सिविल सोसाइटी, मीडिया और भारत की सरकार अभी तक इस मुद्दे के चुप दर्शक बने हुए हैं जबकि उनके पीठ के पीछे ये त्रासदी घटित होती रही है |
भारतीय मीडिया ने अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को दर्शाने में काफी बेहतरीन काम किया है फिर चाहे वो , अरब स्प्रिंग, तहरीर चौक, वेटिकन में संतों की मोक्ष प्राप्ति के लिए खूब्सूर्तिकरण या गाजा संघर्ष हो | सिर्फ एक मुद्दा जिसपर उनकी नज़र नहीं पड़ी है वह है दुनियाभर के हिन्दुओं का नरसंहार ख़ास तौर से हमारे पडोसी मुल्कों जैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश में | ये एक अकथनीय बात है क्यूंकि इन देशों की अन्य घटनाओ को व्यापक रूप से दिखाया जाता है |
भारत के पीठ पीछे हिंदुओं का नरसंहार
सबसे पहले में आपको वह चौंकाने वाले तथ्य बताती हूँ जो अभी तक समान्य स्थिति में भारत की जनता को पता होने चाहिए | जब १९४७ में पाकिस्तान का गठन हुआ हिन्दू पश्चिमी पाकिस्तान (मोजूदा पाकिस्तान ) की जनता का 15 प्रतिशत हिस्सा थे , १९९८ में वह घट कर 1.6 प्रतिशत रह गये (पृष्ट ७६ हिन्दुस् इन साउथ एशिया एंड द डायस्पोरा :अ सर्वे ऑफ़ ह्यूमन राइट्स २०१३) – मतलब की ५० सालों में आबादी की में ९० प्रतिशत गिरावट आई है | ये गिरावट पाकिस्तान के गठन से लगातार हो रहे कानूनी और सामाजिक भेदभाव का नतीजा है |कानूनी तौर पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनने का हक सिर्फ मुसलामानों को है | पाकिस्तान के शरिया कोर्ट ने धार्मिकता को बढ़ावा और कट्टरपंथियों को मजबूत किया है | वह गैर मुस्लिम नागरिकों को भी इस्लामी सजा देते हैं जिनमे शामिल हैं पथराव से मौत , हाथों और पैरों का विच्छेदन और जनता के सामने कोड़ों से मारना | ईशनिंदा कानून के दोषी को मौत की सजा दी जाती है और इसका इस्तेमाल गैर मुस्लमान नागरिकों को पीड़ित करने के लिए किया जाता है | गैर मुसलमानों के लिए कोई परिवार नियम नहीं हैं | अतः सफ़र के इरादे से कानूनन शादी नहीं की जा सकती और तलाक और जायदाद के हक की लड़ाई सुलझाई नहीं जा सकती | सामाजिक तौर पर सरकारी विद्यालयों और मदरसे अल्पसंख्यकों के विरुद्ध नफरत को भड़काते हैं | १९५६ से २०१३ तक मदरसों की संख्या २४४ से बढ़कर १०००० हो गयी है ( पृष्ट ७४ )
परिणाम स्वरुप हिन्दू औरतों , खास तौर से किशोरियों को ज़बरदस्ती पकड़ मुस्लमान बनाया जा रहा है , फिरौती के लिए हिन्दू व्यवसायियों की पकड़ और हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया जा रहा है | रचना कुमारी और रिन्केल कुमारी जैसी लड़कियों को शिकार बनाने के लिए एक विस्तृत बुनियादी ढांचा तैयार किया गया है | पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने बताया है की हर महीने २० -२५ हिन्दू लड़कियों को अगवा कर उनका धर्म परिवर्तन किया जा रहा है | डौन ने इस संख्या को हर साल हिन्दू और ईसाई औरतों के लिए 1000 बताया है | पाकिस्तान कई हिन्दू मंदिरों का घर है जिसमें से सिर्फ ३६० बचे है , जिनमे से काफी कम सक्रिय हैं ; १९४७ से हज़ारों मंदिर नष्ट कर दिए गए हैं ( पृष्ट ८१ )| हिन्दुओं का एक प्रमुख धार्मिक स्थान हिंगलाज माता मंदिर भी कट्टरपंथियों का शिकार बना है | पाकिस्तान में एक इज्ज़त भारी ज़िंदगी मिलने की नाउम्मीदी में हिन्दू विदेश जा कर बस रहे हैं | पाकिस्तान हिन्दू कौंसिल के मुताबिक हर साल 5000 हिन्दू भारत के लिए प्रस्थान करते हैं(पृष्ट 73 ) |
हिन्दुओं का नरसंहार सिर्फ पाकिस्तान तक सीमित नहीं है | १९८० के आख़री दशकों में बोद्ध भूटान ने करीब १००००० हिन्दुओं(भूटानइज़ जनता का छठा हिस्सा) को देशनिकाला दे दिया है | पाकिस्तान के १९५१ के सेन्सस के मुताबिक पुर्वी पाकिस्तान ( अब बांग्लादेश ) के एक तिहाई हिस्सा होने वाले हिन्दू १९७१ में जब बांग्लादेश का जन्म हुआ घट के आबादी का पांचवा हिस्सा ही रह गए | ३० सालों बाद हिन्दुओं का प्रतिशत १० से भी कम रह गया है ; और भरोसेमंद सूत्रों(आर बेन्किंस की किताब :अ क्वाइट केस ऑफ़ एथनिक क्लींजिंग – द मर्डर ऑफ़ बांग्लादेश हिन्दुस् ) के हिसाब से अब 8 प्रतिशत से भी कम |स्थिति इतनी गंभीर है की एमनेस्टी ने भी गौर किया है की बांग्लादेश में हिन्दू समुदाय खतरे में है और सिर्फ धर्म की वजह से उन्हें पीड़ित किया जा रहा है (पृष्ट 24 )| १९७१ में ही १० मिलियन बंगाली अधिकतर हिन्दू भारत आ गए और करीबन २००००० औरतों बलात्कार का शिकार हुईं (पृष्ट २६ )| १९७५ से धार्मिक अल्पसंख्यक जैसे हिन्दुओं को राष्ट्र और राष्ट्र इकाईयों द्वारा भेदभावपूर्ण संपदा कानूनों, धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और हिंसा का सामना करना पड़ा ( पृष्ट ३० )| उदाहरण के तौर पर हर साल उनके सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार दुर्गा पूजा के दौरान हिन्दुओ पर हमला किया जाता है | बांग्लादेश के गठन से पहले पाकिस्तानी सरकार ने एक दुश्मन संपदा अधिनियम(ई पी ऐ ) का गठन किया था जिसमें आधिकारिक तौर पर हिन्दुओं को दुश्मन माना गया था और उनकी सम्पदा हड़पने की सहूलियत देता था | पाकिस्तान के गठन से ई पी ऐ कई अलग नामों से सक्रीय बना रहा : वी पी ऐ (निहित संपत्ति अधिनियम), वी आर पी बी (निहित संपत्ति वापस विधेयक) इत्यादि और इसके अंतर्गत २००१ से २००७(ढाका विश्वविद्यालय के अबुल बरकत के मुताबिक ) के बीच करीब २००००० हिन्दू परिवारों से १६ * १०७ स्क्वायर मीटर ज़मीन छीन ली गयी है(पृष्ट ४३ ) | इसी तरह मलेशिया के इस्लामी गणराज्य की बुमिपुत्र नीतियाँ ६.३ प्रतिशत हिन्दुओं के साथ साफ़ तौर पर भेदभाव करती हैं ( भाग ४ )|
बुराई की जीत के लिए जो चीज़ ज़रूरी है वह यह की अच्छे इंसान कुछ ना करें
- एडमंड बुर्के
भारत सरकार
