एक साल पहले मेने ये दलील दी थी की भारतीय जनता पार्टी के पास बंगाल में एक मोजूदा राजनितिक कमी को भरने की क्षमता है जो की वाम के ख़तम होने और तृणमूल कांग्रेस के विकास विरोधी और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण एजेंडा से उत्पन्न मायूसी का परिणाम है | उस वक़्त सिर्फ उनके घनिष्ट समर्थकों ने बंगाल भाजपा को अहमियत दी – उनकी केन्द्रीय शाखा को भी इस राज्य में कोई भी लोकसभा जीतने की उम्मीद नहीं थी और उन्होनें राज्य की पार्टी शाखा को सीमित राशी प्राप्त कराई थी | फिर भी ,बड़े पैमाने पर मतदाता धमकी और हेराफेरी के बावजूद पिछले लोक सभा चुनावों में अर्जित किया गए मात्र 6 प्रतिशत मतों के मुकाबले भाजपा को इस बार 17 प्रतिशत मत मिले और उसने दो सीटों पर जीत भी हासिल की |
भाजपा की बढ़त उल्लेखनीय थी क्यूंकि वह जैविक थी , राज्य भाजपा की शाखा के पास संगठन और गतिशील नेतृत्व दोनों की ही कमी थी | इस बढ़त को बनाये रखते हुए भाजपा ने हाल ही के बाय पोल में दक्षिण बसिरहत पर जीत हासिल की और चोरिंघी में दुसरे स्थान पर रही | इस जीत की श्रृंखला को देखते हुए भाजपा को अगले दो सालों में होने वाले विधानसभा चुनावों में मुख्य प्रतिद्वंदी की तरह उभर के आने की उम्मीद है | मेरा मानना है की ये ख़ुशी अभी कुछ दिनों की ही है |
आगे की चुनौतियाँ
मुख्य विपक्ष की तरह उभरने के लिए भाजपा को पिछले लोकसभा चुनावों में अर्जित किये अपने मत प्रतिशत को 17.6 प्रतिशत से काफी ज्यादा बढ़ाना पड़ेगा | ये एक बड़ी चुनौती है क्यूंकि राष्ट्रिय दल अक्सर लोक सभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं ख़ास तौर से ऐसे राज्यों में जहाँ प्रमुख क्षेत्रीय दल मोजूद हों | इससे भी महत्वपूर्ण बात, बंगाल की जनसांख्यिकी एक मौलिक बाधा बनती है |
राज्य की जनता का एक चौथाई हिस्सा है अल्पसंख्यक और चाहे कुछ भी हो उनमें से काफी कम प्रतिशत लोग भाजपा के लिए २०१६ में मत डालेंगे(अपनी इस बात के समर्थन में हम बाद में बाय पोल के फैसले का आवलोकन करेंगे) | बाकी तीन चौथाई हिस्से में शामिल है किसान , शहरी दलित और मध्यम वर्ग| पहली श्रेणी गाँव में रहती है जबकि दूसरी और तीसरी श्रेणी के लोग शहरों और छोटे कस्बों में रहते हैं | बंगाल के इतिहास में आखरी श्रेणी पर राजनितिक बदलाव का असर सबसे ज्यादा होता है पर कम संख्या की वजह से उसका मत प्रतिशत कम होता है | उदाहरण के तौर पर वाम ने आखरी श्रेणी का काफी प्रमुख हिस्सा पहले दो श्रेणियों के खोने से पहले ही हाथ से जाने दिया था – कोलकत्ता काफी समय से वाम का क्षेत्र नहीं है | ये एक श्रेणी है जिस पर भाजपा प्रभाव डाल सकती है , पर ये काफी नहीं है |
बंगाल में राजनीतिक बदलाव के इतिहास में एक संक्षिप्त विषयांतर ज़रूरी है भाजपा के महाकरण ( कोलकत्ता में राज्य सरकार की ईमारत का नाम)तक के सफ़र में मोजूद चुनौतियों को स्पष्ट करने के लिए |
