसानी से बाहर न निकल सके। फिर रुपए की थैली उठा कर नौ-दो-ग्यारह हो गया।

भीतर से बेचारा छलियाराम 'मामा' 'मामा' पुकारता ही रहा। लेकिन वहाँ था कौन? उस का मामा तब तक आधा मील चला गया था। छलियाराम समझ गया कि उसने धोखा खाया है। बडी मुश्किल से उसने एक ओर छेद किया और अधमरा सा गढ्ढे के बाहर आया। उसने तै कर लिया कि किसी न किसी तरह जरूर इसका बदला लेना चाहिए।

गाँव के बाहर जाने के लिए उस मरघट से होकर एक ही राह थी। छलियाराम अपने कपटी मामा को खोजता उसी राह से चला। एक हजार की थैली बहुत दूर तक अकेले ढो ले जाना आसान काम नहीं था। इसलिए कपटीराम ने एक बैल भाडे पर लिया और रुपयों की थैली उस पर लाद कर खुशी-खुशी चला। छलियाराम ने बहुत दूर से कपटीराम को देख लिया।

वह सोचने लगा, “किस सूरत से इसे मजा चखाया जाय?”

इतने में उसे एक घर के बाहर बरामदे में एक जोड़ा चप्पल रखा हुआ दिखाई दिया। उसने जल्दी से उसे उठा लिया और बेतहाशा दौडता हुआ कपटीराम से भी आगे निकल गया। आगे जाकर उसने एक चप्पल रास्ते में गिरा दिया। फिर वहाँ से थोड़ी दूर और आगे जाकर उसने दूसरा चप्पल भी गिरा दिया और खुद पास ही एक खेत में छिपकर तमाशा देखने लगा। चंद मिनट में कपटीराम बैल को हाँकता यहाँ आया तो उसकी नजर उस चप्पल पर पड़ी। चप्पल नया था।

लेकिन उसने सोचा, “एक चप्पल लेकर क्या करूंगा..??”

यह सोच कर उसने उस चप्पल को छुआ तक नहीं। लेकिन थोड़ी दूर जाने पर उसे दूसरा चप्पल भी दिखाई दिया। तब यह पछताने लगा,

“अरे, मुझे वह चप्पल उठा लेना चाहिए था। लेकिन मैंने सोचा, एक चप्पल उठा कर क्या करूँ? अच्छा, अब भी कुछ बिगडा नहीं है। बैल को इस पेड़ से बाँध दूँगा और दौड कर दूसरा चप्पल उठा लाऊँगा।”

यह सोचकर उसने बैल को पेड से बाँध दिया। वह जगह बिलकुल सुनसान थी और रुपए की थैली भी भारी थी..| इसलिए उसने उसे बैल की पीठ पर ही छोड दिया और दूसरा चप्पल लाने पीछे दौडा। उस के आँखों की ओट होते ही छलियाराम बाहर निकल आया और जल्दी जल्दी बैल को भगा ले गया। थोडी दूर ले जाकर उसने बैल को छोड़ दिया और रुपए की थैली लेकर एक पुल की ढेरी में छिप रहा। कपटीराम जब लौटा तो बैल लापता था। वह समझ गया कि हो न हो, यह छलियाराम की चालबाजी है। उसके सिवा और कोई यह काम नहीं कर सकता।

वह इधर उधर ढूँढते हुए उसी राह से चलता गया। राह में जब उसे पुल की ढेरी दिखाई दी तो उसने सोचा, “आसपास में तो इस पुल की ढेरी के सिवा छिपने लायक कोई जगह नहीं है। अगर वह छुपा होगा तो इसी में।”

यह सोच कर वह उस पुल की ढेरी को उलटने पुलटने लगा। जब छलियाराम ने देखा कि उस का भण्डा फूटने पर ही है और वह किसी तरह भाग नहीं सकता तो वह खुद बाहर निकल आया। उसे देखकर कपटीराम ने कहा,

“देखो, हम आपस में बेकार क्यों परेशान हों? आओ, यह रुपया आधा आधा बाँट लें।”

इस पर छलियाराम भी राजी हो गया। दोनों वह रुपया आपस में बाँट कर खुशी खुशी घर चले गए।

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