सिविल सोसाइटी, मीडिया और भारत की सरकार सब मौन दर्शक बन कर देख रहे हैं जबकी उनके पीठ पीछे ऐसी बर्बर त्रासदी को अंजाम दिया जा रहा है | भारतीय सरकार ने पाकिस्तान से आये हिन्दुओं को रिफ्यूजी की अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक पाकिस्तान द्वारा धार्मिक अत्याचार से न बचा पाने के कारण ,सभी मापदंडों को पूरा करने के बावजूद रिफ्यूजी का आधिकारिक दर्जा नहीं दिया है | वह गरीबी के हालातों में उत्तर और उत्तर पश्चिमी भारत में तंग और मलिन स्थितियों में खुले शिविरों में रहते हैं और लगातार जुकाम, खांसी, मनोदैहिक स्थिति, अंधापन और मौखिक ट्यूमर का शिकार होते हैं | ये तकलीफ सभी राजनीतिक सरकारों में बरक़रार रही है | लेकिन ऐसी खबरें आई हैं की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मोजूदा सरकार पाकिस्तान से आने वाले रिफ्यूजीयोँ के लिए ऐसी योजना ला रही है जिसमें प्राइवेट नौकरियां और हिंदू और सिख शरणार्थियों के लिए भारतीय नागरिकता की प्रक्रिया को तीव्र बनाना शामिल है | मध्य प्रदेश की राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बांग्लादेश से आये ५४६४ अल्पसंख्यक रिफ्यूजीयोँ का पुनर्वास करवाया है | लेकिन किसी भी सरकार ने आंतरिक या बाह्य मंच के माध्यम से पडोसी राज्यों में हिन्दुओं के धार्मिक उत्पीडन का मुद्दा नहीं उठाया है | इसके विपरीत पाकिस्तान ने गुजरात दंगों का ज़िक्र यूनाइटेड नेशनस में किया था |
सरकारों की निष्ठुरता शायद भारतीय राजनीति में धर्मनिरपेक्षता के शास्त्रीय धारणाओं में पेश विरूपण का नतीजा है | धर्मनिरपेक्षता पारंपरिक तौर पर धर्म और शासन के बीच में विभाजन का नाम है – लेकिन भारत में ये हिंदुत्व के इलावा सभी धर्मों के पालकों को ख़ास कानूनी और आर्थिक फायदे देने का नाम है , जिसके अंतर्गत औरंगजेब जैसे लोगों की तारीफ़ की जाती है जिन्होनें धार्मिक उत्पीड़न की नीतियों का लगातार पालन किया था ( अभी तक सभी सरकारों ने उनके नाम की सड़क का नाम बदलने से इनकार कर दिया है )|
हंलाकि भारत से विपरीत हिन्दू अमरीकी आबादी का छोटा हिस्सा हैं , फिर भी अमेरिका के जनता प्रतिनिधियों ने भारतीय क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों की तकलीफों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है |कांग्रेस के 15 सदस्यों ने तब राज्य सचिव हिलारी क्लिंटन को एक द्विदलीय पत्र दिया था जिसमें पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीडन को ख़त्म करने की मांग की गयी थी | डेमोक्रेट सांसद तुलसी गैबार्ड (हवाई) और रिपब्लिकन कांग्रेसी हारून स्चोच्क (इलिनोइस) ने एक द्विदलीय कांग्रेसी चिट्ठी लिखी थी जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों को अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में प्राथमिकता देने की गुज़ारिश की गयी थी | माउंट प्रोस्पेकट के गाँव के मेयर अर्लेने ऐ जुरासक ने बांग्लादेश के हिंदू विरोधी कानूनों के चलते वहां के हिन्दुओं की दुर्गा पूजा न मना पाने के दुःख को पहचान दी है |
भारत के जीवंत और चौकस समाज ने इस वहशी त्रासदी की तरफ से आँखें मूँद ली है | ये हैरानी की बात है क्यूंकि कई कार्यकर्त्ता पिछड़ी जातियों के साथ हुई हिंसा को लेकर काफी जागरूक हैं | फिर भी भारत की नज़र के सामने हिन्दुओं की तकलीफों को और भारत में रिफ्यूजीयोँ की व्यथा पर कोई आवाज़ नहीं उठा रहा है जबकि ये लोग भी मुख्य्तर पिछड़ी जाती के ही हैं | उनके उत्पीडन के खिलाफ विरोध थोड़े ही हैं और वो भी जातिवादी दक्षिणपंथी हिन्दू समूहों के द्वारा | इसी बीच वाशिंगटन डी सी में विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया है | हिन्दुओं के मानवाधिकारों की लड़ाई का नेतृत्व अमेरिका में स्थित एक संसथान (हिंदू अमेरिकन फाउन्डेशन) कर रहा है लेकिन ऐसे देश में जहाँ हिन्दुओं की संख्या सबसे अधिक है मानव अधिकार गुट इसका विरोध नहीं कर रहे हैं (पढ़ें {1}.{८},{११}{१५}{१६})| ये भी बताने वाली बात है की समाज में जम्मू और कश्मीर में से कश्मीर पंडित की जातीय सफाई पर विरोध गुजरात दंगों के देखे काफी कम है | जबकि गुजरात के दंगो से प्रभावित लोग कश्मीर में नरसंहार के देखे काफी कम हैं ( पाकिस्तान , बांग्लादेश और भूटान से भी कम हैं ) | १९०१ में कश्मीर की पूरी आबादी का ७ प्रतिशत होने(पृष्ट३०,३८) वाले कश्मीरी पंडित १९८१ में ४ प्रतिशत और २०१० की सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ ३४४५ सदस्यों के ८०८ परिवार में सिमट गए हैं | ( पृष्ट ३८ स्टूडेंट्स अकादमी – कश्मीर – अ पैराडाइस ओन अर्थ ,पृष्ट २५५ राहुल पंडिता की किताब “आवर मून हास् ब्लड क्लोट्स : द एक्सोडस ऑफ़ कश्मीरी पंडितस”)| ११ मई २००५ में संसद में यू पी ऐ मंत्री श्रीप्रकाश जैसवाल द्वारा दिए गए अंकों के मुताबिक दंगों में ७९० मुस्लमान और २५४ हिन्दू मारे गए थे , २५४८ लोग घायल हो गए और २२३ लोग गुमशुदा थे |
सबसे दुखदायक बात
पाकिस्तान की शुरुआत में वहां हुए हिन्दुओं और सिखों पर हुए अत्याचार के चलते भारतीय मीडिया को तो पडोसी देशों में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चौकस होना चाहिए था | जिन्नाह ने गवर्नर जनरल को चिट्ठी लिखी थी की सिखों को पाकिस्तान छोड़ना पड़ेगा ( पृष्ट १७५ मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ ) | जाने माने मुस्लिम लीग नेता और लाहोर के डेली जमींदार के संस्थापक ज़फर अली खान ने ५ सितम्बर १९४७ के अपने अख़बार में ये गुज़ारिश की थी की पश्चिमी पंजाब में किसी भी सिख को रहने की इजाज़त न मिले ( पृष्ट १३७ मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )और इसलिए वह वहां से चले आये |करीब ७ मिलियन हिन्दू और सिख बड़े पैमाने पर की जा रही मौतों से बचने के लिए पाकिस्तान से आ गए | १९४७ में शेइखुपुरा में जहाँ गुरुनानक का जन्म स्थान ननकाना साहिब स्थित है २ दिनों में १०००० से २०००० लोगों की निर्मम हत्या कर दी गयी ( पृष्ट १६७ मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )| झेलम के रोहतास और संघोई जिलों के सभी हिन्दुओं को मौत के घात उतार दिया गया ( पृष्ट २०० मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )| समाचार ख़बरों के मुताबिक ( वास्तविक संख्या ज्यादा हो सकती है )रावलपिंडी जिले के १२८ गाँवों में मार्च १९४७ में कुछ ही दिनों में ७००० हिन्दुओं और सिखों को मार दिया गया और १००० औरतों को अगवा कर लिया गया |इस बर्बरता को देखते हुए नेहरु जो किसी भी मापदंड से सांप्रदायिक नहीं थे , ने कहा था की रावलपिंडी में हुई हरकतें जानवरों को भी शर्मिंदा कर दें (पृष्ट ९० मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )|