किसानों , शहरी दलित और अल्पसंख्यकों ने जो की बंगाल की जनता का एक प्रमुख हिस्सा हैं वाम का उसके 35 साल के राज्य में खुले दिल से समर्थन किया , इसके बावजूद की उनके राज्य में बंगाल निरंतर आर्थिक रूप से गिरता रहा | किसानो का समर्थन मिला वाम द्वारा गठित भूमि सुधार नियम की वजह से ,जो बिना ज़मीन वाले किसानों को भी खेती का हक मुहैया कराता था और जो वाम ने बंगाल में एक घनिष्ट संगठन बनाया था जो दोहरी सरकार प्रशासन की तरह काम करता था उसके माध्यम से बरक़रार बना रहा |
शहरी दलितों का दिल उनके संगठनात्मक नेटवर्क के माध्यम से जीत लिया गया | ये इसलिए हुआ क्यूंकि असल सरकारी प्रशासन तो काम नहीं करती थी परन्तु राज्य दलों के दफ्तरों में मोजूद कर्मचारियों की मदद से जनता अपने घरेलू कामों जैसे बैंक में खाता खुलवाना ,रोज़गार कार्यालय में नाम दर्ज करवाना , और सरकारी हस्पतालों में इलाज करवाना इत्यादि पूरे करवाती थी | ऐसे आम कार्य भी इन स्थानीय कर्मचारियों की मदद के बिना संभव नहीं थे | इसीलिए निवासी इसको परोपकार की तरह समझने लगे और अपने हकों से बेखबर वह उस पार्टी के प्रति निष्ठा महसूस करने लगे जो की हकीक़त में कुछ ख़ास काम नहीं कर रही थी | अंत में ग्रामीण बंगाल में विपक्षियों द्वारा की गई हिंसा , जो की राष्ट्रिय स्तर पर सार्वजानिक नहीं की गयी ,उसने भी वाम के लिए लोगों के समर्थन को और मज़बूत किया |
परिबर्तन (बदलाव ममता बनर्जी का पिछले राज्य चुनावों में इस्तेमाल किया गया नारा) तब सामने आया जब किसानों ने वाम का साथ छोड़ दिया क्यूंकि उन्होनें अपने एक दुर्लभ विकास से जुड़े फैसले में बंगाल के उद्योगीकरण के लिए किसानों की ज़मीन हासिल करने के निश्चय किया | उसी समय पर , इस साथ छूटने से फायदा उठाने वाली ममता बनर्जी शहरी अल्पसंख्यकों को ये यकीन दिला सकती थी की वाम ने उनकी भलाई के लिए कुछ नहीं किया है ( जो की एक तरीके से सही भी था ) | ग्रामीण अल्पसंख्यक वैसे भी खेती करते थे और वाम के खेत हथियाने वाले फैसले का विरोध कर रहे थे |
इस्लामी कट्टरवाद बंगाल में बढ़ रहा है , वाम ने मत हासिल करने के लिए उसको काफी प्रोत्साहन दिया और ममता ने इस्लाम समर्थक बन उनको खुश करने के लिए नमाज़ पढना और उनके साथ खाना खाने जैसे तरीकों को अपनाया | अल्पसंख्यकों ने बिना सोचे समझे ममता के लिए मत डाल दिए | सत्ता में आने के बाद ममता ने न सिर्फ वाम की नीतियों को दुबारा सक्रीय कर दिया अपितु डरा और अहसान जता कर किसानों , शहरी दलितों और अल्पसंख्यकों का समर्थन भी हासिल कर लिया |
भाजपा के पास अभी भी वो संगठन नहीं है जो आम जनता के समक्ष आने वाली चुनौतियों का हल निकाल सके | वह जिन कार्यालयों का निर्माण करते हैं उन्हें बार बार टीएमसी के गुंडे नष्ट कर देते हैं | इसके इलावा मोजूदा बंगाल भाजपा में एक जन लोकप्रियता या संगठनात्मक क्षमता वाले नेता की कमी है | राज्य के नेता २०१४ में पूरे राज्य में घूमने के बजाय अपनी व्यक्तिगत सीटों पर चुनाव अभियान करते नज़र आये | वाम और टीएमसी दलों से अलग भाजपा के कर्मचारी मतदान से एक दो दिन पहले व्यक्तिगत निवासों पर जा कर मतदाता पर्ची नहीं बाँट सके जो की आख़री समय में घर घर जा कर अभियान करने का एक बहुत सुनहरा मौका होता है | भाजपा कई मतदान केंद्रों पर नज़र भी नहीं रख पाई |कर्मचारियों के आभाव की वजह से नहीं भाजपा सही नेतृत्व के आभाव में इन संगठनात्मक मूलों में पीछे रह गयी |
