लचित बोर्फुकन असम के सेना अध्यक्ष थे | उन्हें सरैघट की लडाई में राम सिंह के नेतृत्व में आई मुग़ल सेना को शिकस्त देने के लिए जाना जाता है | शिवाजी की तरह लचित बोर्फुकन ने भी असम में मुग़ल सल्तनत की बढ़त को रोकने के लिए कई प्रयास किये | 

इस लड़ाई में कमज़ोर अहोम सेना ने मुग़ल सेना की कमजोरी उसकी थल सेना का फायदा उठा और चतुर युद्ध नीतियों का इस्तेमाल कर उन्हें शिकस्त दी | लचित की देशभक्ति इसी बात से पता चलती है की सरैघट के युद्ध में वह अपने मामा  को जान से मारने से भी नहीं चूके | युद्ध के दौरान उन्होनें एक रात में एक मिटटी की दिवार खड़े करने का आदेश दिया और अपने मामा को उस का कार्यभार सौंपा | जब रात में वह निरिक्षण के लिए पहुंचे तो उन्होनें देखा की काम सही तौर पर आगे नहीं बढ़ रहा था | वजह पूछने पर उनके मामा ने थके होने का बहाना बनाया | ये देख लचित को इतना क्रोध आया की उन्होनें उसी वक़्त अपने मामा का ये कह सर कलम कर दिया की “ मेरे मामा मेरे देश से बढ़कर नहीं है”  | उस दिवार को आज भी “मोमोई कोटा गढ़” के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है “ वो दिवार जहाँ मामा का सर कलम हुआ था”|

पर अहोम सेना का ये महान सेनापति बीमारी के हाथों सरैघट के युद्ध की जीत की कुछ दिनों बाद ही मारा गया | लचित बर्फुंकन के अवशेष जोरहट से १६ किलोमीटर दूर लचित मैदम में रखे गए हैं | हर साल 24 नवम्बर को असम में लचित दिवस एक राजकीय छुट्टी के तौर पर मनाया जाता है |


Please join our telegram group for more such stories and updates.telegram channel