१९४७ के एक नागरिक और सैन्य राजपत्र रिपोर्ट के मुताबिक अपने गठन के समय पाकिस्तानी सरकार ने मौलवियों के एक गुट को अगवा की गयी औरतों का धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा था |जो हिन्दू सिख रिफ्यूजी भारत लौट के आ पाए उन्होनें बताया की जहाँ आदमियों का ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन किया गया , औरतों की ज़बरदस्ती शादी कर दी गयी | झेलम जिले के बाज़ारों में कश्मीर के पठानों द्वारा कश्मीर से लाई गयी लड़कियों को बेचा गया | कई हिन्दू और सिख लड़कियों ने अपने को भीड़ की बर्बरता जैसे १) स्तनों, नाक, हाथ का काटना २) गुप्त अंगों में लकड़ी और लोहे के टुकड़ों का डालना ३) गर्भवती औरतों की पेट को खोल भ्रूण को फ़ेंक देना से बचने के लिए आग लगा ली | बच्चों को भी नहीं बक्शा गया – उन्हें उनके माता पिता से छीन कर तलवारों और भालों पर फेंका गया और कई बार जिंदा जला दिया गया (मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )|
इसी तरह पश्चिमी पाकिस्तान के नोखाली में १० अक्टूबर १९४६ को एक पहले से सोची गयी नरसंहार योजना के तहत बंगाली हिन्दुओं के सबसे पवित्र दिन कोजागरी लोक्खी पूर्णिमा के दिन नोखाली जिले की नहर पर स्थित बांस पुलों को तोड़ कर शहर से अलग कर दिया गया | नाविक जो सारे मुस्लमान थे उन्होनें हिन्दुओं को ले जाने से मना कर दिया और रेलवे स्टेशन पर मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं ने पहरा लगा दिया ( पृष्ट १०४-१०५ पहला संस्करण तथगता रॉय माय पीपल उप्रूटेड : अ सागा ऑफ़ द हिन्दुस् ऑफ़ ईस्टर्न बंगाल ) | इसके बाद क़त्ल , बलात्कार और ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन का सिलसिला चालू हो गया | केन्द्रीय मंत्री आर्थर हेन्देरसन ने ४ नवम्बर १९४६ को हाउस ऑफ कॉमन्स को बताया की करीब ९८९५ हिन्दुओं का ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन किया गया और कई हजारों औरतों को उनकी मर्ज़ी के हिलाफ़ अगवा कर मुसलमानों से उनकी शादी कर दी गयी , पत्थर की मूर्तियों को तोड़ा गया , मंदिर को नष्ट कर हिन्दू आदमियों को अपनी ही गायों को मार उनका मांस खाने के लिए कहा गया (पृष्ट १०९ पहला संस्करण तथगता रॉय माय पीपल उप्रूटेड : अ सागा ऑफ़ द हिन्दुस् ऑफ़ ईस्टर्न बंगाल) | डॉ श्यामाप्रसाद मुख़र्जी जो बाद में भारत के केंद्र मंत्री बने ने लिखा की इस बर्बरता से बचने के लिए ५०००० -७५००० हिन्दुओं को अपना घर छोड़ कुछ समय के लिए बेघर होना पड़ा (पृष्ट ११०पहला संस्करण तथगता रॉय माय पीपल उप्रूटेड : अ सागा ऑफ़ द हिन्दुस् ऑफ़ ईस्टर्न बंगाल)|
इसीलिए ये शंका यथोचित है की पाकिस्तान और बांग्लादेश अपने अल्पसंख्यक नागरिकों की सुरक्षा नहीं करेंगे | ये अकथनीय है की भारतीय मीडिया हिन्दुओं पर बाद में होने वाले नरसंहार से बेखबर है | मेरी जानकारी में इंडिया टुडे ने 24 फेब्रुअरी २०१२ को रिन्क्ल कुमारी की अगवाई के चलते पाकिस्तान में हिन्दुओं के ऊपर मुख्य कहानी छापी थी | इस औरत की त्रासदी को भारतीय समाचार साइट्स पर भी दिखाया गया ( [4], [23] [24])| पर पाकिस्तान में हो रहे नरसंहार पर एक व्यवस्थित अध्ययन की कमी है ; कुछ एक आद खबरें भारत में पाकिस्तानी हिन्दू रिफ्यूजीयोँ की व्यथा बताती हैं | एक वेब सर्च से पता चलता है की इस कहानी को ( पाकिस्तान से बाहर ) जो भी अवधान मिला है वह भारत के बाहर के देशों की साईट में है | ये ही कहानी बांग्लादेश , भूटान और मलेशिया के हिन्दुओं के लिए है |
फिर भी मुख्य मीडिया साईट से हट कर कम साधन वाली साईट ने इस मुद्दे में ज्यादा गहरायी से झाँका है | इंडिया फैक्ट्स पाकिस्तान में हिन्दुओं के मानवाधिकार खलल पर मासिक रिपोर्ट छापने वाली है – पहली तो छप भी चुकी है | स्वराज्य पत्रिका ने पाकिस्तान के भेद्भावी कानूनों पर मौलिक क्षोध छापी है | हिंदू अमेरिकन फाउन्डेशन ने पूरे विश्व में हिंदुओं के धार्मिक उत्पीड़न पर बड़े पैमाने पर दस्तावेजों को प्रकाशित किया गया है। भारतीय मीडिया की इस मुद्दे को लेकर लापरवाही साधनों की कमी का नतीजा नहीं है |
मेरी जानकारी के मुताबिक बांग्लादेश में हिन्दुओं के नरसंहार के मुद्दे पर अगरेजी में सिर्फ तीन पुस्तकों लिखी गयी हैं आर बेन्किंस की अ क्वाइट केस ऑफ़ एथनिक क्लींजिंग – द मर्डर ऑफ़ बांग्लादेश हिन्दुस् , तथागत रॉय – अ सुप्रेस्सेड चैप्टर इन हिस्ट्री : द एक्सोडस ऑफ़ हिन्दुस् फ्रॉम ईस्ट पाकिस्तान एंड बांग्लादेश १९४७ -२००६ और गर्र्री बास का द ब्लड टेलीग्राम ( इनमें से सिर्फ एक भारतीय लेखक की रचना है ); एक कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर ( एक कश्मीरी पंडित द्वारा लिखी गयी ) और पाकिस्तान की इसमें भागीदारी पर कोई किताब कहीं नहीं लिखी गयी है | इसके विपरीत यहूदी प्रलय और गुजरात दंगों पर काफी गहरी क्षोध की गयी है ( जिनमे से कुछ के नाम हैं पर्विस घस्सेम की फस्संदी पोग्रोम इन गुजरात : हिन्दू नेशनलइसम एंड एंटी मुस्लिम वायलेंस इन इंडिया , माइकल मन की द डार्क साइड ऑफ़ डेमोक्रेसी : एक्स्प्लैनिंग एथनिक क्लींजिंग | ये भी देखने वाली बात है की पत्रकार स्वपन दासगुप्ता जिन्होनें हिन्दुओं के नरसंहार पर लिखी एकमात्र किताब तथागत रॉय की – अ सुप्रेस्सेड चैप्टर इन हिस्ट्री : द एक्सोडस ऑफ़ हिन्दुस् फ्रॉम ईस्ट पाकिस्तान एंड बांग्लादेश १९४७ -२००६ का आवलोकन किया है ने अपनी ट्विटर की बातचीत में बताया की इस किताब की ऐतिहासिक मूल्य को देखते हुए भी इसका आवलोकन करने के लिए कोई दावेदार सामने नहीं आया था | इसिलए भारतीय मीडिया से ये पूछना सही होगा की उनकी चौकसी की हद पीड़ितों के धर्म के बजाय किसी भी मानवीय त्रासदी की भयावहता पर निर्भर क्यूँ नहीं है ? पत्रकारिता में धार्मिक द्वेष ?
