लियोनार्ड रीड अपने लेख में लिखते हैं , “मालूम है ये एक बहुत हंसी की बात है , “इस दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जिसे पेंसिल का निर्माण करना आता हो”| कहने के लिए ये एक बहुत ही मूर्खतापूर्ण बात लगती है ? पेंसिल दुनिया की सबसे सामान्य चीज़ों में से है | वो तो सिर्फ एक लकड़ी का टुकड़ा है जिसमें अन्दर कुछ काला सा है और नीचे के छोर पर एक लाल चोंच है | 


क्या मतलब किसी को पेंसिल बनाना नहीं आता ? चलिए मान लेते हैं की आप पेंसिल बनाना शुरू कर रहे हैं | सबसे पहले आप को लकड़ी चाहिए होगी है न ? आप लकड़ी कहाँ से लायेंगे ? शायद आपको उत्तरपश्चिमी पसिफ़िक जा कर कुछ पेड़ काटने पड़ेंगे ? आप पेड़ कैसे काटेंगे ? उसके लिए आपको आरी की ज़रुरत पड़ेगी ? आप आरी कहाँ से लायेंगे ? उसके लिए आपके पास थोड़ी से स्टील होनी चाहिए | आप स्टील कहाँ से लायेंगे ? उसके लिए आपके पास स्टील का कारखाना होना चाहिए | स्टील के कारखाने के लिए आपके पास लोहा होना चाहिए | तो इसलिए ये जानने के लिए की पेंसिल कैसे बनती है , आपको ये सब शुरू से जानना होगा की कैसे कोयले से लोहा मिलेगा ,कैसे वह आरी में तब्दील होगा और कैसे उससे पेड़ कट पायेंगे | 

पर ये तो शुरुआत है | पेंसिल के बीच में जो काला पदार्थ है जिसे हम लेड कहते है वह लेड नहीं है | वह ग्रेफाइट है शायद | मुझे पूरा यकीन नहीं और और मुझे ऐसा बताया गया है की वह दक्षिण अमेरिका की खदानों  से प्राप्त होता है | तो अगर आपको बीच का काला पदार्थ चाहिए तो आपको दक्षिण अमेरिका की यात्रा करनी पड़ेगी और दक्षिण अमेरिका की खदानों से ग्रेफाइट निकालना आना चाहिए |

ऊपर जो लाल चोंच है वह रबर है | वो कहाँ से मिलता है ? प्राकृतिक रबर का सबसे प्रमुख स्रोत है मलेशिया | वह बहुत दूर है और मुझे नहीं पता की आप में से कितने लोगों को ये मालूम है रबर के पेड़ का मूल निवास मलेशिया नहीं है | उन्हें मलेशिया में निजी कम्पनियाँ आयात कर के  लाई थी सिर्फ थोड़े ज्यादा पैसे बनाने के लिए | वह उन्हें दक्षिण अमेरिका में कहीं से – शायद ब्राज़ील पर पक्का नहीं – मलेशिया लाये थे ,यहाँ उनके बाग स्थापित किये और ये रबर निकाली | तो इसिलए अगर आको पेंसिल बनानी है , तो आपको रबर के बारे में सीखना पड़ेगा |

यहाँ पर एक पीतल की चोंच भी है और मैं तो अपनी सारी तकनिकी जानकारी भूल गया हूँ ,और मुझे नहीं पता की ये कहाँ से आती है ,हांलाकि मुझे ऐसा लगता है की श्रोताओं में कई ऐसे लोग हैं जिन्हें इसकी जानकारी होगी | 



किसी को नहीं पता की पेंसिल कैसे बनाते हैं , पर चमत्कार इस बात में नहीं है | पेंसिल का चमत्कार ये है की वह कैसे बनी | किसने मलेशिया में इस आदमी को बोला की वह पेड़ को टटोलकर थोडा सा रबर यहाँ भेज दे ताकि में उसे पेंसिल के छोर पर लगा कर एक पेंसिल बना लूं ? वह क्या है जिस वजह से ये छोटा सा लेन देन हो पाया  ? मुझे नहीं पता की इस चीज़ की क्या कीमत है ; ये चीज़ें इतनी जल्दी बदलती है | जब मेने ये कहानी सुनना शुरू की तब ये एक निकल में मिलती थी पर अब शायद कीमत बढाकर 15 सेंट हो गयी है | पर क्या हो अगर में दुकान पर जाकर 25 सेंट्स के दो पेंसिल खरीद लूं ? में दुनिया भर के हजारों लोगों के साथ व्यापर करूंगा , वाशिंगटन राज्य के वो लोग जो पेड़ काट रहे हैं , दक्षिण अमेरिका के लोग , मलेशिया के लोग – मैं उन सबसे सौदा कर रहा हूँ | मैं उनसे अप्रत्यक्ष रूप से कह रहा हूँ “में इन दो पेंसिल के बदले आप से दो मिनट बातचीत करना चाहता हूँ”| वाकई मे मुझे उम्मीद है की इस गणना में मेंने  अपना दाम कम लगाया है | 


