श्रीमान मोदी को इस मुद्दे का अंत करने के इरादे से आगे बढ़ना चाहिए |

ये प्रधान मंत्री जी की तरफ से एक नेक कदम था की उन्होनें नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के  परिवार को १४ अक्टूबर २०१५ को अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया | नेताजी के परिवार के सदस्यों ने नरेन्द्र मोदी से उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले संपर्क किया था | श्रीमान मोदी से बैठक के बाद सदस्यों ने नेताजी से जुडी उन फाइलों को सार्वजानिक करने की मांग की जो आज भी प्रधान मंत्री कार्यालय और अन्य मंत्रालय में तालों में बंद रखी गयी हैं | हर मौके पर श्रीमान मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया की वह उसके बारे में कुछ करेंगे | अप्रैल में अपनी जर्मनी की यात्रा के बाद , जहाँ उनकी मुलाकात सूर्य कुमार बोस से हुई , सरकार ने सरकारी गोपनीयता अधिनियम की समीक्षा करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की घोषणा की , जो की नेताजी की फाइलों को सार्वजानिक करने की तरफ उनका पहला कदम था | लेकिन बीते 6 महीनों में इस समिति के काम पर कोई जानकारी नहीं मिली है |

प्रधान मंत्री फिर मई में बोस परिवार के कुछ सदस्यों से मिले जिन्होनें फाइलों को सार्वजानिक करने की मांग को फिर दोहराया | परिवार को आश्वासन देने के बजाय प्रधानमंत्री अभी तक इस मुद्दे पर शांत बने हुए हैं | ना तो उन्होनें फाइलों को सार्वजानिक करने के बारे में कुछ कहा है और न ही नेताजी के गायब होने के रहस्य को सुलझाने का कोई इरादा दिखाया है | उल्टा प्रधान मंत्री के कार्यालय ने फाइलों के एक भी पन्ने को सार्वजानिक करने की मांग को साफ़ तौर पर ठुकरा दिया है | सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत दर्ज की गयी सारी गुजारिशों को मोदी जी के कार्यालय सँभालने के बाद रद्द कर दिया गया है  |

ये एक विडंबना है की श्रीमान मोदी के दल ने इससे पूर्व फाइलों के सार्वजानिक करने पर मना करने पर कांग्रेस सरकार की ज़बरदस्त आलोचना की थी | फाइलों को सार्वजानिक न करने की वजह भी वो ही थी –देश में कानून और व्यवस्था को नुक्सान  और भारत के और देशों से सम्बन्ध में  क्षति की सम्भावना  |

एक तरह धारणा और वास्तविकता के बीच का ये सम्बन्ध विछेदन वक़्त के साथ बढता गया दूसरी तरफ बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी ने ६४ गुप्त फाइलों को और १९३८ से १९४७ के काल में  बंगाल के मंत्रियों के बीच हुई बैठकों के मुख्य बिंदु को भी सार्वजानिक कर दिया | इस कदम के बारे में कोई वक्तव्य जारी नहीं किया गया था | सिर्फ कार्य को अंजाम दे दिया गया | प्रधानमंत्री के कार्यालय ने परंपरा के अनुरूप श्रीमती बनर्जी के इस कदम की निंदा की | लेकिन दो दिन के भीतर श्रीमान मोदी ने अपने रेडियो वार्ता में ये आश्वासन दिया की वह अक्टूबर में परिअवर के ५० से ज्यादा सदस्यों से मिलेंगे | उन्होनें बैठक को एक शिष्टाचार मेल बताया – परिवार के लिए गर्व की बात क्यूंकि वह प्रधानमंत्री निवास में कदम रखेंगे और उनके लिए भी क्यूंकि वह उनका स्वागत करने वाले पहले प्रधान मंत्री होंगे |

इससे देश को क्या आपत्ती होगी की प्रधान मन्त्री बोस परिवार से मिलकर उनके साथ चाय पर चर्चा करना चाहते हैं , अगर वह चर्चा सिर्फ शिष्टाचार वार्ता और हाल चाल पूछने का एक जरिया है ? सिर्फ परिवार से मिलना तो नेताजी को सम्मानित करने का तरीका नहीं है – वह इन सब ढोंगों से बहुत ऊपर हैं | और ये बात भी ध्यान में रखें की वह पूरे देश को अपना परिवार मानते थे | इसीलिए अगर प्रधानमंत्री जी नेताजी को इज्ज़त देना चाहते हैं तो वह सिर्फ परिवार से मिलने से हासिल नहीं होगा | इसके लिए उन्हें पहले नेताजी से जुड़े सभी दस्तावेजों को सार्वजानिक करना होगा और उसके बाद उनके गायब होने के रहस्य को सुलझाना होगा | इसके पश्चात सरकार को नेताजी और उनकी इंडियन नेशनल आर्मी को भारत की स्वतंत्रता लडाई में सही जगह देनी होगी |

प्रेस में छप रही ख़बरों से प्रतीत हो रहा है की परिवार दस्तावेजों के सार्वजानिक किये जाने और साथ में और मुद्दे जैसे न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट(जिसने यूपीए सरकार को २००६ में ये बताया था की १९४५ में नेताजी की मौत की खबर झूठी थी और इसके बाद सरकार ने इस बात को ख़ारिज कर दिया था) के पुनः विश्लेषण और अन्य देशों से दस्तावेजों की प्राप्ति की मांग को फिर उठाना चाहता है | ये देश उम्मीद करता है की मुख्य मुद्दे के हल ढूँढने की जनता की मांग – की नेताजी को क्या हुआ – परिवार और मोदीजी के बीच हो रही बातचीत के फलस्वरूप प्रभावित न हो जाए | प्रधान मंत्री जी को न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की जांच की रिपोर्ट जिसकी २००६ में डॉ मनमोहन सिंह ने मांग की थी उसकी रिपोर्ट की मांग करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए | जब तक सही मांगें नहीं रखी जायेंगी , ये सम्भावना बनी रहेगी की प्रधानमंत्री सीमित दस्तावेजों को सार्वजानिक करने के लिए तैयार हो जायेंगे , जिससे इस मुद्दे का हल नहीं निकलेगा |