भारतीय मीडिया में हिन्दुओं के डर को वजह बताने के बजाय , में अंत में पीड़ितों के धर्म के आधार पर पत्रकारिता की हद में भेदभाव से जुड़े कुछ तथ्यों को सामने लाना चाहूंगी |
1)भारतीय मीडिया ने पुणे में हिन्दुओं द्वारा एक मुस्लिम व्यक्ति के क़त्ल की खबर को व्यापक रूप से दिखाया पर केरेला में राष्ट्रिय स्वयं संघ के कार्यकर्त्ता और तमिल नाडू के भाजपा सचिव के क़त्ल और एक मुस्लमान द्वारा एक ९ साल की हिन्दू लड़की के बलात्कार की घटना का ज़िक्र भी नहीं किया |वह आतंक के दोषी पाए गए मुसलमानों के मानवाधिकारों के बारे में बार बार ज़िक्र करेंगे लेकिन एक हिन्दू औरत साध्वी प्रज्ञा जिसको मालेगांव विस्फोटों के सम्बन्ध में गिरफ्तार किया गया था और बिना किसी आरोप के 5 साल जेल में रखा गया था उसके बारे में कोई बात भी नहीं करता | कोई भी नारीवादी या मानवाधिकार संगठन उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया जबकि उसने उत्पीडन का इलज़ाम लगाया और कैंसर होने के बावजूद भी उसे बेल नहीं दी गयी | इसी तरह सेना के खुफिया अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को जांच के बिना, फिर से, छह साल जेल में रखा जा चुका है | उन्होनें भी कई दिनों तक उत्पीडन का इलज़ाम लगाया है | ये भी देखने वाली बात है की पिछले गृह मंत्री सुशिल कुमार शिंदे ने अपने सभी मुख्यमंत्रियों से कहा था की वह ध्यान रखें की किसी भी मुसलमान की आतंकवाद के गलत इलज़ाम में गिरफ़्तारी न हो , ये जानते हुए भी धर्म पर जोर देना धर्मनिरपेक्षता के मूल आधार से मेल नहीं खाता है | हिन्दू होने के कारण न ही साध्वी प्रज्ञा और न ही कर्नल पुरोहित उन मुस्लिम विशिष्ट उदारता प्रावधानों का फायदा उठा सकते हैं जिनका ध्यान रखने के बारे में शिंदे ने अपने मुख्यमंत्रियों को हिदायत दी थी |
२) गुजरात दंगों के बारे में पिछले एक दशक में राष्ट्रिय मीडिया में काफी खबरें सामने आई हैं लेकिन बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में जो हिंसा हिन्दुओं के साथ की जाती है उसके बारे में राष्ट्रिय और बंगाल मीडिया में ज़िक्र भी नहीं छेड़ा जाता | देगंगा में स्थानीय हिन्दू समुदाय के खिलाफ मुसलमान भीड़ द्वारा हो रही हिंसा और आगज़नी को रोकने के लिए सेना को तैनात करना पड़ा था | मुस्लिम भीड़ ने कैनिंग पुलिस स्टेशन के इलाके में २०० हिन्दू घरों को जला दिया | इस्लामी संगठनों ने कोलकत्ता में एक भारत के विरोधी भाषण देने वाले , हिन्दू विरोधी व्यक्ति जिसने बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ कार्यक्रम आयोजित किये थे के समर्थन में रैली आयोजित की | लाखों कट्टर मुस्लिमों ने कोलकत्ता की सड़कों पर सीमा पार से आतंक की जांच के विरोध में हिंसा की | मुस्लिम प्रधान क्षेत्र मुर्शिदाबाद में हिन्दुओं को अंतिम संस्कार के अधिकार प्राप्त नहीं है | एक हिंदू कार्यकर्ता संगठन ऐसे कई उदाहरणों का दस्तावेजीकरण कर रहा है जहाँ इस क्षेत्र की हिन्दू लड़कियों के साथ धर्म के उत्पीडन के मामले सामने आये है – अभी तक किसी भी मुख्य पत्रकार ने इस क्षोध को सत्यापित या उसके बारे में और जानने की कोशिश नहीं की है ( मेने स्वयं इन रिपोर्टों की तरफ कई पत्रकारों का ध्यान आकर्षित किया था ) | सिर्फ बंगाल में ही नहीं , जैसा में आगे बताऊंगी ,पूर्वोत्तर भारत में हिंदुओं के उत्पीड़न के मामलों पर भी राष्ट्रिय मीडिया ने नज़र फेर रखी है |
३) अक्सर वैवाहिक उत्पीड़न के मामलों को भारतीय मीडिया में बड़ी संवेदन्शीलता से पेश किया जाता है ; लेकिन राष्ट्रीय स्तर शूटर तारा सहदेव ने जब अपने पति पर इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने के लिए उत्पीडन करने का इलज़ाम लगाया तो सभी टेलीविज़न चैनल्स ने उनके सामने सवालों की झड़ी लगा दी | और हिन्दू औरतें जिन्होनें भी रिश्ते के ओट में ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन के इलज़ाम लगाये हैं उन्हें भी भारतीय मीडिया में बड़ी धिक्कार का सामना करना पडा है | इसीलिए ये हैरानी की बात नहीं है की जामा मस्जिद के इमाम बुखारी का मुस्लिम युवकों का हिन्दू लड़कियों से विवाह कर उनका धर्म परिवर्तन करवाने की गुहार का कहीं ज़िक्र भी नहीं किया गया है |
४.) भारतीय मीडिया तब काफी नाराज़ हुई जब एक हिन्दू कार्यकर्त्ता दीना नाथ बत्रा ने वेंडी दोनिगेर की हिंदुत्व पर लिखी किताब के खिलाफ केस दर्ज किया जिस वजह से प्रकाशक को किताब की सभी प्रतिलिपियाँ हटानी पड़ी | इस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया की श्रीमान बत्रा ने सार्वजानिक हिंसा न कर संविधानिक तरीकों से अपना काम पूरा करवाया | फिर भी वही मीडिया तब चुप रही जब लेखिका तसलीमा नसरीन जिन्होनें मुस्लिम कट्टरपंथियों को इस्लाम की बुराई कर नाराज़ कर दिया था .को मुस्लिम भीड़ों के हिंसक प्रदर्शन के बाद कोलकत्ता से जाना पड गया था | उनको अपने विचारों के लिए एमआईएम् के नेताओं के हाथों शारीरिक हिंसा का सामना भी करना पड़ा , और इस घटना का सार्वजानिक तौर पर एमआईएम् के अध्यक्ष के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने समर्थन किया | लेखिका तसलीमा नसरीन से जुड़े टीवी सीरिअल्स और फिल्मों पर प्रतिबन्ध लगता आ रहा है जबकि उनका इस्लाम के बारे में लेखिका के विचारों से कोई सम्बन्ध नहीं है | भारतीय मीडिया उन मामलों में से प्रत्येक में अभिव्यक्ति की उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करने में नाकाम रही है।
५) भारतीय मीडिया और संसद में मुसलमानों और इसाईओं के ज़बरदस्ती हिंदुत्व में धर्म परिवर्तन के एक किस्से पर काफी अपवाद हुआ था | लेकिन अभी तक किसी ने भी विदेशी अनुदान के करोड़ों डॉलर रूप की मदद से सक्षम हिंसक धर्मांतरण और कई बार जबरन रूपांतरण के बारे में कुछ नहीं कहा है (मिशनरी संगठनों ने एक साल में भारत को 250 मिलियन डॉलर भेजे थे )| अंग्रेजी भाषी मीडिया ने आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री स्वर्गीय वाय एस राजसेखारा रेड्डी के द्वारा ईसाई धर्म के बढ़ावे के लिए राज्य संरक्षण देने के मुद्दे पर चुप्पी साध ली | इससे भी बुरा ये है की राष्ट्रिय मीडिया जो हर मिलते मौके पर हिन्दुओं की गुटबाजी का विरोध करती है ने एक हिंसक ईसाई गुट जो उत्तरपूर्व में जबरन हिन्दुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तन करवा रहा था , के बारे में कुछ नहीं कहा | दयानंद सिंह, गुजरात प्रेस क्लब कार्यालय सचिव,ने बताया है की भुँवन पहर , असम की बराक घाटी का सबसे पवित्र स्थान में एक ईसाई आतंकवादी संगठन नाम मन्मासी नेशनल क्रिस्चियन आर्मी (एमेंसीए) जबरन