मतदान से पहले भाजपा के लिए चुनाव अभियान करते वक़्त में संघ से जुड़े कई ऐसे बेहद प्रेरित स्वयंसेवकों से मिला जो बिना किसी व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वकांक्षा के मेहनत करने को तैयार थे | जिन चुनावी क्षेत्रों में मेने काम किया था वह जोश के साथ वहां की सड़कों पर बैठकों का आयोजन करते थे और मेरे जैसे कई स्वयंसेवी वक्ताओं को अपने निजी वाहनों में एक सभा से दूसरी सभा तक ले जाते थे | नेतृत्व का अभाव इस से और साफ़ दिखाई पड़ता है की बंगाल के भाजपा के ट्विटर खाते पर भी कोई नज़र नहीं रख रहा था | मतदान के दिनों पर वहां काफी कम जानकारी उपलब्ध थी और उनमें से किसी में भी उस चुनावी हिंसा (मतदाता धमकी, बूथ पर कब्जा आदि) का ज़िक्र नहीं था जो बंगाल में उस वक़्त आम बात थी | इसीलिए ये हैरानी की बात नहीं है की बंगाल का कोई भी नेता भाजपा के नए अध्यक्ष अमित शाह द्वारा अपनी राष्ट्रिय दल में शामिल नहीं किया गया |
राज्य स्तर का नेतृत्व २०१६ तक भाजपा के गले की फाँस बन कर रहेगा | ये एक बुरी खबर है क्यूंकि चुनाव आजकल तेज़ी से अध्यक्षीय होते जा रहे हैं और प्रधान मंत्री मोदी के लिए लोगों का समर्थन इन चुनावों का एक कारक नहीं बन सकता है | चिट फण्ड घोटाले द्वारा उनकी छवि ख़राब हो जाने के बावजूद भी ममता बनर्जी को अभी भी एक निश्चित कद और दृश्यता हासिल है | भाजपा अपने संगठनात्मक चुनौतियों सामना सही से कर पाएगी अगर वह किसी लोकप्रिय मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नेतृत्व में सरकार गठन के लिए चुनाव लड़े| पर भावी मुख्या मंत्री के बजाय विपक्ष के एक संभावी नेता के लिए मत हासिल करना थोडा मुश्किल काम है |
बाय पोल्स के सबक
बंगाल में हुए बाय पोल्स ने काफी सच उजागर किये हैं | भाजपा ने दक्षिण बसिरहत में 1000 मतों के संकरे फर्क से चुनाव जीता है और चोरिंघी में वह 14000 मतों से हार गयी है | टीएमसी पहली स्थिति में हार गयी थी और दुसरे में जीत गयी थी | वाम ने दोनों ही सीटों पर अपनी जमा पूँजी खो दी थी | कांग्रेस ने पहली सीट पर अपनी जमा पूँजी खो दी थी और दूसरी में वह तीसरे स्थान पर आई थी |
हिन्दू मतदाताओं को दक्षिण बसिरहत में थोड़ा सा बहुमत हासिल है | अवैध आप्रवास, गोहत्या रैकेट और इस्लामी हिंसा यहां के प्रमुख चुनावी मुद्दे थे | भाजपा उम्मीदवार शमिक भट्टाचार्य ने लोक सभा में यहाँ ३०००० मतों से जीत हासिल की थी | ममता बनर्जी ने अपने सबसे नजदीकी सहायक और ७ मंत्रियों को वहां के बाय पोल का नियंत्रण करने के लिए भेजा | मतदाताओं को डराने के बावजूद उस सीट पर करीब ८० प्रतिशत मतदान पड़े | दक्षिण बसिरहत का ग्रामीण क्षेत्र जो मुस्लिम इलाका है वहां टीएमसी को १७००० मतों की बढ़त हासिल हुई | शहरी बसिरहत जहाँ हिन्दू ज्यादा है उन्होनें भाजपा की कमी को पूरा किया और उन्हें जीत हासिल हुई | भाजपा को यहाँ ७० प्रतिशत मत मिले |
