ये इतिहास की एक विडम्बना है की भाजपा बंगाल अपने वैचारिक संस्थापक के जन्मस्थान से बिलकुल गायब हो गयी है | बंगाल में एक राजनितिक विकल्प की खोज उसे दुबारा प्रकट होने का मौका दे सकती है | जैसा सबको पता है बंगाल में एक व्यापक गिरावट आई है फिर चाहे वह शासन, प्रशासन, कानून और व्यवस्था, औद्योगिक विकास, बुनियादी सुविधाओं, शिक्षा या स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में हो | बंगाल की कहानी अब सीमित है उद्योगपतियों का बेहतर जगहों पर स्थानान्तरण , आर्थिक तंगी की तरफ एक धीमा झुकाव और लिंग हिंसा के सबसे ज्यादा उदाहरणों की बदनामी तक |
जिस राज्य ने भारतीय पुनर्जागरण को जन्म दिया था वह अब युवा और महत्वाकांक्षी आबादी को गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान नहीं कर पा रहा है | एक वक़्त पर भारत की बौधिक राजधानी कहलाया जाने वाला शहर कोलकत्ता , आज गर्व से , राज़कारस जिन्होनें पडोसी बांग्लादेश में नरसंहार को बढ़ावा दिया और १९७१ की लड़ायी में भारतीय सेना का विरोध किया उनके समर्थन में रैलियों का आयोजन करता है | जब इस्लामी गुंडों ने प्रतिष्टित लेखक तसलीमा नसरीन के इस्लाम पर अपना नजरिया पेश करने के विरोध में हिंसक प्रदर्शन किया तो राज्य ने श्रीमती नसरीन को चुप चाप दिल्ली भेज उनके सामने घुटने टेक दिए |
इस भरपूर गिरावट की ज़िम्मेदारी वाम राज्य जिन्हें लगातार 35 सालों तक जनमत दिया गया उन पर ख़तम हो जानी चाहिए | उनके व्यापार यूनियनों ने काम संस्कृति को नष्ट कर दिया और उद्योगपतियों को जनता की नज़र में उन के शत्रुओं की तरह बदनाम कर दिया | पढ़े लिखे अंग्रेजी भाषी कर्मचारियों के होते हुए कोलकत्ता किसी ज्ञान आधारित उद्योग जैसे सूचना प्रोद्योगिकी का केंद्र नहीं बन पाया | वाम राज्य ने अपने संस्थानों को क्षीण कर दिया - अयोग्य राजनीतिक सहयोगीयों को प्रतिष्टित विश्वविद्यालयों में ऊँचे पद पर आसीन कराया गया और पुलिस को राजनितिक दबाव में रखा गया | राजनीतिक नेतृत्व ने बंगाल की प्राकृतिक सुंदरता, अमीर वन्य जीवन और वास्तु जवाहरात होने के बावजूद पर्यटन उद्योग को बढ़ाने की कोई कोशिश नहीं की |
वाम की बार बार विजय की वजह थी विपक्ष में किसी और मज़बूत विकल्प की कमी | उसके मुकाबले सीपीआईएम के पास एक मज़बूत संगठन था और ज्योति बासु के कद का नेता | उनके पार्टी दफ्तरों की व्यापक श्रृंखला खुद ही एक संगठन की तरह काम करते थे | शासन की ख़राब कार्यप्रणाली ने नागरिकों को मजबूर किया की वह राज्य द्वारा नैतिक तौर पर दी जाने वाली सेवाओं के लिए भी इस संगठन पर निर्भर होकर रहे |
पात्रता की राजनीति के चलते जनता को करदाताओं के रूप में अपने अधिकारों के प्रयोग करने के बजाय अहसान पाने की आदत पड़ गयी | इसके ऊपर ग्रामीण ज़मीन सुधार बर्गा जो वाम सरकार ने सत्ता में आते ही लागू कर दिया था के तहत बिना ज़मीन के ग्रामीण श्रमिकों का एक वफादार मतदाता गुट तैयार हो गया | ये बात की इन सुधारों में कृषि प्रोद्योगिकी को दबाने की वजह से कृषि का पूर्ण विकास स्थगित हो गया और छोटे और बंटे हुए ज़मीन के टुकड़े की प्रथा चल गयी लोगों के ज़हन में नहीं आई |
अंत में ये राज्य बदला लेकिन गलत कारणों से | बुद्धदेव भट्टाचार्य जिन्होंने ज्योति बासु के बाद सत्ता संभाली उन्होनें औद्योगिक विकास की अहमियत को समझा पर वह अपनी इस सोच को लागू करने के राजनितिक अनुभव में पीछे रह गए | ऐसे समय पर एक साहसी और लोकलुभावन राजनितिक विपक्ष का जन्म हुआ | ममता बनर्जी ने सफलता से मनमानी और नंदीग्राम और सिंगुर में वाजिब भूमि अधिग्रहण का विरोध किया| ओद्योगिक विकास का सपना चकनाचूर हो गया जब टाटा ने नानो योजना को सिंगुर से हटा गुजरात के सानंद में स्थानांतरित कर दिया |
