१९५० के दशक में एक अकल्पनीय चीज़ हुई | एक ऐसी फिल्म आये जिसमें एक भ्रष्ट पुलिस अफसर को गलत काम करते दिखाया गया | सरकार सकते में आ गयी और उसने फिल्म के १६ हफ्ते में प्रतिबंधित कर दिया | इस फिल्म के नायक अशोक कुमार थे और फिल्म का नाम था संग्राम |
५० के दशक से हमें कुछ अतुलनीय फिल्में मिलीं | शुरुआत हुई राजकपूर की आवारा से जिसमें नर्गिस के बाथिंग सूट सीन ने काफी हलचल मचाई | फिल्म रूस में बहुत लोकप्रिय हुई और आज भी उसके गाने स्थानीय ओपेरा में बजाये जाते हैं | भारतीय फिल्म उद्योग में उस समय एक उग्र परिवर्तन आया | बिमल रॉय, राजकपूर, महबूब खान, गुरुदत्त, बी.आर. चोपड़ा, के आसिफ, रमेश सहगल, विजय आनंद, वी शांताराम इत्यादि निर्देशकों की फिल्मों में लोगों की निजी ज़िन्दगी की झलक दिखने लगी | इसके साथ सत्यजित रे ने कला फिल्म नाम की एक अलग शेली की स्थापना की जो फिल्म उद्योग के इतिहास में नगीने बन गयी | १९५० से १९६० के बीच तकनिकी परिवर्तन भी आये और श्वेत और श्याम फिल्मों के बजाये रंगीन फिल्में बनने लगीं |
दक्षिण फिल्म उद्योग और राजनीती का सम्बन्ध बना रहा | शिवाजी गणेशन पराशक्ति नाम की फिल्म के नायक बने और 5 मिनट के अपने अदालत के दृश्य से उन्होनें सब का मन मोह लिया | संवाद उस समय के तमिल नाडू के मुख्य मंत्री के करूणानिधि ने लिखे थे | १९५२ में इफ्फी की मुंबई में स्थापना हुई |बलराज साहनी और बिमल रॉय की फिल्म दो बीघा ज़मीन ने दुनिया भर में कई ख़िताब जीते और सारी दुनिया ने हमें गंभीरता से लेना प्रारंभ किया | १९५३ में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का गठन हुआ और मराठी फिल्म ‘श्यामची आई’ को पहला पुरुस्कार मिला |
.
भारत की पहली टैक्नीकलर फिल्म इसी साल प्रदर्शित हुई ‘झाँसी की रानी’जिसमें निर्देशक सोहराब मोदी की पत्नी महताब ने काम किया | इसी समय पहली संस्कृत फिल्म ‘अदि शंकराचार्य’ प्रदर्शित हुई |१९५५ बेहतरीन साल था क्यूंकि उस साल सत्यजित रे की अपु ट्राइलॉजी , पथेर पांचाली प्रदर्शित हुई जिसने उन्हें राष्ट्रिय पुरुस्कार दिलवाया |१९५७ में कुछ नए अविशकारों के साथ कुछ बेहतरीन फिल्में बनी जिनमें से एक थी वी शांताराम की ‘दो आंखें बारह हाथ’ जो एक जर्मन फिल्म पर आधारित थी |पथेर पांचाली को सन फ्रांसिस्को की सर्वश्रेष्ट फिल्म माना गया | मदर इंडिया अकादमी पुरुस्कारों के लिए गयी पर जीती नहीं |
कागज़ के फूल १९५९ में प्रदर्शित हुई और बहुत लोकप्रिय हुई क्यूंकि उसमें तकनीक के इस्तेमाल के साथ गुरुदत्त की बेहतरीन अदाकारी मोजूद थी | लाखों दिलों की रानी मधुबाला ने लोगों के दिल धड्काए जब उन्होंने ‘बाबूजी समझो इशारे ‘गाना गाया |उनकी तीन भाइयों (अनूप ,अशोक और किशोर) के साथ बनी फिल्म ‘चलती का नाम गाडी’ बेहद लोकप्रिय हुई |
१९६० में कई फिल्में बनी पर उनमें से एक ने इतिहास में अपना नाम पक्का कर लिया | उस समय 1.5 करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म को 15 साल और ५०० शूटिंग के दिन लगे | ये फिल्म थी सलीम और अनारकली के प्रेम पर बनी मुग़ल ऐ आज़म | मुग़ल ऐ आज़म बेहद लोकप्रिय हुई और दुबारा २००६ में उसका रंगीन प्रतिरूप प्रदर्शित किया गया |
१९६३ में दिल का भंवर करे पुकार के शब्दों पर क़ुतुब मीनार की सीड़ियों पर नाचते देव आनंद और नूतन ने प्यार को एक नया रूप दिया | इस साल एस डी बर्मन के कई गाने बेहद लोकप्रिय हुए | तेरे घर के सामने ने देव आनंद को लड़कियों का नायक बना दिया | १९६५ में देश चाइना युद्ध और नेहरु की मौत से परेशान था | फिल्म उद्योग में भी एक बदलाव आने लगा था | किसानों और उनकी समस्याओं की जगह बड़े घर , उच्च समाज की पार्टियों और लम्बी गाड़ियों ने ले ली | यश चोपड़ा ने वक़्त से खूबसूरत फिल्म बनाई | १९६६ में सूखे से भारत इतना विवश हो गया की उसे विदेशी मदद लेनी पडी जिससे रूपये की कीमत गिर गयी | पर उसी साल रीता फ़रिया पहली भारतीय मिस वर्ल्ड बनी | इस साल फिल्म जगत में शर्मीला टैगोर ने कदम रखा |
१९७६ में मनोज कुमार की उपकार ने लोगों का अपने देश में विश्वास मजबूत किया | जहाँ पूरी दुनिया ये मान रही थी भारतीय जनतंत्र तबाह हो रहा है वहां इस फिल्म ने देश भर को प्रभावित किया | प्राण अभी तक एक खलनायक पहली बार एक विकलांग सैनिक मंगल बाबा के किरदार में नज़र आये |
१९६८ में एस डी बर्मन के साहबजादे ने फिल्म जगत पर राज्य करना शुरू किया और दिया गाना “मेरे सामने वाली खिड़की में” |इस फिल्म का हर गाना लोकप्रिय हुआ और महमूद की अदाकारी ने सबका मन मोह लिया |साथ ही आई एक फिल्म जिसमें वहीदा रहमान एक दिमागी रूप से बीमार राजेश खन्ना का इलाज करती है और इस प्रक्रिया में उनसे प्यार करने लगती हैं | हांलाकि राजेश खन्ना ठीक हो जाते हैं उनके जाने से वहीदा रहमान को मानसिक सदमा पहुँचता है | असित सेन द्वारा निर्देशित ये फिल्म थी ख़ामोशी |
.
.