रमण राघव (१९२९-१९९५) साइको रमण के उप नाम से भी जाना जाने वाला एक मनोरोगी सीरियल किलर था जो भारत के मुंबई शहर में १९६० के दशक के मध्य में सक्रीय था | राघव की पिछली ज़िंदगी और परिस्थितियां जिनकी वजह से वह ये गुनाह करने पर मजबूर हुआ उनके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है | इन गुनाहों में शामिल थे क़त्ल, हमला इत्यादी |
मुंबई के बाहरी इलाकों में अगस्त १९६८ में कत्लों की श्रृंखला घटित हुई | फूटपाथ और झोंपड़ी में सोने वाले लोगों को रात में मौत के घाट उतार दिया जाता था | सारे कत्लों को रात को अंजाम दिया जाता और हथियार के लिए कोई मज़बूत , कुंद वस्तु का इस्तेमाल किया गया था | इन कत्लों की गवाह थी कृतिका जिसने इनके बारे में मुंबई पुलिस को जानकारी दी |
इससे कुछ साल पहले (१९६५-६६) में ऐसे ही कुछ और कत्लों को मुंबई के पूर्वी इलाकों में अंजाम दिया गया था | उस साल करीबन १९ लोगों पर हमला किया गया जिनमें से ९ की मौत हो गयी थी | इनमें से एक कृतिका का रिश्तेदार था | उस वक़्त एक संदिग्ध आदमी को इलाके में घूमता हुआ पाया गया और उसे पुलिस ने तहकीकात के लिए पकड़ भी लिया | उसका नाम रमण राघव था , एक बेघर आदमी जो पहले भी गुनाह कर चुका था , और चोरी के लिए 5 साल की सजा काट चुका था | उसने अपनी बहन की बलात्कार कर चाकू घोंप कर हत्या कर दी थी | लेकिन उसके खिलाफ कोई पुख्ता सबूत( किसी भी जीवित बचे शिकार ने उसे देखा नहीं था) न होने के कारण पुलिस ने उसे छोड़ दिया |
जब कातिल ने दुबारा १९६८ में हमला किया , पुलिस ने उसको तलाशना शुरू किया | उस वक़्त के डेपुटी कमीशनर ऑफ़ पुलिस सीआईडी (क्राइम) ने तहकीकात का ज़िम्मा उठाया और पूरे शहर में तलाश करना शुरू किया | इस बार पुलिस उसे पकड़ उसका बयान लेने में कामयाब रही |
उसने ये कबूल किया की उसने १९६६ में प्रायद्वीपीय रेलवे (भारत) या फिर मध्य रेलवे लाइन के आसपास २३ लोगों का और १९६८ में मुंबई के बाहरी इलाकों में करीबन एक दर्जन लोगों का क़त्ल किया था | हालाँकि ये भी हो सकता है की उसने और लोगों को भी मारा हो | उसका कत्लों के प्रति अस्थिर रवैय्या देख पुलिस को लगा की शायद उसे याद ही नहीं की असल में उसने कितने लोगों का क़त्ल किया है |
जिस वक़्त रमण राघव सक्रीय था मुंबई में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक चिंता और आतंक फ़ैली हुई थी | झुग्गी झोपड़ी और अपार्टमेंट के निवासी खुले में या फिर खिड़की खोल कर सोने से डरते थे |
पुलिस के उप-निरीक्षक अलेक्स फिअल्हो ने रमण राघव को उसकी तस्वीरों और लोगों द्वारा दिए गए उसके हुलिए से पहचाना | फिआल्हो ने उसे गिरफ्तार कर उस इलाके के दो इज्ज़तदार गवाहों के सामने उसकी तलाशी ली | संदिग्ध ने अपना नाम रमण राघव बताया पर पुराने रिकार्ड्स से पता चला की उसके कई उपनाम थे जैसे “सिन्धी दलवाई”,”तलवाई”,”अन्ना”,”थाम्बी” और “वेलुस्वामी” | संदिग्ध के पास से एक चश्मा , दो कंघे , एक कैंची, अगरबत्ती लगाने का स्टैंड ,साबुन , लहसुन ,चाय का बुरादा, और दो कागज़ जिनपर गणित की जानकारी लिखी थी बरामद हुई | उसने जो बुश शर्ट और खाकी निक्कर पहनी थी उस पर खून के धब्बे थे और उसके जूतों में मिटटी भरी हुई थी | उसके फिंगरप्रिंट की जांच से ये साबित हुआ की संदिग्ध वाकई में रमण राघव उर्फ़ सिन्धी दलवाई था | उसको इंडियन पीनल कोड के धारा ३०२ के तहत २ लोगों- ग्रेटर बॉम्बे मलाड के चिन्चाव्ली गाँव के लालचंद जगन्नात यादव और दुलार जग्गी के क़त्ल के लिए गिरफ्तार किया गया | उसका हुलिया लम्बा, अच्छी कद काठी वाला और काले रंग का बताया गया |