बन्दूक की नौक पर हिन्दू नागरिकों , जिनमें पंडित शामिल हैं , का धर्म परिवर्तन करा रही है | हिंदू मंदिरों पर खून से सने हुए पार की फुटेज भी मौजूद है | त्रिपुरा राज्य सरकार ने बताया है की त्रिपुरा की बैप्टिस्ट चर्च आतंकवादी संगठन नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (एनेलेफ्टी), जिसके मुख्य उद्देश्यों में त्रिपुरा की सभी हिन्दू जातियों का ईसाई धर्म में परिवर्तन एक है ,को बंदूकें और आर्थिक सहायता मुहैया कराती है | एनेलेफ्टी ने सभी हिन्दू त्योहारों जैसे दुर्गा पूजा के मानाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है , १९९१ से २००१ तक धर्म परिवर्तन का विरोध करने वाले करीब २० हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया है , और “बलात्कार को डराने का माध्यम” बना कई जनजातियों का जबरन धर्म परिवर्तन कर दिया है (आदम दे कोदिएर , तितेचा और व्लास्सेंरूत (२००७ ) इन द नेम ऑफ़ द फादर ? क्रिस्चियन मिलिटनइस्म इन त्रिपुरा , नार्थरन यूगांडा एंड अम्बों .स्टडीज इन कनफ्लिक्ट एंड टेररिज्म ),और मंदिर में घुस एक लोकप्रिय हिन्दू उपदेशक शांति कलि को गोली मार दी है | ये मैं बताना चाहूंगी की भारत के उत्तर पूर्व में चर्च द्वारा फैलाये गए आतंक के लिए सूत्र बी बी सी से उठाये गए हैं नाकि भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स से |
निष्कर्ष
किसी भी देश में प्रेस की साख पर सवाल उठाना उसके लोकतंत्र के लिए सही नहीं है क्यूंकि प्रेस का मुख्य उद्देश्य समाज के प्रहरी की तरह काम करना होता है | इसीलिए ये उम्मीद की जाती है की ख़ास तौर से भारतीय मीडिया और भारतीय जनता बातचीत से हिंदुत्व के खिलाफ द्वेष के मामले को कम करने पर ध्यान देंगे |
Source: http://www.dailyo.in/politics/the-missing-hindus-in-south-asia-and-a-conspiracy-of-silence/story/1/1149.html
भारतीय मीडिया ने अंतरराष्ट्रीय घटनाओं को दर्शाने में काफी बेहतरीन काम किया है फिर चाहे वो , अरब स्प्रिंग, तहरीर चौक, वेटिकन में संतों की मोक्ष प्राप्ति के लिए खूब्सूर्तिकरण या गाजा संघर्ष हो | सिर्फ एक मुद्दा जिसपर उनकी नज़र नहीं पड़ी है वह है दुनियाभर के हिन्दुओं का नरसंहार ख़ास तौर से हमारे पडोसी मुल्कों जैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश में | ये एक अकथनीय बात है क्यूंकि इन देशों की अन्य घटनाओ को व्यापक रूप से दिखाया जाता है |
भारत के पीठ पीछे हिंदुओं का नरसंहार
सबसे पहले में आपको वह चौंकाने वाले तथ्य बताती हूँ जो अभी तक समान्य स्थिति में भारत की जनता को पता होने चाहिए | जब १९४७ में पाकिस्तान का गठन हुआ हिन्दू पश्चिमी पाकिस्तान (मोजूदा पाकिस्तान ) की जनता का 15 प्रतिशत हिस्सा थे , १९९८ में वह घट कर 1.6 प्रतिशत रह गये (पृष्ट ७६ हिन्दुस् इन साउथ एशिया एंड द डायस्पोरा :अ सर्वे ऑफ़ ह्यूमन राइट्स २०१३) – मतलब की ५० सालों में आबादी की में ९० प्रतिशत गिरावट आई है | ये गिरावट पाकिस्तान के गठन से लगातार हो रहे कानूनी और सामाजिक भेदभाव का नतीजा है |कानूनी तौर पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनने का हक सिर्फ मुसलामानों को है | पाकिस्तान के शरिया कोर्ट ने धार्मिकता को बढ़ावा और कट्टरपंथियों को मजबूत किया है | वह गैर मुस्लिम नागरिकों को भी इस्लामी सजा देते हैं जिनमे शामिल हैं पथराव से मौत , हाथों और पैरों का विच्छेदन और जनता के सामने कोड़ों से मारना | ईशनिंदा कानून के दोषी को मौत की सजा दी जाती है और इसका इस्तेमाल गैर मुस्लमान नागरिकों को पीड़ित करने के लिए किया जाता है | गैर मुसलमानों के लिए कोई परिवार नियम नहीं हैं | अतः सफ़र के इरादे से कानूनन शादी नहीं की जा सकती और तलाक और जायदाद के हक की लड़ाई सुलझाई नहीं जा सकती | सामाजिक तौर पर सरकारी विद्यालयों और मदरसे अल्पसंख्यकों के विरुद्ध नफरत को भड़काते हैं | १९५६ से २०१३ तक मदरसों की संख्या २४४ से बढ़कर १०००० हो गयी है ( पृष्ट ७४ )
परिणाम स्वरुप हिन्दू औरतों , खास तौर से किशोरियों को ज़बरदस्ती पकड़ मुस्लमान बनाया जा रहा है , फिरौती के लिए हिन्दू व्यवसायियों की पकड़ और हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया जा रहा है | रचना कुमारी और रिन्केल कुमारी जैसी लड़कियों को शिकार बनाने के लिए एक विस्तृत बुनियादी ढांचा तैयार किया गया है | पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने बताया है की हर महीने २० -२५ हिन्दू लड़कियों को अगवा कर उनका धर्म परिवर्तन किया जा रहा है | डौन ने इस संख्या को हर साल हिन्दू और ईसाई औरतों के लिए 1000 बताया है | पाकिस्तान कई हिन्दू मंदिरों का घर है जिसमें से सिर्फ ३६० बचे है , जिनमे से काफी कम सक्रिय हैं ; १९४७ से हज़ारों मंदिर नष्ट कर दिए गए हैं ( पृष्ट ८१ )| हिन्दुओं का एक प्रमुख धार्मिक स्थान हिंगलाज माता मंदिर भी कट्टरपंथियों का शिकार बना है | पाकिस्तान में एक इज्ज़त भारी ज़िंदगी मिलने की नाउम्मीदी में हिन्दू विदेश जा कर बस रहे हैं | पाकिस्तान हिन्दू कौंसिल के मुताबिक हर साल 5000 हिन्दू भारत के लिए प्रस्थान करते हैं(पृष्ट 73 ) |
हिन्दुओं का नरसंहार सिर्फ पाकिस्तान तक सीमित नहीं है | १९८० के आख़री दशकों में बोद्ध भूटान ने करीब १००००० हिन्दुओं(भूटानइज़ जनता का छठा हिस्सा) को देशनिकाला दे दिया है | पाकिस्तान के १९५१ के सेन्सस के मुताबिक पुर्वी पाकिस्तान ( अब बांग्लादेश ) के एक तिहाई हिस्सा होने वाले हिन्दू १९७१ में जब बांग्लादेश का जन्म हुआ घट के आबादी का पांचवा हिस्सा ही रह गए | ३० सालों बाद हिन्दुओं का प्रतिशत १० से भी कम रह गया है ; और भरोसेमंद सूत्रों(आर बेन्किंस की किताब :अ क्वाइट केस ऑफ़ एथनिक क्लींजिंग – द मर्डर ऑफ़ बांग्लादेश हिन्दुस् ) के हिसाब से अब 8 प्रतिशत से भी कम |स्थिति इतनी गंभीर है की एमनेस्टी ने भी गौर किया है की बांग्लादेश में हिन्दू समुदाय खतरे में है और सिर्फ धर्म की वजह से उन्हें पीड़ित किया जा रहा है (पृष्ट 24 )| १९७१ में ही १० मिलियन बंगाली अधिकतर हिन्दू भारत आ गए और करीबन २००००० औरतों बलात्कार का शिकार हुईं (पृष्ट २६ )| १९७५ से धार्मिक अल्पसंख्यक जैसे हिन्दुओं को राष्ट्र और राष्ट्र इकाईयों द्वारा भेदभावपूर्ण संपदा कानूनों, धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और हिंसा का सामना करना पड़ा ( पृष्ट ३० )| उदाहरण के तौर पर हर साल उनके सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार दुर्गा पूजा के दौरान हिन्दुओ पर हमला किया जाता है | बांग्लादेश के गठन से पहले पाकिस्तानी सरकार ने एक दुश्मन संपदा अधिनियम(ई पी ऐ ) का गठन किया था जिसमें आधिकारिक तौर पर हिन्दुओं को दुश्मन माना गया था और उनकी सम्पदा हड़पने की सहूलियत देता था | पाकिस्तान के गठन से ई पी ऐ कई अलग नामों से सक्रीय बना रहा : वी पी ऐ (निहित संपत्ति अधिनियम), वी आर पी बी (निहित संपत्ति वापस विधेयक) इत्यादि और इसके अंतर्गत २००१ से २००७(ढाका विश्वविद्यालय के अबुल बरकत के मुताबिक ) के बीच करीब २००००० हिन्दू परिवारों से १६ * १०७ स्क्वायर मीटर ज़मीन छीन ली गयी है(पृष्ट ४३ ) | इसी तरह मलेशिया के इस्लामी गणराज्य की बुमिपुत्र नीतियाँ ६.३ प्रतिशत हिन्दुओं के साथ साफ़ तौर पर भेदभाव करती हैं ( भाग ४ )|
