पुराने जमाने में जापानी आइना देखना नहीं जानते थे। इसलिए उनमें से कोई नहीं जानता था कि, उसकी सूरत देखने में कैसी लगती है। उसी जमाने में जापान के एक गाँव में एक किसान रहा करता था। उसे एक दिन राह में चलते-चलते धूल से भरा हुआ आइने का एक टुकड़ा मिला। उसे उठाकर उसने हाथ में लिया और झाड़-पोंछ कर जेब में रख लिया। घर पहुंचने के बाद वह फिर उसे जेब से निकाल कर उलट-पलट कर देख रहा था कि, अचानक उसे अपनी शक्ल दीख गई। लेकिन वह किसान तो जानता नहीं था कि वह सूरत उसी की है।

“कौन है यह जो एक-टक मेरी ओर देख रहा है...!” उसे बड़ा अचरज हुआ।

आखिर बहुत सोचने विचारने के बाद उसने तय किया कि यह सूरत और किसी की नहीं, बल्कि उसके पिताजी की है जो उसके बचपन में ही स्वर्ग सिधार गए थे। उसके मन में सन्देह पैदा हुआ इतने दिनों के बाद आज यह क्यों मेरी सुध लेने आए है। शायद इन्हें मुझ पर गुस्सा हो आया है कि में इन्हें भूल गया है। इसी से अपनी याद दिलाने आए हैं। यह सोच कर यह बहुत पछताया और मन-ही-मन पिता को बार-बार प्रणाम करने लगा।

लेकिन उसे न सूझा कि इस आइने के टुकड़े को वह क्या करे। अगर फेंक देगा तो शायद पिता गुस्सा होंगे। यह सोच कर उसने उसे एक रूमाल में लपेट कर उसे एक सन्दूक में बंद कर दिया जिससे उसकी घरवाली उसे न देख सके। यह हर रोज अपनी औरत से छिपा कर दिन में दो-एक बार सन्दूक खोलता और पिता का दर्शन कर के फिर बन्द कर देता। एक दिन उसकी यह हरकत उसकी औरत ने देख ली।

यह किसान पहले कभी उस सन्दूक में न लगाता था। लेकिन अब यह ताला लगाने लगा था। अकेले में सन्दुक खोल कर बार-बार देखने लगा था। इन सब बातों से उसकी औरत के मन में शक पैदा हो गया।

वह सोचने लगी कि हो न हो, उसके पति ने उस सन्दूक में जरूर कोई अनुठी चीज छिपा रखी है। इसलिए, वह वैसी ही और एक नावी कहीं से ले आई और एक दिन उसका पति घर में नहीं था| सन्दूक खोल कर देखी। लेकिन उसमें उस काँच के टुकडे के सिवा और क्या सारा था यह भी उस टुकडे को उलट-पुलट कर देखने लगी तो उस में एक औरत की शकल दिखी उसने समझा कि, उसके पति ने किसी पराई औरत की तस्वीर छिपा कर रख छोड़ी है। यह सोचते ही बह गुस्से से तमतमा उठी।

अब हर रोज बाद आइने में अपनी सूरत देखती और लगती कैसी है यह औरत…! इसी काली-कलंटी पर यह महाशय लट्टू हो गए हैं। इस चिन्ता से उसके मुँह पर ख़ुशी कम हो गई और वह उदास सी दीखने लगी। एक दिन उससे रहा न गया। उसका सारा दिमाग चक्करा कर काँपने लगा, वह इस ताक में बैठी रही कि कब उसका पति घर आए और कब वह उसे गाली सुना कर अपने मन की जलन बुझाए।

उसका पति दोपहर को घर लोटा पह घर में पाँच भी न रख पाया था कि, उसकी औरत चिल्लाकर बोली में अभी मायके चली जाती है। तुम उसी कटी को लेकर पर में रहो और माँज उडाओ। उसका पति हका-बका सा सब कुछ सुनता रहा। उसकी समझ में कुछ भी न आया। गिडगिडा कर पूछने लगा,

“आखिर बात क्या है? बताओ भी तो !” उसके बहुत कुछ मनाने पर औरत ने आइने का हाल सुना दिया। यह सुन कर उसके अचरज का ठिकाना न रहा।

“क्या कहा उसमें एक औरत है तो क्या उसने मेरे पिताजी नहीं है?” उसने पचरा कर पूछा। वह का नाम न लिया। लो कि कौन है इसमें वाह...! यह बहाना तो खूब बनाया- “पिताजी! अच्छा हुआ कि दादाजी जरा एक बार देख तो...!” वह कह कर उसने आइना कर उसके सामने पटक दिया। किसान ने देखा तो उसे फिर अपने पिताजी का चेहरा दिखाई दिया।

खुशी से उछल कर बोला, “जरा तुम्ही देख न लो कि, कौन है इसमें यही तो पिताजी हैं..!” जब औरत ने झोका तो उसे अपना ही चेहरा दिखाई दिया।

अब क्या था? गुस्से से आग होकर तुरंत उठ खड़ी हुई और माईके की ओर चल पड़ी।

उसका पति गिड़गिड़ाता हुआ उसके पीछे-पीछे चला। राह में दोनों की एक काभी से भेंट हो गई। उसने इन दोनों को देखते ही पूछा,

“क्या बात क्या बात है क्यों...! आपस में झगड़ रहे हो...!”

औरत-मर्द दोनों ने अपनी-अपनी बात कह सुनाई और अन्त में कहा कि, काजी जो फैसला करेगा दोनों खुशी से मान लेंगे। किसान ने आइने का बह। तुकडा काजी के हाथ में रख दिया।

जब काजी ने उसको उठाकर देखा तो उसमें उसे एक बुद्ढा चेहरा लिए दिखाई दिया। काजी ने पिछले साल एक बुढढे को फांसी की सजा सुनाई थी। बस, उसने समझा कि, यह उसी का चेहरा है।

उसने उन दोनों से कहा, “तुम लोग क्यों नाहक आपस में झगड़ते हो। इस में तो न कोई औरत है, न किसी के पिताजी...! इसमें तो वह बूढ़ा है जिसे मैंने पिछले साल फांसी का हुक्म सुनाया था।”

यह कह कर उसने वह आइने का टुकड़ा अपनी जेब में रख लिया और चलता बना।

पति-पत्नी खुशी- खुशी यहाँ से अपने घर लौट आए।

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