इसके बाद चोरिंघी में टीएमसी ने ममता के नजदीकी सहायक सुदीप बंदोपाध्याय की पत्नी को खड़ा किया था | कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही हिन्दीभाषी हिन्दू उम्मीदवारों को खड़ा किया था | कांग्रेस का उम्मीदवार वहां का स्थानीय पार्षद था | उर्दू भाषी मुस्लिम और हिंदी भाषी हिन्दू वहां की जनता का एक प्रमुख प्रतिशत था | चोरिंघी में करीबन ५० प्रतिशत मतदान ही पड़े – माना जाता है की हिंदी भाषी हिन्दुओं ने अधिक संख्या में मतदान में भाग नहीं लिया | मुसलमान प्रधान क्षेत्रों ने टीएमसी के लिए मत डाले जबकि हिन्दू क्षेत्रों के मत कांग्रेस और भाजपा के बीच में बंट गए जिस वजह से टीएमसी को जीत हासिल हुई |
इससे साफ़ है की मुसलमान बंगाल में भाजपा के हक में मत नहीं डाल रहे हैं ; इस के बजाय टीएमसी पर उनकी पकड़ जहाँ भाजपा मोजूद है वहां पर भी और मज़बूत होती जा रही है | ये पकड़ लोक सभा चुनावों के देखे बाय पोल्स के बाद और बढ़ गयी है | लोक सभा चुनावों में बसिरहत के कुछ मुसलमानों ने वाम के लिए मत डाले थे | लेकिन भाजपा की वहां अपार सफलता देख वह बाय पोल्स में टीएमसी की तरफ हो लिए | वाम ने ऐसी सीट पर अपनी जमा पूँजी खो दी जिसे वह लगातार ९ सालों से जीतता आ रहा था ( बाय पोल इसलिए करवाए गए क्यूंकि वहां के वाम के मोजूदा एम्एलऐ की मौत हो गयी थी ) और भाजपा की इस क्षेत्र में बढ़त ३०००० से घट कर १००० रह गयी |
फिर भाजपा क्या कर सकती है
उत्पाद में भिन्नता बहुत महत्वपूर्ण है , अगर भाजपा को पश्चिमी बंगाल में अपना कमाल दिखाना है | भाजपा को राष्ट्रिय स्तर पर तब ही सफलता हासिल हुई थी जब उसने अपने आप को अन्य विकल्पों से प्रभावी रूप से अलग दिखाया था | उसकी लोक सभा में सीटें राम जन्मभूमि अभियान के शुरू करने से २ से ८२ तक पहुँच गयीं थी | इस अभियान को बंगाल में जहाँ भगवान् राम की इतनी मान्यता नहीं है ( मसलन उत्तर भारत की तरह बंगाल में भगवान् राम के नाम से एक दुसरे को संबोधित नहीं करते हैं ) वहां भी समर्थन मिला | इस समर्थन को वहां के मोजूदा नेता द्वारा मुसलमान कट्टरपंथियों को खुश करने की साफ़ कोशिशों की वजह से और बढ़ावा मिला |
उदाहरण के तौर पर भारत उन शुरुआती देशों में से था जहाँ सलमान रुश्दी की किताब द सैटेनिक वर्सेज पर इस वजह से प्रतिबन्ध लगाया गया की वह मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाती है | इसके बाद कट्टरपंथियों की मांग पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक मुस्लमान औरत शाह बानो के रखरखाव पर दिए गए एक प्रगतिशील फैसले को विधायी मार्ग के माध्यम से पलटवा दिया गया | भाजपा का मत प्रतिशत इस समय में बंगाल में दो अंकों में पहुँच