ये कैसे संभव हो पाता है ? क्या कोई ऐसा शक्स है जो अपने दफ्तर में बेठ कर मलेशिया , दक्षिण अमेरिका और वाशिंगटन के इन लोगों को आदेश दे रहा है | कौन इन्हें एक दुसरे के साथ सहयोग करने के लिए प्रेरित कर रहा है ? यही तो कीमत प्रणाली का चमत्कार है , क्यूंकि इस आसान सी गतिवधि में शामिल होने वाले हज़ारों  लोगों में से किसी को भी जबरदस्ती ये काम नहीं कराया जा रहा है , किसी ने भी उनके सर पर बन्दूक नहीं रखी हुई है सब मर्ज़ी से इस काम को कर रहे हैं |क्यूँ ? क्यूंकि इनमें से हर इंसान ये सोचता है की वह इस लेन देन को करके ज्यादा सफल बन रहा है या फिर वह ये सोचते हैं की वह इस काम को इसलिए कर रहे हैं क्यूंकि उन्हें लगता है की वो ज्यादा सफल हैं |सब का फायदा हो रहा है बिना किसी केन्द्रीय नेतृत्व के | जिन लोगों ने आपस में सहयोग किया वह एक भाषा नहीं बोलते , वह अलग अलग धर्म के हैं , और अन्य मामलों में शायद एक दुसरे से नफरत करते हों , पर इस बात ने उन्हें साथ में काम करने से नहीं रोका है | इसने उस खूबसूरत मशीन को सारी सामग्री को जोड़ पेंसिल बनाने ने से नहीं रोका है | 


ये कैसी मशीन है ? क्या है जिसने  लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया है ? ये सब कैसे संभव हो पाया है ? ये मशीन है कीमत प्रणाली , इसी की कहानी की हम बात करेंगे , यही प्रणाली सयुंक्त राज्य अमेरिका के इस विकास का ज़िम्मेदार है ,क्यूंकि ये कीमत प्रणाली ही है जिसको किसी केंद्रीय नेतृत्व की ज़रुरत नहीं है , उसे किसी अफसर की ज़रुरत नहीं है , इसके लिए ये ज़रूरी नहीं की सब एकभाषी हों , इसके लिए ये भी ज़रूरी नहीं की सब एक धर्म के हों | वास्तव में कीमत प्रणाली की ख़ूबसूरती इस बात में है की जब आप ये पेंसिल खरीदते हैं आपको ये नहीं मालूम की जिन लोगों की मेहनत से ये बनी उनका धर्म क्या है | जब अपना रोज़ का ब्रेड खरीदते हैं आपको ये नहीं पता चलता की आटा उगने वाला गोरा था या काला , चाइनीज़ था या भारतीय या कोई और ,और इसके फलस्वरूप कीमत प्रणाली लाखों लोगों में शांतिपूर्वक सहयोग को संभव बनाता है , अपनी ज़िन्दगी के एक छोटे से पहलू में सहयोग करना जबकि बाकी सब पहलुओं में स्वतंत्रता से लोग काम करते रहते हैं | यह सब इतनी आसानी से , इतनी कुशलता से संभव हो जाता है की सामान्य तौर पर हमें इसका पता भी नहीं चलता | ये आपकी कार के जैसे है | आपको कभी नहीं मालूम पड़ता की ये कितना मुश्किल व्यवसाय है जब तक सुबह ३ बजे एक सूनसान सड़क पर आपकी गाड़ी चलना बंद नहीं हो जाती है , और तब आपको पता चलता है की ये एक पेचीदा मशीन है | यही बात कीमत प्रणाली के लिए भी लागू होती है | जब तक वह काम कर रही है , सक्रीय है , जब तक वह लोगों को जोड़ रही है , आपको ये नहीं पता चलता की ये कितनी पेचीदा प्रणाली है | 