एक प्रशंसाजनक कदम में परिवार ने ये कहा है की वह प्रधानमंत्री से मुलाकात करने वाले दल में और शोधकर्ताओं को शामिल करना चाहेंगे , जिनमे से कुछ मिशन नेताजी के सदस्य हैं , एक गुट जिसने २००६ से दस्तावेजों को सार्वजानिक करने की मुहीम चालू की थी जिसकी वजह से २०१२ में कुछ हज़ार पन्ने सार्वजानिक किये गए थे | संयोग से मिशन नेताजी ने प्रधान मत्री जी के सामने ये मांग एक ऑनलाइन याचिका के माध्यम से भी की है  जिस पर  अभी तक दुनिया भर के १२००० हिन्दुस्तानी हस्ताक्षर कर चुके हैं |

मुख्य मांगों में शामिल हैं न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को स्वीकारना , नेताजी से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजानिक करना ( जिनमें शामिल हैं केंद्रीय और राज्य खुफिया फ़ाइलें और वह फाइलें भी जो “ सिर्फ प्रधान मंत्री के आँखों के लिए” हैं ), एक ऐसी जांच दल का गठन जिनके पास वह सभी ज़रूरी अधिकार हों जिनसे वह सम्बंधित लोगों और दस्तावेजों का आवलोकन कर सके और न सुनने वालों को दण्डित कर सकें , और अन्य देशों जैसे रूस, चीन, जापान, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा दस्तावेजों को जारी करने की उच्च आधिकारिक स्तर पर मांग |

न्यायमूर्ति मुखर्जी की जांच की मांगों को जांच की योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि राजनीतीक दबाव में आकर अस्वीकृति दी गयी | श्रीमान मोदी को  सच्चाई और न्याय के खातिर रिपोर्ट को स्वीकृति देनी चाहिए – ये अलग बात है की इस कदम से उन्हें राजनीतिक फायदे भी होंगे | हांलाकि जिन दस्तावेजों को प्रधान मंत्री कार्यालय और अन्य मंत्रालयों में गुप्त रखा गया है उन्हें सार्वजानिक करना चाहिए , ये बात भी ध्यान में रखनी चाहिए की न्यायमूर्ति मुख़र्जी ने इन दस्तावेजों को देखा हुआ है | असली जानकारी केंद्रीय और राज्य खुफिया एजेंसियों द्वारा रखी गयी फाइलों में है। इन फाइलों को ये जहाँ भी मोजूद है वहां आख़री पन्ने तक तलाशना चाहिए | इस कार्य को अन्य देशों खास तौर पर रूस, चीन और ब्रिटेन के गुप्त दस्तावेजों की तलाश के साथ अंजाम दिया जाना चाहिए | श्रीमान मोदी को ये ज़िम्मेदारी  अपने मंत्रियों पर न डालकर अपने ऊपर  लेनी होगी की इन देशों से दस्तावेजों की मांग करें | हमें स्वीडिश राज्य के प्रमुखों ने जिस तरह रौल वाल्लेनबर्ग का केस संभाला उससे कुछ सीखना लगे |

श्रीमान मोदी को इस इरादे से बढ़ना चाहिए की इस मुद्दे का हल निकल सके | ये ही समझदारी होगी की जांच को दुबारा से शुरू करने की बजाय वहां से आगे बढाया जाए जहाँ न्यायमूर्ति मुख़र्जी ने उसे छोड़ा था| उन्हें जांच दल को सही नतीजे तक पहुँचाने के लिए  उन सब विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए जो इस रहस्य को सुलझाने में मददगार साबित होंगे - पूर्व उच्च नौकरशाह, खुफिया मालिक, पुरालेखपल और मिशन नेताजी गुट जैसे दावेदार |

ये बेहद ज़रूरी है प्रधानमंत्री इन मांगों को जल्द ही मान ले और सिर्फ अपने नेक इरादों का बयान दे और एक “हम इसके बारे में गंभीरता से सोचेंगे” का आश्वासन देने के बजाय अपनी करवाई की योजना की घोषणा करें | मिशन नेताजी , ने अपनी याचिका में कहा है की उन्हें लगता है की श्रीमान मोदी एकमात्र ऐसे नेता हैं जो हिम्मत से इस समस्या का सही समाधान निकाल सकते हैं | अब ये श्रीमान मोदी पर हैं की वह उन्हें सही या गलत साबित करना चाहते हैं | इस देश की प्रधानमंत्री और परिवार दोनों पर नज़र है  | सात दशकों से किये गए धोके को अब सबके सामने लाना बहुत ज़रूरी है | ये ज़ाहिर है आसान नहीं होगा | इसलिए दोनों की तरफ से  एक अधूरी कोशिश सही नहीं है और देश की जनता को स्वीकार्य भी नहीं होगी |  

श्रीमान मंत्री , कृपया हमें हमारी विरासत , हमारी संपदा लौटा दें ये बता कर की अपनी आजादी के लिए अपने देशवासियों का नेतृत्व करने वाले अदम्य शहीद को क्या हुआ था | हमें आपके विचार का इंतजार है।

Source: http://www.dailyo.in/politics/netaji-files-narendra-modi-mamata-banerjee-bose-family-pmo-espionage-nehru-state-intelligence-surveillance/story/1/6717.html

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