गया | फिर से २०१४ में प्रधान मंत्री मोदी ने विकास और धर्मनिरपेक्षता के मौजूदा हालात के खिलाफ प्रचार कर एक अविश्वसनीय जीत हासिल की | उन्होनें प्राधिकरण की ज़रुरत और भारतीय शैली धर्मनिरपेक्षता के लिए चिड जो की तब तक पाकिस्तान को खुश और आतंकवादियों की तारीफ़ तक सिमट कर रह गयी थी(कई उच्च बिहारी नेता शान से अपनी पाकिस्तान यात्राओं का बखान करते थे , जिसमें ओसामा बिन लादेन जैसी शकल के लोगों को वह साथ ले जाते थे – सिर्फ मुसलमान मत हासिल करने के लिए ) को अपना केंद्र बिंदु बनाया | इस ताज़ा नज़रिए से भाजपा को बंगाल में तिगुना मत की बढ़त हासिल हुई |
कायदे से भाजपा को अपने आप को विधान सभा चुनावों में ही अलग से प्रदर्शित करना होगा ; क्यूंकि वाम का स्थान बंगाल में पहले ही काफी घिरा हुआ है ( टीएमसी तो वाम से भी ज्यादा वाम है ) | ऐसे काफी मुद्दे हैं जिन पर भाजपा और सिर्फ भाजपा अपना हक जमा सकती है | ममता बनर्जी का मुसलमानों को खुश करने की कोशिश पर बंगाल में अलगाव बढ़ता जा रहा है | उन्होनें उदाहरण के तौर पर मुसलमानों के लिए उच्च शिक्षा में आरक्षण घोषित किया है और इमाम्नो को ख़ास वेतन देने का फैसला लिया पर ऐसा कुछ हिन्दू पंडित और ईसाई पुजारियों के लिए नहीं किया |
वाम इसका विरोध नहीं कर सकती क्यूंकि उसने भी अपने सरकार के समय पर मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की घोषणा की थी |बांग्लादेश से अवैध आव्रजन के कारण जनसांख्यिकीय परिवर्तन बंगाल भर में दिखाई दे रहे हैं, और इससे सीमावर्ती जिलों में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया है| इस्लामी गुंडे बिना दंड की चिंता करे और कई बार पुलिस की सुरक्षा के साथ कार्य करते हैं | २०१४ के लोक सभा चुनावों में भाजपा के मत प्रतिशत में मिली बढ़त इसी मत राजनीती से उभरी निराशा के फलस्वरूप है | पर अगर इसको और बढ़ना है तो राज्य नेताओं को ज़मीनी स्तर पर और मीडिया में प्रदर्शित कर धार्मिक भेदभाव के मुद्दे पर विरोध करना चाहिए |
राजकीय भाजपा को धार्मिक दंगों के पीड़ितों के साथ हमदर्दी जता उनकी दयनीय स्थिति पर लगातार विरोध करना चाहिए | जब विपक्ष में थी तो ममता एक बार एक बलात्कार की पीडिता को महाकारण लेकर आई और तब तक उसे जाने नहीं दिया जब तक उसे इन्साफ न मिल जाये | एक राष्ट्रिय दल को संदेशखाली भेजने के बजाय भाजपा क्यूँ उन दैनिक श्रमिकों की व्यथा को सामने नहीं ला सकती जिनको विकलांग बनाने के उद्देश्य से मुस्लिम गुंडों ने गोली मार दी थी ? उस क्षेत्र की औरतों के साथ बलात्कार किया गया क्यूंकि उनके परिवार के पुरुष भाजपा के सदस्य बनना चाहते थे | हिन्दू कार्यकर्त्ता , नाकि सिर्फ भाजपा के कर्मचारी , बांग्लादेश से सटे जिलों की ज़मीन पर मुस्लिम हिंसा (पुलिस के समर्थन से)का विरोध कर रहे है | हाल ही के बाय पोल में भाजपा ने अपने बलबूते पर ऐसी ही एक सीट दक्षिण बसिरहत जो की बांग्लादेश से लगा हुआ है में जीत हासिल की | एक हिंदू कार्यकर्ता संगठन, हिंदू संहति , वहां सक्रिय है।