बुराई की जीत के लिए जो चीज़ ज़रूरी है वह यह की अच्छे इंसान कुछ ना करें
- एडमंड बुर्के
भारत सरकार
सिविल सोसाइटी, मीडिया और भारत की सरकार सब मौन दर्शक बन कर देख रहे हैं जबकी उनके पीठ पीछे ऐसी बर्बर त्रासदी को अंजाम दिया जा रहा है | भारतीय सरकार ने पाकिस्तान से आये हिन्दुओं को रिफ्यूजी की अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक पाकिस्तान द्वारा धार्मिक अत्याचार से न बचा पाने के कारण ,सभी मापदंडों को पूरा करने के बावजूद रिफ्यूजी का आधिकारिक दर्जा नहीं दिया है | वह गरीबी के हालातों में उत्तर और उत्तर पश्चिमी भारत में तंग और मलिन स्थितियों में खुले शिविरों में रहते हैं और लगातार जुकाम, खांसी, मनोदैहिक स्थिति, अंधापन और मौखिक ट्यूमर का शिकार होते हैं | ये तकलीफ सभी राजनीतिक सरकारों में बरक़रार रही है | लेकिन ऐसी खबरें आई हैं की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मोजूदा सरकार पाकिस्तान से आने वाले रिफ्यूजीयोँ के लिए ऐसी योजना ला रही है जिसमें प्राइवेट नौकरियां और हिंदू और सिख शरणार्थियों के लिए भारतीय नागरिकता की प्रक्रिया को तीव्र बनाना शामिल है | मध्य प्रदेश की राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बांग्लादेश से आये ५४६४ अल्पसंख्यक रिफ्यूजीयोँ का पुनर्वास करवाया है | लेकिन किसी भी सरकार ने आंतरिक या बाह्य मंच के माध्यम से पडोसी राज्यों में हिन्दुओं के धार्मिक उत्पीडन का मुद्दा नहीं उठाया है | इसके विपरीत पाकिस्तान ने गुजरात दंगों का ज़िक्र यूनाइटेड नेशनस में किया था |
सरकारों की निष्ठुरता शायद भारतीय राजनीति में धर्मनिरपेक्षता के शास्त्रीय धारणाओं में पेश विरूपण का नतीजा है | धर्मनिरपेक्षता पारंपरिक तौर पर धर्म और शासन के बीच में विभाजन का नाम है – लेकिन भारत में ये हिंदुत्व के इलावा सभी धर्मों के पालकों को ख़ास कानूनी और आर्थिक फायदे देने का नाम है , जिसके अंतर्गत औरंगजेब जैसे लोगों की तारीफ़ की जाती है जिन्होनें धार्मिक उत्पीड़न की नीतियों का लगातार पालन किया था ( अभी तक सभी सरकारों ने उनके नाम की सड़क का नाम बदलने से इनकार कर दिया है )|
हंलाकि भारत से विपरीत हिन्दू अमरीकी आबादी का छोटा हिस्सा हैं , फिर भी अमेरिका के जनता प्रतिनिधियों ने भारतीय क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों की तकलीफों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है |कांग्रेस के 15 सदस्यों ने तब राज्य सचिव हिलारी क्लिंटन को एक द्विदलीय पत्र दिया था जिसमें पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के धार्मिक उत्पीडन को ख़त्म करने की मांग की गयी थी | डेमोक्रेट सांसद तुलसी गैबार्ड (हवाई) और रिपब्लिकन कांग्रेसी हारून स्चोच्क (इलिनोइस) ने एक द्विदलीय कांग्रेसी चिट्ठी लिखी थी जिसमें अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों को अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में प्राथमिकता देने की गुज़ारिश की गयी थी | माउंट प्रोस्पेकट के गाँव के मेयर अर्लेने ऐ जुरासक ने बांग्लादेश के हिंदू विरोधी कानूनों के चलते वहां के हिन्दुओं की दुर्गा पूजा न मना पाने के दुःख को पहचान दी है |
भारत के जीवंत और चौकस समाज ने इस वहशी त्रासदी की तरफ से आँखें मूँद ली है | ये हैरानी की बात है क्यूंकि कई कार्यकर्त्ता पिछड़ी जातियों के साथ हुई हिंसा को लेकर काफी जागरूक हैं | फिर भी भारत की नज़र के सामने हिन्दुओं की तकलीफों को और भारत में रिफ्यूजीयोँ की व्यथा पर कोई आवाज़ नहीं उठा रहा है जबकि ये लोग भी मुख्य्तर पिछड़ी जाती के ही हैं | उनके उत्पीडन के खिलाफ विरोध थोड़े ही हैं और वो भी जातिवादी दक्षिणपंथी हिन्दू समूहों के द्वारा | इसी बीच वाशिंगटन डी सी में विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया है | हिन्दुओं के मानवाधिकारों की लड़ाई का नेतृत्व अमेरिका में स्थित एक संसथान (हिंदू अमेरिकन फाउन्डेशन) कर रहा है लेकिन ऐसे देश में जहाँ हिन्दुओं की संख्या सबसे अधिक है मानव अधिकार गुट इसका विरोध नहीं कर रहे हैं (पढ़ें {1}.{८},{११}{१५}{१६})| ये भी बताने वाली बात है की समाज में जम्मू और कश्मीर में से कश्मीर पंडित की जातीय सफाई पर विरोध गुजरात दंगों के देखे काफी कम है | जबकि गुजरात के दंगो से प्रभावित लोग कश्मीर में नरसंहार के देखे काफी कम हैं ( पाकिस्तान , बांग्लादेश और भूटान से भी कम हैं ) | १९०१ में कश्मीर की पूरी आबादी का ७ प्रतिशत होने(पृष्ट३०,३८) वाले कश्मीरी पंडित १९८१ में ४ प्रतिशत और २०१० की सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ ३४४५ सदस्यों के ८०८ परिवार में सिमट गए हैं | ( पृष्ट ३८ स्टूडेंट्स अकादमी – कश्मीर – अ पैराडाइस ओन अर्थ ,पृष्ट २५५ राहुल पंडिता की किताब “आवर मून हास् ब्लड क्लोट्स : द एक्सोडस ऑफ़ कश्मीरी पंडितस”)| ११ मई २००५ में संसद में यू पी ऐ मंत्री श्रीप्रकाश जैसवाल द्वारा दिए गए अंकों के मुताबिक दंगों में ७९० मुस्लमान और २५४ हिन्दू मारे गए थे , २५४८ लोग घायल हो गए और २२३ लोग गुमशुदा थे |
सबसे दुखदायक बात