भूमि अदिग्रहण से जन्मे कृषि असंतोष और शहरी मतदाताओं में प्रशाशन से नाराज़गी ने उस परिवर्तन को जन्म दिया जिससे बंगाल में तृणमूल(टीएमसी) की सत्ता की शुरुआत हुई | हकीक़त में सिर्फ राजनितिक रंग बदला है - टीएमसी ने सिर्फ कोलकत्ता को लाल के बजाय नीले रंग में रंग दिया है | ममता बनर्जी ने वाम बंगाल के राज्य को काफी पीछे छोड़ दिया है – बंगाल में अभी भी राजनितिक रैलियां, राजनितिक क़त्ल और सामूहिक बलात्कार होते है – बलात्कार की संख्या में पिछले एक साल में काफी बढ़त आई है | उन गुंडों को जिन्हें राजनितिक पुलिस दल की सुरक्षा प्राप्त थी वह अभी भी अपनी मनमानी कर रहे हैं बस उनके राजनितिक मालिक बदला गए हैं | ये सरकार जिसका जन्म एक बड़े उद्योग के जाने की वजह से हुआ था ज़ाहिर है पूँजी निवेश में दिलचस्पी नहीं दिखायेगी और वह उद्योगों की प्रमुख ज़रुरत ज़मीन को हासिल करने में दखलंदाजी करने से साफ़ मना कर देती है | तृष्टिकरण और लोकलुभावनवाद की राजनीति आजतक उसकी विशेषता है | बंगाल की हालत टीएमसी सरकार के पिछले दो सालों में बद से बदतर हो गयी है और वाम शासन की बुरी यादें आज भी लोगों के मन से गयी नहीं है | ये सही समय है जब एक व्यवस्थित और मज़बूत तीसरा दल इस राजनीतिक कमी को पूरा कर सकता है |
भाजपा और बंगाल
भाजपा अभी भी इतनी ताकतवर नहीं है की बंगाल राजनीती के दोनों मज़बूत ताकतों , वाम और टीएमसी को चुनौती दे दे | पर वह ऐसे क्षेत्रों में एक विकल्प की तरह सामने आ सकती है जहाँ स्थानीय कारक उसकी स्वीकार्यता को बड़ा सकें | ये ध्यान देने वाली बात है की बंगाल उन कुछ राज्यों में से है जहाँ धर्म और जाती के बल पर चुनाव का फैसला नहीं होता है | राजनितिक दलों मुस्लमान प्रधान क्षेत्रों में मुस्लिम उम्मीदवारों को खड़ा करते हैं लेकिन इस पहचान की राजनीति से हिन्दुओं की सोच पर कोई असर नहीं पड़ता है | वास्तव में हिन्दू प्रधान क्षेत्रों से मुस्लमान उम्मीदवार जीते हैं मसलन कबीर सुमन हिन्दू से मुस्लमान बनने के बावजूद जादवपुर से २००९ में लोक सभा चुनाव जीतने में सफल रहे | पर मुसलमानों के प्रतिस्पर्धी तुष्टीकरण की राजनीति जिसका उपयोग ममता कर रही हैं और जिससे वाम और कांग्रेस को कोई आपत्ति नहीं है उसका धर्म से बेखबर मध्यम वर्ग बंगालियों द्वारा भी विरोध किया जा रहा है | मीडिया ने कोल्कत्त्ता में नरसंहार समर्थी रैलियों के आयोजन और कैनिंग में हिन्दू प्रधान गाँवों को नष्ट करने वाले दंगों की खबर को बिलकुल छुपा लिया है | इसके बावजूद भी एक समुदाय के गुंडों को दी जाने वाली ख़ास सुरक्षा स्थानीय स्तरों पर लोगों की नज़र में आ गयी है |
बंगाल सरकार ने इमामों के लिए मासिक भत्ता और अन्य पिछड़ी जाती के अंतर्गत १० % मुसलमानों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का ऐलान किया है जिससे सब तरह अराजकता फ़ैल रही है | बंगाल के 25 % मुसलमानों का मत न खो जाये इस डर से भाजपा के इलावा किसी भी दल ने इस कदम का विरोध नहीं किया | कई सरकारों ने लगातार अवैध घुसपैठ के मुद्दे को जो धीरे धीरे बांग्लादेश से जुड़े इलाको की जनसांख्यिकी में बदलाव ला रहा है , को अनदेखा कर दिया है | इन मुद्दों पर उठी अराजकता भाजपा की कीमत को, राज्य प्रशासन से जुड़े अलगाव और प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की राष्ट भर में लोकप्रियता से परे हो कर बड़ा सकता है | ये नैतिक रूप से भी सही होगा की लोकलुभावनवाद की राजनीति को चुनौती दी जाये जो की हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार के विरुद्ध है | इस के इलावा इस राजनीति से उनके लक्ष्य को कुछ फायदा नहीं हुआ है – मसलन बंगाल मुस्लिम भाजपा शासित गुजरात में बस रहे अपने समकक्षों से कहीं अधिक गरीब हैं | इन्हीं दलीलों को मतदाताओं और ख़ास तौर पर मुसलमानों को गुजराती मुसलमानों जो की गुजरात में प्रशासन से बेहत संतुष्ट हैं द्वारा पेश किया जाना चाहिए |
