एक गाँव में एक ग़रीब ब्राह्मण रहता था। यह बड़ा विद्वान था। लेकिन उन दिनों विद्वानों की उतनी पूछ-खबर नहीं थी। इसलिए बेचारा ब्राह्मण ग़रीबी से छुटकारा नहीं पा सका। इस पर उसका परिवार भी बहुत बड़ा था। बाल-बच्चे बहुत थे और कमाने वाला कोई नहीं था। आखिर एक दिन ब्राह्मण अपनी जिंदगी से तंग आ गया। वह घर में किसी से कहे-सुने बिना चुपचाप काशी की ओर निकल गया। राह में बहुत से कष्ट उठाते यह ब्राह्मण किसी भाँति काशी जा पहुँचा।
वहाँ एक दो दिन आराम लेकर वह प्रयाग गया। तुम तो जानते ही हो कि प्रयाग को 'तीर्थराज' कहते हैं। वहाँ गंगा, यमुना, सरस्वती, तीन नदियाँ मिलती हैं। उस जगह को 'त्रिवेणी संगम" कहते हैं। तीनों नदियाँ एक से एक चढ़ी-चढ़ी और परम पवित्र हैं। उस संगम में नहाने से जो पुण्य मिलता है उसका क्या कहना है...!
जो जिस कामना से उस संगम में प्राण छोड़ देता है, उसको दूसरे जन्म में यह चीज़ जरूर मिलती है। इतना ही नहीं, पुण्य-लोभ से लाखों लोग दूर-दूर से वहाँ आते रहते हैं। वे सब बड़े प्रेम से त्रिवेणी में स्नान करते हैं। लोगों की देखा-देखी उस गरीब ब्राह्मण ने भी त्रिवेणी में डुबकी लगाने का संकल्प किया। उसने सोचा,
“धन-दौलत तो मेरे भाग्य में है ही नहीं, कम से कम कुछ पुण्य तो कमा लूँ..!”
वह ज्ञान के लिए एक निर्जन घाट पर गया। वहाँ उसे चार सुन्दर लड़कियाँ दिखाई दीं। वे भी शायद वहीं नहाने आई थीं। उनकी सुन्दरता देख कर ऐसा मालूम होता था, मानों देव-लोक की परियाँ नहाने उतरी हैं। ब्राह्मण उनको देख कर एक पेड़ की आड़ में छिप गया। वह देखना चाहता था कि, ये क्या करने जा रही हैं।
वे चारों लड़कियाँ नदी में उतर कर धीरे-धीरे गहरे पानी में जाने लगीं। यहाँ तक कि पानी उनके गले तक आ गया। तब ब्राह्मण चुप न रह सका। उसने जोर से चिल्ला कर कहा,
“ऐ लड़कियो ! आगे न जाओ, नहीं तो डूब जाओगी।”
“डूबने के लिए ही तो आई हैं हम। यहाँ दूर जाएँगी तो अगले जन्म में हमारी इच्छाएँ पूरी होंगी।” उन चारों ने हँसते हुए जवाब दिया।
बेचारा ब्राह्मण अचरज से मुँह बाए खड़ा रह गया। उन चारों में से पहली लड़की ने कहा,
“हे भगवान...! लोग कहते हैं कि, धन ही जगत का मूल है। गरीब आदमी की कहीं कोई क्रदर नहीं करता। इसलिए मैं चाहती हूँ कि अगले जन्म में मुझे धनवान वर मिले। पर यह कंजूस न हो, प्रभु..! ऐसा कर दो कि मेरा पति धनवान हो, साथ ही दान-पुण्य करने वाला भी हो।” यह कह कर वह लड़की डूब कर लापता हो गई।
दूसरी लड़की ने कहा, “भगवन..! रुपया सदा किसी के पास नहीं टिकता। लेकिन जो विद्वान होता है वह धन और यश दोनों पाता है। इसलिए कृपा करके ऐसा वर दो कि अगले जन्म में मुझे महान पंडित और कवि पति मिले। मैं इसके सिवा और कुछ नहीं चाहती।” यह कह कर यह भी त्रिवेणी में डूब गई।
तिसरी ने कहा, “भगवान..! जब धन के साथ-साथ विद्या भी होती है तो 'सोने में सुगन्ध' भी आ जाती है। लेकिन जब इन दोनों के साथ प्रभुता भी हो तो फिर क्या पूछना इसलिए में अगले जन्म में एक ऐसे राजा की रानी बनूँ जो कुबेर-सा मनी और अझा सा विद्वान हो।” यह कह कर वह भी गहरे पानी में डूब गई।
फिर चौथी लड़की ने कहा, “भगवन...! जो देखने में सुन्दर नहीं, वह चाहे कितना ही बलवान और विद्वान हो, कोई उससे प्रेम नहीं करता। इसलिए रूप ही अमूल्य धन है। मुझे अगले जन्म में ऐसा पति दो जिसका बदन कुन्दन की तरह दमकता हो, जिसका मुँह चन्द्रमा के समान हो और जिसका रूप देख कर काम-देव भी ईर्ष्या करे।” यह कह कर वह भी डूब गई।
उनको इस तरह डूबते देख कर ब्राह्मण के मन में तरह-तरह के विचार उठने लगे। उनकी हिम्मत देख कर उसने दाँतों तले उँगली दबाई और निश्चय कर लिया कि एक न एक कामना करके वह भी डूब जाए। लेकिन यह निश्चय न कर सका कि कौन सी कामना वह करे? उसने जिंदगी भर ग़रीबी की मार सही थी। तो क्या वह अगले जन्म में एक लखपती बनने की इच्छा करे! या उस कलमुही औरत से पिंड छुड़ाने के लिए पतिता पत्नी की माँग करे? इस भाँति वह पर कुछ तय बड़ी देर तक सोचता रहा। पर तह नहीं कर सका।
इतने में ब्राह्मण को वे चारों लड़कियों याद आ गई। दुनियाँ में जितनी चाहने लायक चीजें थीं, अभी-अभी उन लोगों ने माँग लीं थीं। और अब बच ही क्या रहा? इतने में ब्राह्मण को एक बात सूझ गई। वह अगोळा कमर में बाँध कर पानी में उतरा।
उसने कहा, “भगवन..! मेरी एक ही इच्छा है। अभी जो चार लड़कियों पानी में डूब गई हैं, अगले जन्म में मुझे उनका पति बना दो। और मैं कुछ नहीं चाहता।”
यह कह कर ब्राह्मण गहरे पानी में पैसा और डूब गया। अपनी-अपनी कामना के अनुसार वे चारों लड़कियों अगले जन्म में चार राज-भवनों में पैदा हुई। वह ब्राह्मण धारानगर के राजा सिंधुल के घर पैदा हुआ। वही आगे चल कर 'राजा भोज' के नाम से मशहूर हुआ। वे चारों लड़कियों कनकवती, चन्द्रप्रभा, सुवासिनी और पद्मवासिनी नामों से राजा भोज की रानियाँ बनीं।
राजा भोजसा दानी, उनके समान ज्ञानी और उन-सा विद्वान और कौन हो सकता है?