शुरुआती आजमाईश अतिरिक्त मुख्य प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में शुरू हुआ | काफी लम्बे समय तक राघव ने सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया | लेकिन जब पुलिस ने उसकी चिकन खाने की मांग को पूरा किया तब वह उनके सवालों के जवाब देने लेगा | उसके बाद उसने विस्तृत बयान दिया जिसमें उसने अपने हथियार और मारने के तरीके के बारे में बताया | उसके बाद ये केस सेशन कोर्ट बॉम्बे में चला | २ जून १९६९ को जब आजमाईश शुरू हुई बचाव पक्ष ने दलील दी की अभियुक्त अपनी दिमागी हालत ठीक न होने की वजह से अपना बचाव खुद नहीं कर सकता है और उन्होंने ये भी कहा की क़त्ल करते वक़्त भी अभियुक्त की दिमागी हालत सही नहीं थी और वह अपनी हरकतों का अंजाम नहीं समझ सकता था |
अभियुक्त को मुंबई के पुलिस सर्जन के पास भेजा गया जिन्होनें उस पर २८ जून १९६९ से २३ जुलाई १९६९ तक नज़र रखी और उसके बाद ये विश्लेषण किया :
“अभियुक्त न तो मनोविकृति का शिकार है और न ही मानसिक रूप से बीमार है | उसकी यादाश्त सही है , बुद्धि औसत दर्जे की और वह अपने द्वारा किये गए कार्यों का उद्देश्य और स्वभाव भलीभांती समझता है | उन्होंने कहा कि वह अपने खिलाफ हो रही कार्यवाही की प्रकृति और वस्तु को समझने में सक्षम है और निश्चित तौर पर पागल नहीं है । "
विशेषज्ञों की राइ मिलने के बाद आजमाईश शुरू हुई | अभियुक्त ने अपने आपको दोषी माना | बचाव पक्ष ने गवाह के तौर पर मुंबई के नाएर स्पताल के एक मनोवैज्ञानिक को गवाह बनाया | उसने ५ अगस्त १९६९ को आर्थर रोड जेल में अभियुक्त का साक्षात्कार किया था और उसने सबूत पेश किये की अभियुक्त काफी समय से क्रोनिक पैरानॉयड स्चिज़ोफ्रेनिया का शिकार है और इसीलिए वह ये नहीं समझ पाता है की उसकी हरकतें कानून के दायरे से बाहर हैं |
बचाव में कहा गया “ अभियुक्त ने क़त्ल किये जिनके लिए उसे गुनेहगार माना जा रहा है , उसे ये तो पता था की वह इंसानों की हत्या कर रहा है पर ये नहीं मालूम था की ये कानून के खिलाफ है |” मुंबई के अतिरिक्त सेशंस जज ने अभियुक्त को हत्या का दोषी करार दे मौत की सज़ा सुनायी | रमण ने दुबारा अपील करने से इनकार कर दिया |
सजा पुख्ता करने से पहले , मुंबई के हाई कोर्ट ने ये आदेश दिया की वहां के सर्जन जनरल एक तीन मनोवैज्ञानिकों की ख़ास समिति बनाएं जो ये पता लगाये की अभियुक की दिमागी हालत कैसी थी और कहीं दिमागी हालत ठीक न होने की वजह से वह अपना बचाव नहीं कर पा रहा हो |
समिति के सदस्यों ने रमण का अलग अलग समय पर 5 बार २ घंटों तक साक्षात्कार किया | आख़िरी साक्षात्कार में जब उन्होनें उससे जब विदा ली तब उसने उनसे हाथ मिलाने से इनकार कर दिया ये कह कर की वो क़ानून का प्रतिनिधि है और वो इस बैगैरत दुनिया के किसी शक्स को छुएगा नहीं | उसकी जांच की रिपोर्ट में ये सामने आया :