भाजपा को अपनी सारी संगठनात्मक ताकत उन 5 -10 लोक सभा क्षेत्रों की तरफ लगनी चाहिए जिन्हें अनुरूप स्थानीय कारकों की वजह से सही मौकों की तरह पहचाना जाना गया है | उन्हें जितनी जल्दी हो उम्मीदवारों का चुनाव करना चाहिए ताकि उनका संगठन मज़बूत हो सके और मतदाताओं के बीच उनकी व्यवहार्यता और स्वीकार्यता बढ़ सके | उदाहरण के तौर पर कई ग्रामीण औरतंश बलात्कार के खिलाफ राजनीतिक जन आंदोलनों का आयोजन कर रही हैं | पीड़ितों के साथ कन्धा मिला कर खड़े होने से भावनात्मक संबंध स्थापित होंगे | जो उम्मीदवार स्वतंत्र रूप से मशहूर हैं वह इस अभियान को और प्रभावी बनायेंगे |
सोशल मीडिया और नए चुनावी अभियान के तरीके (जैसे ३ डी सभाएं और विचारों का आदान प्रदान ) का इस्तेमाल करना चाहिए भारी मात्रा में स्वयसेवकों की नियुक्ति करने के लिए | अलग अलग स्वयंसेवक हर रोज़ एक या दो घंटे का वक़्त इस अभियान को और हफ्ते के अंत में किसी गतिविधि में भी भाग ले सकते हैं | उच्च श्रेणी के भागिदार शायद नियमित रूप से शरीक नहीं हो पायेंगे |कुछ शायद अभियान में वृद्धि न करें और उसे नुक्सान पहुंचाएं | लेकिन उनकी उपयोगिता से ज्यादा उनका भाग लेना ज़रूरी है और वह एक नयी राजनीतिक इकाई के जनाधार बनाने में मदद करेंगे | स्वयंसेवकों की समय प्रतिबद्धताओं, कौशल और भौगोलिक स्थानों के आधार पर एक सोची समझी रणनीति तैयार करनी चाहिए | मसलन स्वयंसेवक जिनके पास वक़्त की कमी है वह अपना योगदान ऑनलाइन , फ़ोन या एसेमेस अभियान के माध्यम से दे सकते हैं | अंत में एक राजनितिक वेब पोर्टल जो जानकार होने के साथ मनोरंजक भी हो जिसमें कार्टून, व्यंग्य, पैरोडी और संगीत के माध्यम से राजनितिक जानकारी का आदान प्रदान हो , काफी प्रभावी रहेगी | और मात्रीभाषित इलाकों में ऐसी वेब साईट को शुरू करना आपकी पहुँच को और बढ़ाएगा |
भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने अभी तक ममता बनर्जी को उनके इलाके में ललकारने की हिम्मत नहीं दिखाई है | हाउराह के भाजपा उम्मीदवार को आख़िरी क्षण में अपना आवेदन वापस लेने के लिए कहा गया था | कुछ लोग कहते हैं ऐसा टीएमसी उम्मीदवार की निश्चित जीत को आसान करने के लिए किया गया था | स्थानीय कार्यकर्ताओं को निराश करने के इलावा ऐसा कदम बंगाल में भाजपा की चुनावी संभावनाओं को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है | मतदाता ऐसे दल के लिए कभी अपना मत नहीं डालते जो उनका चुनावी गठजोड़ के लिए प्यादों की तरह इस्तेमाल करता हो |
इसके अलावा, जिन मुसलमान मतों पर टीएमसी आश्रित है वह भाजपा के साथ गठजोड़ के लिए कभी तैयार नहीं होगी | चुनाव के बाद सभी दल गठजोड़ों का फैसला चुनाव से पूर्व कटुता के आधार पर नहीं बल्कि राजनितिक स्वार्थों के आधार पर करते हैं | ये सच है की समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश चुनावों में मनमुटाव के बावजूद भी यूपीए को अपना समर्थन देती रही | इसीलिए भाजपा को तब फायदा होगा जब श्रीमान मोदी बंगाल में व्यापक रूप से अभियान करें , पुरानी और मोजूदा सरकार के प्रशासन की कमियां लोगों को बताएं और उन के सामने एक ऐसी रूपरेखा बना के दिखाएं की केंद्र में एक मज़बूत नेतृत्व बंगाल की राजनितिक और आर्थिक पृष्ठभूमि में कैसे बदलाव ला सकता है |
अंत में मैं ये अनुमान तो नहीं लगा सकता की इन सब बातों पर अमल कर भाजपा बंगाल में कितनी सीटें जीतेगी | लेकिन मुझे ये पता है की १९९९ में अटल बिहारी वाजपेयी ने विश्वास मत सिर्फ एक मत से हारा था !
Source: http://blogs.swarajyamag.com/2013/07/10/bjp-dont-give-up-on-bengal