ये लोगों को इकठ्ठा करने को कैसे संभव कर पाती है ? मौलिक तौर पर नीचे के स्तरों में कीमत प्रणाली का उद्देश्य है की दोनों गुटों का फायदा हो शर्त ये है की भागीदारी मर्ज़ी से होनी चाहिए ज़बरदस्ती की नहीं |एक प्रवृति होती है , और कई आर्थिक कमियां इस प्रवृत्ति से जनम लेती हैं , और वह है हर चीज़ को शून्य की तरह मापना , मसलन अगर कोई पूर्ण वस्तु है तो अगर मुझे ज्यादा हिस्सा चाहिए तो तुम्हें कम हिस्सा लेना पड़ेगा |अगर किसी ने धन कमाया है तो वह उसने अपने पैरों के नीचे  गरीबों को कुचल के पाया होगा क्यूंकि उस वस्तु में उसका हिस्सा बड़ा था | खुले बाज़ार के पीछे जो गहरी सोच है ,एडम स्मिथ की किताब द वेल्थ ऑफ़ नेशंस  में भी जिसका ज़िक्र है , वह कहती है की ये शुन्य का खेल नहीं है , ऐसा मुमकिन है की दोनों गुटों का फायदा हो , और इस सोच का इस्तेमाल एक बड़े क्षेत्र के लोगों की गतिविधियों को व्यवस्थित करने के लिए किया जा सकता है | इस सोच को अमल में लाना बेहद आसान है अगर आप किसी भी परिस्थिति में मोजूद लोगों को मर्ज़ी से सौदा तय करने दें – मसलन में तुम्हारे रोल्लर स्केट के बदले तुम्हें अपना चाकू दे दूंगा | ज़ाहिर है ये सौदा तब तक संभव नहीं जब तक दोनों गुट के लोग सफल न हो | ये सोचना कठिन है की ये सोच कैसे पेंसिल के बनने में शामिल दूर के सौदों पर लागू होती है , पर सच ये है की ये सोच वहां भी लाज़मी है |


ये कीमत प्रणाली इसलिए ऐसे काम करती हैं क्यूंकि उसे आदेशों की ज़रुरत नहीं है | वह इसीलिए ऐसे काम करती है क्यूंकि वह कुशल तरीके से बिना किसी को आदेश दिए जानकारी का आदान प्रदान संभव करती है | क्या हो अगर आपको  या हम सबको और पेन्सिल्स की ज़रुरत हो ? जो लोग पेंसिल का निर्माण कर रहे हैं उन्हें  अचानक  पता चलता है की वह थोडा ज्यादा पैसा बना रहे हैं और वह कहते हैं , “ हमें और पेंसिल बनानी चाहिए”| किसी ने उन्हें ये बताया नहीं , ये उन्हें पड़ोस की दुकान से पता चला , और उन्होनें झट उन लोगों को आदेश दे दिया जो लकड़ी बना रहे है , या वो जो रबर बना रहे हैं | इसका असर ये होता है की इस ज़रुरत की वस्तु की कीमत नीचे तक बड़ा दी जाये , ताकि दुनिया भर में लोगों को ये इशारा मिल जाए की इस वस्तु की खपत , या मांग बढ़ गयी है | 