“ उसके बचपन के बारे में कोई जानकारी नहीं है | उसके परिवार में किसी को दिमागी बीमारी हो ऐसा भी सामने नहीं आया है | मिली गयी जानकारी के हिसाब उसे बचपन से ही चोरी करने की आदत थी | उन्होंने कहा कि उसे शायद ही कोई स्कूल शिक्षा प्राप्त हुई है | वह हमेशा से ही अपने में रहता था | १९६८ में पुणे से लौटने के बाद वह मुंबई के बाहरी इलाकों के जंगलों में वास करता था |”
“खोपड़ी के एक्स- रे , खून की जांच , सिफिलिस के सेरोलोजिकल टेस्ट्स, सरेब्रोस्पिनल फ्लूइड की जांच और सिफिलिस के टेस्ट , मूत्र और मल की जांच और इइजी की जांच से कुछ जानकारी नहीं मिलती है | वह साधारण बुद्धि का इंसान और उसे कोई दिमागी बीमारी नहीं है |
“ अपने पाँचों साक्षात्कारों में उसने संदर्भ के विचारों और उत्पीड़न और भव्यता के व्यवस्थित भ्रम का प्रदर्शन दिया | जिन भ्रमों का अभियुक्त ने अनुभव किया वो ऐसे हैं :
दो अलग दुनिया हैं , एक कानून की और एक वो दुनिया जिसमें वो रहता था |
- एक निश्चित और स्थिर विश्वास की लोग उसका लिंग बदलना चाहते हैं , पर वह इसीलिए कामयाब नहीं हुए हैं क्यूंकि वो ‘कानून’ का प्रतिनिधि है |
- निश्चित और स्थिर विश्वास की वह शक्ति या बल का प्रतीक है |
- स्थिर विश्वास की लोग उसमें समलैंगिक प्रवत्तियों को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि वह दबाव में आ कर औरत में बदल जाए |
- की सम्लेंगिक योन संबंधों से वह औरत बन जाएगा |
- की वो “१०१ प्रतिशत आदमी है “| वह बार बार यही दोहराता रहा |
- एक विश्वास की सरकार उसे मुंबई चोरी और अलग गुनाह करने के लिए लाई है |
- एक स्थिर विश्वास की इन देश में तीन सरकारें हैं –अकबर सरकार , ब्रिटिश सरकार और एक कांग्रेस सरकार और ये सब सरकार उसे सताने और लालच देने की कोशिश कर रहे हैं |”
- रमण राघव की सजा को उम्र कैद में तब्दील कर दिया गया क्यूंकि पता चला था की वह एक असाध्य मानसिक बीमारी का शिकार है | उसे येरवडा सेंट्रल जेल पुणे में रखा गया था और उसका इलाज सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ और रिसर्च में चल रहा था | जब कुछ डॉक्टरों ने हाई कोर्ट के निर्देश पर उसकी जांच की तो पता चला की वो ठीक नहीं हो सकता है तो हाई कोर्ट ने उसकी सजा ४ अगस्त १८८७ को उम्र कैद में बदल दी | कुछ सालों बाद १९९५ में राघव की सस्सून अस्पताल में मौत हो गयी | उसके गुर्दों में तकलीफ थी |
रमन राघव को भारत का सबसे बढ़ा और सबसे भीषण सीरियल किलर माना जाता है | भारतीय निर्देशक श्रीराम राघवन ने एक ७० मिनट की छोटी फिल्म बनाई रमण राघव पर जिसमें रघुवीर यादव ने मुख्य भूमिका निभायी |
मध्य १९८० के दशक में एक और सीरियल किलर मुंबई में उभर कर सामने आया और उसने सायन और आस पास के इलाकों में काफी आतंक मचाया | उसको “स्टोनमैन” का उपनाम दिया गया और पुलिस की कई कोशिशों के बावजूद वो पकड़ा नहीं गया |
१९७० की दशक की शुरुआत में मशहूर तमिल निर्देशक भारथिराजा ने फिल्म बनाई , सिगाप्पू रोजक्कल जो की राघव की ज़िंदगी पर आधारित थी , उसमें उसकी काल्पनिक पहली ज़िंदगी भी दिखाई गयी और उसमें कमल हसन ने मुख्य किरदार निभायी | निर्देशक अनुराग कश्यप ने भी इस मनोरोगी कातिल पर फिल्म बनाने का फैसला किया जिसमें नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी राघव का किरदार निभाएंगे |