ये जानना ज़रूरी है की भाजपा के अभियान में बंगाल में कोई धार्मिक सन्देश नहीं था | उसने तो कई शेत्रों में हो रहे गौहत्या के चालू रहने का समर्थन किया है | इसके बावजूद भी मुसलमान मत न सिर्फ उससे दूर रहे अपितू उनके विरुद्ध उसकी पकड़ और मजबूत हो गयी | भाजपा की बंगाल में जीतने की उम्मीद अंत में सिर्फ एक प्रतिद्वंदी हिन्दू पकड़ बनाना है | भारत के अन्य क्षेत्रों में लोक सभा चुनावों में हिन्दू पकड़ ने ही भाजपा को उल्लेखनीय जीत दिलवाई है , जैसे उत्तर प्रदेश में कमज़ोर संगठन के बावजूद भी | फिर भी बंगाल भाजपा के अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने मीडिया में अपने चुनावी विश्लेषण में जो भविष्य में उनके हिन्दू मत पर पकड़ बढ़ाने में मदद करते ऐसे कारकों जैसे मुस्लिम तुष्टीकरण, अवैध आप्रवास को अहमियत नहीं दी | दक्षिण बसिरहत के जीतने वाले प्रत्याशी ने इस बात पर जोर दिया की कैसे टीएमसी न सिर्फ हिन्दू बल्कि मुसलमानों का भी इस्तेमाल कर रही है | ये तथ्य एक तरीके से अधुरा है क्यूंकि हिन्दू बंगाल में ममता की राजनितिक हिंसा के एकमात्र नहीं प्राथमिक शिकार हैं |
ऐसा राष्ट्रिय मीडिया में सामने आया है की बंगाल की स्कूली किताबों में आज़ादी के क्रांतिकारियों को आतंकवादियों की तरह दर्शाया जाता है | उम्मीद से अलग राज्य की भाजपा ने इस गंभीर उल्लंघन के बाद भी कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया हांलाकि स्थिति बड़ी परिपक्व थी | हाल ही में हिन्दू संहति ने गोपाल मुख़र्जी(जिन्होनें आज़ादी मिलने से पूर्व हुए ग्रेट कलकत्ता किल्लिंग्स नाम के दंगों में मुस्लिम लीग के दंगाईयों का विरोध किया था) के सम्मान में और इजराइल के समर्थन में एक रैली का आयोजन किया जिसमें २०००० लोगों ने भाग लिया | ये रैली इजराइल के बाहर उसके समर्थन में की गयी सबसे बड़ी रैली थी | ये आश्चर्यजनिक है वाम इलाकों में बिना मीडिया समर्थन के इतनी बड़ी रैली का आयोजन हो सकता है | इससे ये ज़ाहिर होता है की वाम इलाकों में चीज़ें सही होने की थोड़ी से उम्मीद है | भाजपा को ना सिर्फ ऐसे अभियानों का हिस्सा बनने की पर इनका नेतृत्व करने की ज़रुरत है |
अपने लोक सभा चुनावी अभियान के दौरान मोदी ने बांग्लादेश से गैरकानूनी लोगों की आवाजाही को मुद्दा बनाया और वादा किया की जीतने पर वह ऐसे लोगों को वापिस भेज देंगे | इस बात ने सीमावर्ती इलाकों के लोगों पर अपना प्रभाव छोड़ा | अपने विधानसभा चुनावी अभियान शुरू करने से पहले ये ज़रूरी है की भाजपा इस आवाजाही को रोकने की तरफ कुछ कदम उठाये | ये सही नहीं लगता की उत्तरपूर्वी राज्यों से आवाजाही को राष्ट्रिय प्राथमिकता दी जा रही है और बंगाल को नहीं |
