25 दिसम्बर १९१० एक दूरदर्शी ने हॉल ऑफ़ अमेरिका इंडिया पिक्चर पैलेस में कदम रखा जहाँ उसने देखी फिल्म ‘द लाइफ ऑफ़ क्राइस्ट’ | निकलते समय उसने भारतीय फिल्म उद्योग के विकास के मुद्दे को ध्यान में रखा | ये आदमी था “दादासाहेब फाल्के” | उनकी बीवी ने अगर उस समय अपने पति को अपने जेवर नहीं दिए होते तो २००६ में अमिताभ बच्चन तिरुपति बालाजी पर ९ करोड़ का हार नहीं चड़ा पाते |
उन्हें ४५ दिन लगे एक २०० फीट की फिल्म बनाने में | एक ऐसी फिल्म जिसमें एक पौधे की पेड़ बनने की बढ़त दिखाई गयी है | ३ मई १९३१ को राजा हरिशचंद्र कोरोनेशन थिएटर मुंबई में दिखाई गयी और उसके दो महीने के अंदर ‘आलम आरा’ मैजेस्टिक सिनेमा में दिखाई गयी | ये दोनों ही फिल्में हाउसफुल गयीं और उसका बोर्ड आज भी एक मशहूर अभिनेत्री के पास है | ऐसा माना जाता है की भारतीय फिल्म उद्योग का स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है | उन्होनें लोगों को एहसास दिलाया की उनकी एक विशिष्ट पहचान और संस्कृति है और उन्हें अपनी तकदीर खुद बनाने का हक है |
१९४७ में अभिनेत्री पहली मिस इंडिया बनी | उनका असली नाम एस्तेर विक्टोरिया अब्राहम था और उन्होनें “ मदर इंडिया” में परदे के पीछे से योगदान दिया | वह पहली फिल्म थी जो बकिंघम पैलेस में दिखाई गयी |
१९४८ में पूरा देश विभाजन और आज़ादी के ज़ख्मों से ट्रस्ट था | फिल्म उद्योग थोडा शांत हो गया लेकिन फिर इसी शन्ति से उभरे एक नए विषय की फिल्में जैसे हम दोनों | इस साल को एम् एस सुब्बुलक्ष्मी के उत्थान के लिए भी जाना जाता है हांलाकि वह तब फिल्म उद्योग से सम्बंधित नहीं थी ;वह पहली गायिका थीं जिन्हें भारत रत्ना से नवाज़ा गया |