पाकिस्तान की शुरुआत में वहां हुए हिन्दुओं और सिखों पर हुए अत्याचार के चलते भारतीय मीडिया को तो पडोसी देशों में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर चौकस होना चाहिए था | जिन्नाह ने गवर्नर जनरल को चिट्ठी लिखी थी की सिखों को पाकिस्तान छोड़ना पड़ेगा ( पृष्ट १७५ मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ ) | जाने माने मुस्लिम लीग नेता और लाहोर के डेली जमींदार के संस्थापक ज़फर अली खान ने ५ सितम्बर १९४७ के अपने अख़बार में ये गुज़ारिश की थी की पश्चिमी पंजाब में किसी भी सिख को रहने की इजाज़त न मिले ( पृष्ट १३७ मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )और इसलिए वह वहां से चले आये |करीब ७ मिलियन हिन्दू और सिख बड़े पैमाने पर की जा रही मौतों से बचने के लिए पाकिस्तान से आ गए | १९४७ में शेइखुपुरा में जहाँ गुरुनानक का जन्म स्थान ननकाना साहिब स्थित है २ दिनों में १०००० से २०००० लोगों की निर्मम हत्या कर दी गयी ( पृष्ट १६७ मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )| झेलम के रोहतास और संघोई जिलों के सभी हिन्दुओं को मौत के घात उतार दिया गया ( पृष्ट २०० मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )| समाचार ख़बरों के मुताबिक ( वास्तविक संख्या ज्यादा हो सकती है )रावलपिंडी जिले के १२८ गाँवों में मार्च १९४७ में कुछ ही दिनों में ७००० हिन्दुओं और सिखों को मार दिया गया और १००० औरतों को अगवा कर लिया गया |इस बर्बरता को देखते हुए नेहरु जो किसी भी मापदंड से सांप्रदायिक नहीं थे , ने कहा था की रावलपिंडी में हुई हरकतें जानवरों को भी शर्मिंदा कर दें (पृष्ट ९० मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )|
१९४७ के एक नागरिक और सैन्य राजपत्र रिपोर्ट के मुताबिक अपने गठन के समय पाकिस्तानी सरकार ने मौलवियों के एक गुट को अगवा की गयी औरतों का धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा था |जो हिन्दू सिख रिफ्यूजी भारत लौट के आ पाए उन्होनें बताया की जहाँ आदमियों का ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन किया गया , औरतों की ज़बरदस्ती शादी कर दी गयी | झेलम जिले के बाज़ारों में कश्मीर के पठानों द्वारा कश्मीर से लाई गयी लड़कियों को बेचा गया | कई हिन्दू और सिख लड़कियों ने अपने को भीड़ की बर्बरता जैसे १) स्तनों, नाक, हाथ का काटना २) गुप्त अंगों में लकड़ी और लोहे के टुकड़ों का डालना ३) गर्भवती औरतों की पेट को खोल भ्रूण को फ़ेंक देना से बचने के लिए आग लगा ली | बच्चों को भी नहीं बक्शा गया – उन्हें उनके माता पिता से छीन कर तलवारों और भालों पर फेंका गया और कई बार जिंदा जला दिया गया (मुस्लिम लीग अटैक – सिख्स एंड हिन्दुस् इन द पंजाब १९४७ )|
इसी तरह पश्चिमी पाकिस्तान के नोखाली में १० अक्टूबर १९४६ को एक पहले से सोची गयी नरसंहार योजना के तहत बंगाली हिन्दुओं के सबसे पवित्र दिन कोजागरी लोक्खी पूर्णिमा के दिन नोखाली जिले की नहर पर स्थित बांस पुलों को तोड़ कर शहर से अलग कर दिया गया | नाविक जो सारे मुस्लमान थे उन्होनें हिन्दुओं को ले जाने से मना कर दिया और रेलवे स्टेशन पर मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं ने पहरा लगा दिया ( पृष्ट १०४-१०५ पहला संस्करण तथगता रॉय माय पीपल उप्रूटेड : अ सागा ऑफ़ द हिन्दुस् ऑफ़ ईस्टर्न बंगाल ) | इसके बाद क़त्ल , बलात्कार और ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन का सिलसिला चालू हो गया | केन्द्रीय मंत्री आर्थर हेन्देरसन ने ४ नवम्बर १९४६ को हाउस ऑफ कॉमन्स को बताया की करीब ९८९५ हिन्दुओं का ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन किया गया और कई हजारों औरतों को उनकी मर्ज़ी के हिलाफ़ अगवा कर मुसलमानों से उनकी शादी कर दी गयी , पत्थर की मूर्तियों को तोड़ा गया , मंदिर को नष्ट कर हिन्दू आदमियों को अपनी ही गायों को मार उनका मांस खाने के लिए कहा गया (पृष्ट १०९ पहला संस्करण तथगता रॉय माय पीपल उप्रूटेड : अ सागा ऑफ़ द हिन्दुस् ऑफ़ ईस्टर्न बंगाल) | डॉ श्यामाप्रसाद मुख़र्जी जो बाद में भारत के केंद्र मंत्री बने ने लिखा की इस बर्बरता से बचने के लिए ५०००० -७५००० हिन्दुओं को अपना घर छोड़ कुछ समय के लिए बेघर होना पड़ा (पृष्ट ११०पहला संस्करण तथगता रॉय माय पीपल उप्रूटेड : अ सागा ऑफ़ द हिन्दुस् ऑफ़ ईस्टर्न बंगाल)|
इसीलिए ये शंका यथोचित है की पाकिस्तान और बांग्लादेश अपने अल्पसंख्यक नागरिकों की सुरक्षा नहीं करेंगे | ये अकथनीय है की भारतीय मीडिया हिन्दुओं पर बाद में होने वाले नरसंहार से बेखबर है | मेरी जानकारी में इंडिया टुडे ने 24 फेब्रुअरी २०१२ को रिन्क्ल कुमारी की अगवाई के चलते पाकिस्तान में हिन्दुओं के ऊपर मुख्य कहानी छापी थी | इस औरत की त्रासदी को भारतीय समाचार साइट्स पर भी दिखाया गया ( [4], [23] [24])| पर पाकिस्तान में हो रहे नरसंहार पर एक व्यवस्थित अध्ययन की कमी है ; कुछ एक आद खबरें भारत में पाकिस्तानी हिन्दू रिफ्यूजीयोँ की व्यथा बताती हैं | एक वेब सर्च से पता चलता है की इस कहानी को ( पाकिस्तान से बाहर ) जो भी अवधान मिला है वह भारत के बाहर के देशों की साईट में है | ये ही कहानी बांग्लादेश , भूटान और मलेशिया के हिन्दुओं के लिए है |
फिर भी मुख्य मीडिया साईट से हट कर कम साधन वाली साईट ने इस मुद्दे में ज्यादा गहरायी से झाँका है | इंडिया फैक्ट्स पाकिस्तान में हिन्दुओं के मानवाधिकार खलल पर मासिक रिपोर्ट छापने वाली है – पहली तो छप भी चुकी है | स्वराज्य पत्रिका ने पाकिस्तान के भेद्भावी कानूनों पर मौलिक क्षोध छापी है | हिंदू अमेरिकन फाउन्डेशन ने पूरे विश्व में हिंदुओं के धार्मिक उत्पीड़न पर बड़े पैमाने पर दस्तावेजों को प्रकाशित किया गया है। भारतीय मीडिया की इस मुद्दे को लेकर लापरवाही साधनों की कमी का नतीजा नहीं है |
मेरी जानकारी के मुताबिक बांग्लादेश में हिन्दुओं के नरसंहार के मुद्दे पर अगरेजी में सिर्फ तीन पुस्तकों लिखी गयी हैं आर बेन्किंस की अ क्वाइट केस ऑफ़ एथनिक क्लींजिंग – द मर्डर ऑफ़ बांग्लादेश हिन्दुस् , तथागत रॉय – अ सुप्रेस्सेड चैप्टर इन हिस्ट्री : द एक्सोडस ऑफ़ हिन्दुस् फ्रॉम ईस्ट पाकिस्तान एंड बांग्लादेश १९४७ -२००६ और गर्र्री बास का द ब्लड टेलीग्राम ( इनमें से सिर्फ एक भारतीय लेखक की रचना है ); एक कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर ( एक कश्मीरी पंडित द्वारा लिखी गयी ) और पाकिस्तान की इसमें भागीदारी पर कोई किताब कहीं नहीं लिखी गयी है | इसके विपरीत यहूदी प्रलय और गुजरात दंगों पर काफी गहरी क्षोध की गयी है ( जिनमे से कुछ के नाम हैं पर्विस घस्सेम की फस्संदी पोग्रोम इन गुजरात : हिन्दू नेशनलइसम एंड एंटी मुस्लिम वायलेंस इन इंडिया , माइकल मन की द डार्क साइड ऑफ़ डेमोक्रेसी : एक्स्प्लैनिंग एथनिक क्लींजिंग | ये भी देखने वाली बात है की पत्रकार स्वपन दासगुप्ता जिन्होनें हिन्दुओं के नरसंहार पर लिखी एकमात्र किताब तथागत रॉय की – अ सुप्रेस्सेड चैप्टर इन हिस्ट्री : द एक्सोडस ऑफ़ हिन्दुस् फ्रॉम ईस्ट पाकिस्तान एंड बांग्लादेश १९४७ -२००६ का आवलोकन किया है ने अपनी ट्विटर की बातचीत में बताया की इस किताब की ऐतिहासिक मूल्य को देखते हुए भी इसका आवलोकन करने के लिए कोई दावेदार सामने नहीं आया था | इसिलए भारतीय मीडिया से ये पूछना सही होगा की उनकी चौकसी की हद पीड़ितों के धर्म के बजाय किसी भी मानवीय त्रासदी की भयावहता पर निर्भर क्यूँ नहीं है ? पत्रकारिता में धार्मिक द्वेष ?