दूसरी तरफ राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ अपने बंगाल में संगठन को लेकर सकरात्मक और महत्वपूर्ण कदम उठा रही है | खबरें आ रही हैं की उसने वंचित सामाजिक पृष्ठभूमि के लोगों में से नेताओं को तैयार कर पिछड़ी जातियों के बीच अपनी एक मज़बूत पकड़ बना ली है | ये बिलकुल सही कदम है क्यूंकि वाम और टीएमसी के हिन्दू नेता सभी उच्च जाती के हैं | हांलाकि अभी तक जाती ने मत पर कोई प्रभाव नहीं डाला है लेकिन ये हो सकता है की पिछड़ी जाती के मतदाता अपनी ही वर्ग से उठे नेताओं को प्राथमिकता दें |
उत्पाद भिन्नता को वैचारिक और सामाजिक मुद्दों से ऊपर उठकर पेश किया जाना चाहिए | बंगाल की अर्थव्यवस्था अभी तक वाम और टीएमसी की लोकलुभावन नीतियों की वजह से विषाद में है और दोनों की ही आर्थिक नीतियों में कोई ख़ास फर्क नहीं है | ऐसी अतिसंकुल और अनुत्पादक स्थान में प्रतिस्पर्धा करने से अच्छा है की बंगाल भाजपा को इस बात को पेश करना चहिये की कैसे लोकलुभावनवाद और माला फाइड ट्रेड यूनियनवाद ने बंगाल का सर्वनाश कर दिया है और उन्ही लोगों को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई है जिनकी वह रक्षा करने का दावा करता था | उनको एक ऐसी दलील पेश करनी चाहिए जो पैसे की बढ़त की बात करे न की गरीबी का गुणगान की |
ये वक़्त बंगाल में एक नए तरीके के अभियान के लिए बिलकुल परिपक्व है | जिन किसानों ने नानो योजना में टाटा द्वारा हासिल की गयी ज़मीन के विरुद्ध प्रदर्शन किया था उन्हें टाटा के वहां से जाने के सालों बाद भी अपनी ज़मीन वापस नहीं मिली है | इस के ऊपर ममता के चुनाव से पहले के हसीन वादों पर ध्यान न दें तो भी जिन लोगों ने मुआवज़े के बदले ज़मीन दे दी थी उन्हें वो मुआवजा योजना के रद्द होने के बाद भी नहीं मिला है | कभी सिंगुर की रानी कहीं जाने वाली ममता अपने चुनाव के वादे को ना पूरा कर पाने की असफलता के कारण आज उस इलाके में बिना धिक्कार का सामना किये नहीं जा सकती हैं |
भूमि अधिग्रहण आंदोलन की व्यर्थता को देखते हुए कई जगहों के किसान अपनी ज़मीन को दान करने को तैयार हैं | भाजपा को अपनी दलील में ये कहना चाहिए की वह बिना किसानों के हित को दांव पर लगाये बंगाल का उद्योगीकरण करना चाहती है | वह गुजरात का उदाहरण दे सकते हैं जिसने पिछले दशक में दो अंकों में बढ़त और विनिर्माण क्षेत्र में पर्याप्त वृद्धि देखी है | वह वसुंधरा राजे सिंदिया का उदाहरण दे सकते हैं जिन्होनें अपने पूर्ववर्ती अशोक गहलोत की लोकलुभावन नीतियों के विरुद्ध अभियान कर कांग्रेस को भारी मतों से राजस्थान में शिकस्त दी थी | बंगाल में काफी समय से कोई बदलाव नहीं आया है – ये एक और वजह है की क्यूँ वहां के नागरिक एक मौका देने को तैयार हो सकते हैं |
नए सन्देश को स्वीकृति मिलने के लिए ज़रूरी है की एक ऐसा माध्यम हो जो इसे सब तक पहुंचा सके | भाजपा को एक दोस्ताना टीवी चैनल और एक स्थानीय अख़बार की ज़रुरत है अपने सन्देश को लोगों तक पहुँचाने के लिए | बंगाल एक ग्रामीण अविकसित राज्य है| इसलिए सूचना प्रौद्योगिकी अभी तक उसके ग्रामीण क्षेत्रों में पहुँची नहीं है | इसलिए बंगाल में हर बड़ी पार्टी का एक या एक से ज्यादा अनाधिकारिक संबद्ध मीडिया समूह है |