इस इशारे की सबसे खूबसूरत बात ये है की जानकारी का आदान प्रदान बहुत कुशल तरीके से होता है , क्यूंकि सिर्फ ज़रूरी जानकारी को ही आगे भेजा जाता है | जो लोग लकड़ी बनाते हैं उन्हें ये पता चलने की ज़रुरत नहीं है की लकड़ी की मांग क्यूँ बढ़ गयी है , उन्हें ये जानने की ज़रुरत नहीं है की पेंसिल की मांग इसलिए बढ़ गयी क्यूंकि और १४००० सरकारी नियम लागू हो गए हैं जो की पेंसिल से ही लिखे जाने हैं , या पेंसिल की मांग इसिलए बढ़ गयी क्यूंकि डाक विभाग ने कहा है की अगर आप अपने ख़त पेंसिल से लिखेंगे तो सिर्फ १३ सेंट का स्टाम्प लगाना पड़ेगा | उन्हें ये जानने की ज़रुरत नहीं है की क्यूँ पेन्सिल्स बढ़ गयी हैं क्या बच्चों की संख्या बढ़ गयी है और ज्यादा बच्चे स्कूल जा कर पढ़ रहे हैं इसका नतीजा है | उन्हें बस ये जानने की ज़रुरत है की कोई अधिक लकड़ी , या ग्रेफाइट या रबर के लिए थोडा ज्यादा पैसा देने को तैयार है | इस  जानकारी को आगे फैला दिया जाता है , और जिन लोगों को ये जानकारी दी जाती है वह वही हैं जो अधिक लकड़ी , या ग्रेफाइट या रबर में से कुछ भी देने की स्थिति में हों | तो जानकारी को आर्थिक रूप से और कुशलता से आगे बांटा जाता है , जिनको ज़रुरत है उनकी तरफ से ये जानकारी उनतक पहुँचती है जो इस ज़रुरत को पूरा कर सकें | 


दूसरी जगह पर ये जानकारी अपने साथ कार्य पूर्ण होने पर दिए गए इनाम की भी बात करती है | ऐसी जानकरी लोगों को देने का कोई फायदा नहीं , “हमें और लकड़ी चाहिए पर हम इसके बदले तुम्हें पहले वाली कीमत ही देंगे” इससे आपको कुछ हासिल नहीं होगा | तो ठीक है आपको और लकड़ी चाहिए | बस यहीं बात ख़तम हो गयी | इस कीमत प्रणाली की एक और खूबसूरत बात ये है की इस जानकारी के साथ , दुसरे स्तर पर , कार्य पूर्ण होने पर एक इनाम की जानकारी भी जाती है की अगर जो आदमी लकड़ी बेच रहा है , उसके लिए कीमत बढ़ जाए , तो उसे लगेगा की वह भी थोडा अधिक पैसा कमा  लेगा इस तरह , और ये बात उसे ऐसा करने के लिए प्रेरित करेगी | और ये इनाम होगा क्यूंकि अंत में उसकी आमदनी इस पर निर्भर है की जो वस्तुएं वह बेच रहा है उसकी कीमत क्या है | 


ये कीमत प्रणाली दुनिया भर के लाखों लोगों की गतिविधियों को नियंत्रित करने का काम करती है क्यूंकि वह तीन कार्यों को जोड़ती है : जानकारी देने का कार्य , उस जानकारी पर काम करने के बदले में इनाम देने का कार्य  और अंत में इस गतिविधि से निकली वस्तु का वितरण करने का कार्य | ये तीनों बेहद ज़रूरी हैं पर इनको अलग करने की कोशिश करना भी आकर्षक है | सामाजिक बदलाव की कई बड़ी योजनायें इसलिए सफल हुईं क्यूंकि उन्हें अलग करने की कोशिश की गयी थी | मुझे याद है एक बार में ऐसे सम्मलेन में शामिल हुआ था जिसमें पूर्व और पश्चिम के अर्थशास्त्री शामिल हुए थे , रूस के अर्थशास्त्री और पश्चिम के अर्थशास्त्री , और रूस का एक बेहद प्रतिभाशाली अर्थशास्त्री वहां मोजूद था | उस व्यक्ति ने अपने आप एडम स्मिथ की दोबारा खोज की थी | ये कर पाना बहुत ही शानदार बात थी , एडम स्मिथ बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्तित्व था , पर उसे जिस चीज़ ने रोक लिया था – और ये हंगरी से कोई था – वो ये था की वह ये पता नहीं  कर पाए की बिना आख़री कार्य का फायदा उठाये कैसे प्रथम दो कार्यों का फायदा उठाया जा सकता है , कैसे आप जानकारी और कीमत प्रणाली के इनाम के असर का फायदा उठा सकते हैं बिना आमदनी का वितरण किये | आप देखेंगे की में घूमकर दुबारा आप्रवासन पर आ गया हूँ ,क्यूंकि , इस तरह के आधुनिक राज्य में , मुफ्त आप्रवासन इसलिए मुमकिन नहीं है क्यूंकि इस राज्य में हम कीमत प्रणाली के आमदनी वितरण और जानकारी और इनाम मुहैय्या करने के कार्य को ख़तम करने में काफी आगे निकल चुके हैं | 


 

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