भारतीय मीडिया में हिन्दुओं के डर को वजह बताने के बजाय , में अंत में पीड़ितों के धर्म के आधार पर पत्रकारिता की हद में भेदभाव से जुड़े कुछ तथ्यों को सामने लाना चाहूंगी |
1)भारतीय मीडिया ने पुणे में हिन्दुओं द्वारा एक मुस्लिम व्यक्ति के क़त्ल की खबर को व्यापक रूप से दिखाया पर केरेला में राष्ट्रिय स्वयं संघ के कार्यकर्त्ता और तमिल नाडू के भाजपा सचिव के क़त्ल और एक मुस्लमान द्वारा एक ९ साल की हिन्दू लड़की के बलात्कार की घटना का ज़िक्र भी नहीं किया |वह आतंक के दोषी पाए गए मुसलमानों के मानवाधिकारों के बारे में बार बार ज़िक्र करेंगे लेकिन एक हिन्दू औरत साध्वी प्रज्ञा जिसको मालेगांव विस्फोटों के सम्बन्ध में गिरफ्तार किया गया था और बिना किसी आरोप के 5 साल जेल में रखा गया था उसके बारे में कोई बात भी नहीं करता | कोई भी नारीवादी या मानवाधिकार संगठन उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया जबकि उसने उत्पीडन का इलज़ाम लगाया और कैंसर होने के बावजूद भी उसे बेल नहीं दी गयी | इसी तरह सेना के खुफिया अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को जांच के बिना, फिर से, छह साल जेल में रखा जा चुका है | उन्होनें भी कई दिनों तक उत्पीडन का इलज़ाम लगाया है | ये भी देखने वाली बात है की पिछले गृह मंत्री सुशिल कुमार शिंदे ने अपने सभी मुख्यमंत्रियों से कहा था की वह ध्यान रखें की किसी भी मुसलमान की आतंकवाद के गलत इलज़ाम में गिरफ़्तारी न हो , ये जानते हुए भी धर्म पर जोर देना धर्मनिरपेक्षता के मूल आधार से मेल नहीं खाता है | हिन्दू होने के कारण न ही साध्वी प्रज्ञा और न ही कर्नल पुरोहित उन मुस्लिम विशिष्ट उदारता प्रावधानों का फायदा उठा सकते हैं जिनका ध्यान रखने के बारे में शिंदे ने अपने मुख्यमंत्रियों को हिदायत दी थी |
२) गुजरात दंगों के बारे में पिछले एक दशक में राष्ट्रिय मीडिया में काफी खबरें सामने आई हैं लेकिन बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में जो हिंसा हिन्दुओं के साथ की जाती है उसके बारे में राष्ट्रिय और बंगाल मीडिया में ज़िक्र भी नहीं छेड़ा जाता | देगंगा में स्थानीय हिन्दू समुदाय के खिलाफ मुसलमान भीड़ द्वारा हो रही हिंसा और आगज़नी को रोकने के लिए सेना को तैनात करना पड़ा था | मुस्लिम भीड़ ने कैनिंग पुलिस स्टेशन के इलाके में २०० हिन्दू घरों को जला दिया | इस्लामी संगठनों ने कोलकत्ता में एक भारत के विरोधी भाषण देने वाले , हिन्दू विरोधी व्यक्ति जिसने बांग्लादेश में हिन्दुओं के खिलाफ कार्यक्रम आयोजित किये थे के समर्थन में रैली आयोजित की | लाखों कट्टर मुस्लिमों ने कोलकत्ता की सड़कों पर सीमा पार से आतंक की जांच के विरोध में हिंसा की | मुस्लिम प्रधान क्षेत्र मुर्शिदाबाद में हिन्दुओं को अंतिम संस्कार के अधिकार प्राप्त नहीं है | एक हिंदू कार्यकर्ता संगठन ऐसे कई उदाहरणों का दस्तावेजीकरण कर रहा है जहाँ इस क्षेत्र की हिन्दू लड़कियों के साथ धर्म के उत्पीडन के मामले सामने आये है – अभी तक किसी भी मुख्य पत्रकार ने इस क्षोध को सत्यापित या उसके बारे में और जानने की कोशिश नहीं की है ( मेने स्वयं इन रिपोर्टों की तरफ कई पत्रकारों का ध्यान आकर्षित किया था ) | सिर्फ बंगाल में ही नहीं , जैसा में आगे बताऊंगी ,पूर्वोत्तर भारत में हिंदुओं के उत्पीड़न के मामलों पर भी राष्ट्रिय मीडिया ने नज़र फेर रखी है |
३) अक्सर वैवाहिक उत्पीड़न के मामलों को भारतीय मीडिया में बड़ी संवेदन्शीलता से पेश किया जाता है ; लेकिन राष्ट्रीय स्तर शूटर तारा सहदेव ने जब अपने पति पर इस्लाम में धर्म परिवर्तन करने के लिए उत्पीडन करने का इलज़ाम लगाया तो सभी टेलीविज़न चैनल्स ने उनके सामने सवालों की झड़ी लगा दी | और हिन्दू औरतें जिन्होनें भी रिश्ते के ओट में ज़बरदस्ती धर्म परिवर्तन के इलज़ाम लगाये हैं उन्हें भी भारतीय मीडिया में बड़ी धिक्कार का सामना करना पडा है | इसीलिए ये हैरानी की बात नहीं है की जामा मस्जिद के इमाम बुखारी का मुस्लिम युवकों का हिन्दू लड़कियों से विवाह कर उनका धर्म परिवर्तन करवाने की गुहार का कहीं ज़िक्र भी नहीं किया गया है |
४.) भारतीय मीडिया तब काफी नाराज़ हुई जब एक हिन्दू कार्यकर्त्ता दीना नाथ बत्रा ने वेंडी दोनिगेर की हिंदुत्व पर लिखी किताब के खिलाफ केस दर्ज किया जिस वजह से प्रकाशक को किताब की सभी प्रतिलिपियाँ हटानी पड़ी | इस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया की श्रीमान बत्रा ने सार्वजानिक हिंसा न कर संविधानिक तरीकों से अपना काम पूरा करवाया | फिर भी वही मीडिया तब चुप रही जब लेखिका तसलीमा नसरीन जिन्होनें मुस्लिम कट्टरपंथियों को इस्लाम की बुराई कर नाराज़ कर दिया था .को मुस्लिम भीड़ों के हिंसक प्रदर्शन के बाद कोलकत्ता से जाना पड गया था | उनको अपने विचारों के लिए एमआईएम् के नेताओं के हाथों शारीरिक हिंसा का सामना भी करना पड़ा , और इस घटना का सार्वजानिक तौर पर एमआईएम् के अध्यक्ष के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने समर्थन किया | लेखिका तसलीमा नसरीन से जुड़े टीवी सीरिअल्स और फिल्मों पर प्रतिबन्ध लगता आ रहा है जबकि उनका इस्लाम के बारे में लेखिका के विचारों से कोई सम्बन्ध नहीं है | भारतीय मीडिया उन मामलों में से प्रत्येक में अभिव्यक्ति की उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करने में नाकाम रही है।
५) भारतीय मीडिया और संसद में मुसलमानों और इसाईओं के ज़बरदस्ती हिंदुत्व में धर्म परिवर्तन के एक किस्से पर काफी अपवाद हुआ था | लेकिन अभी तक किसी ने भी विदेशी अनुदान के करोड़ों डॉलर रूप की मदद से सक्षम हिंसक धर्मांतरण और कई बार जबरन रूपांतरण के बारे में कुछ नहीं कहा है (मिशनरी संगठनों ने एक साल में भारत को 250 मिलियन डॉलर भेजे थे )| अंग्रेजी भाषी मीडिया ने आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री स्वर्गीय वाय एस राजसेखारा रेड्डी के द्वारा ईसाई धर्म के बढ़ावे के लिए राज्य संरक्षण देने के मुद्दे पर चुप्पी साध ली | इससे भी बुरा ये है की राष्ट्रिय मीडिया जो हर मिलते मौके पर हिन्दुओं की गुटबाजी का विरोध करती है ने एक हिंसक ईसाई गुट जो उत्तरपूर्व में जबरन हिन्दुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तन करवा रहा था , के बारे में कुछ नहीं कहा | दयानंद सिंह, गुजरात प्रेस क्लब कार्यालय सचिव,ने बताया है की भुँवन पहर , असम की बराक घाटी का सबसे पवित्र स्थान में एक ईसाई आतंकवादी संगठन नाम मन्मासी नेशनल क्रिस्चियन आर्मी (एमेंसीए) जबरन बन्दूक की नौक पर हिन्दू नागरिकों , जिनमें पंडित शामिल हैं , का धर्म परिवर्तन करा रही है | हिंदू मंदिरों पर खून से सने हुए पार की फुटेज भी मौजूद है | त्रिपुरा राज्य सरकार ने बताया है की त्रिपुरा की बैप्टिस्ट चर्च आतंकवादी संगठन नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (एनेलेफ्टी), जिसके मुख्य उद्देश्यों में त्रिपुरा की सभी हिन्दू जातियों का ईसाई धर्म में परिवर्तन एक है ,को बंदूकें और आर्थिक सहायता मुहैया कराती है | एनेलेफ्टी ने सभी हिन्दू त्योहारों जैसे दुर्गा पूजा के मानाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है , १९९१ से २००१ तक धर्म परिवर्तन का विरोध करने वाले करीब २० हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया है , और “बलात्कार को डराने का माध्यम” बना कई जनजातियों का जबरन धर्म परिवर्तन कर दिया है (आदम दे कोदिएर , तितेचा और व्लास्सेंरूत (२००७ ) इन द नेम ऑफ़ द फादर ? क्रिस्चियन मिलिटनइस्म इन त्रिपुरा , नार्थरन यूगांडा एंड अम्बों .स्टडीज इन कनफ्लिक्ट एंड टेररिज्म ),और मंदिर में घुस एक लोकप्रिय हिन्दू उपदेशक शांति कलि को गोली मार दी है | ये मैं बताना चाहूंगी की भारत के उत्तर पूर्व में चर्च द्वारा फैलाये गए आतंक के लिए सूत्र बी बी सी से उठाये गए हैं नाकि भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स से |
निष्कर्ष
किसी भी देश में प्रेस की साख पर सवाल उठाना उसके लोकतंत्र के लिए सही नहीं है क्यूंकि प्रेस का मुख्य उद्देश्य समाज के प्रहरी की तरह काम करना होता है | इसीलिए ये उम्मीद की जाती है की ख़ास तौर से भारतीय मीडिया और भारतीय जनता बातचीत से हिंदुत्व के खिलाफ द्वेष के मामले को कम करने पर ध्यान देंगे |
Source: http://www.dailyo.in/politics/the-missing-hindus-in-south-asia-and-a-conspiracy-of-silence/story/1/1149.html