बांग्लादेश और कट्टरपंथी इस्लामीकरण से अवैध आव्रजन के खतरे के बारे में जागरूकता पडोसी असाम के देखे यहाँ अभी भी कम है | मोजूदा समाचार मीडिया ने ऐसी घटनाओं को छुपा दिया है जो किसी भी सही सोच वाले नागरिक को हिला कर रख दें | हिंदु देगंगा और कैनिंग में आयोजित धार्मिक हिंसा का शिकार हुए | जब बांग्लादेश का धर्मनिरपेक्षता अभियान शाहबाग सक्रीय था , जिसमे ये उम्मीद की गयी थी की जिन लोगों ने १९७१ में पाकिस्तान सेना का साथ दे अपने ही देशवासियों पर ज़ुल्म किये उन्हें भारी सजा दी जाये तो कोलकाता में उस समय बांग्लादेशी इस्लामवादी के समर्थन में रैलियों का आयोजन हो रहा था | बांग्लादेशी इस्लाम्वादियों के लिए कोलकत्ता में समर्थन निंदनीय है क्यूंकि वह भारत पाकिस्तान के १९७१ की लडाई में भारतीय सेना के विरुद्द लड़े थे |
कई कलकत्ता के निवासियों को इस रैली के आयोजन की खबर भी नहीं क्यूंकि मीडिया ने इस खबर को छुपा लिया | पड़ोसी बांग्लादेश में हिंदू बंगालियों की धार्मिक उत्पीड़न की सूचना नहीं दी गयी है। इस्लामियों के हिंसक प्रदर्शनों के चलते प्रतिष्ठित लेखक तसलीमा नसरीन को बंगाल में वाम राज्य में रहने की अनुमति नहीं मिली |इसके बाद ममता बनर्जी ने एक ऐसे टीवी सीरियल पर प्रतिबन्ध लगा दिया जिसका वह हिस्सा थी |बंगाली मीडिया और बुद्धिजीवी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस घृणित हमले के दौरान चुप रहे। आखिर में जिस विशाल हिन्दू संहति रैली का मेने पहले ज़िक्र किया था उसको स्थानीय मीडिया में भी नहीं दिखाया गया जबकि विदेशों के मीडिया में जैसे पाकिस्तान ,फ्रांस और इजराइल में इस पर खबर दिखाई गयी |
अंत में शायद भाजपा २०१६ के विधान सभा के चुनावों के लिए एक करिश्माई और विश्वसनीय चेहरा सामने न भी ला पाए तो भी वह अन्य राज्यों से अनुभवी नेताओं को संगठन का नेतृत्व करने के लिए भेज सकते हैं | हम ये भी उम्मीद कर सकते हैं की ग्रामीण बंगाल में राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के फैलाव से शायद भाजपा को अन्य पार्टियों का नेतृत्व करने वाले शाहुरे (शहरी) उच्च जाती बंगाली भाद्रोलोक्स(जनता) के विपरीत उसी सामाजिक और भौगोलिक पृष्ठभूमि का नेता मिल जाएगा |
दक्षिण बसिरहत के एक गाँव के हिन्दुओं को बाय पोल्स में मत डालने से टीएमसी के गुंडों ने रोक दिया था | उन्ही ग्रामीणों ने बाद में इकठ्ठा हो उस पार्टी की जीत पर जश्न मनाया जिसके लिए वह मतदान करना चाहते थे | भाजपा को अपने वैचारिक संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के राज्य से उठती इन दबी हुई आवाज़ों के लिए इस दहशत के साम्राज्य को ख़तम करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए | इससे पहले की और देर हो जाए बंगाल को एक मौका मिलना चाहिए |
सास्वती सरकार ने २०१४ के चुनावों में पश्चिमी बंगाल की भाजपा के लिए चुनाव अभियान किया था |
Source: http://blogs.swarajyamag.com/2014/09/21/destination-mahakaran