महाराणा प्रताप मेवार राज्य के एक हिन्दू राजपूत शासक थे | प्रताप के साथ के सभी राजपूत राजा मुग़ल की गुलामी को कबूल कर चुके थे जिनमें उनके दो भाई भी शामिल थे | अकबर ने प्रताप के पास 6 संधि सन्देश भेजे लेकिन हर बार प्रताप ने विनम्रता से अकबर की गुलामी को ये कह ठुकरा दिया की सिसोदिया राजपूतों ने अभी तक किसी विदेशी शासक को अपने ऊपर राज नहीं करने दिया है और आगे भी नहीं करने देंगे |कुछ विद्वानों का मानना है की महाराणा अकबर से दोस्ती कर लेते लेकिन अकबर के चितूर के ३०००० नागरिकों को धर्म परिवर्तन न करने पर मार देने के आदेश ने उन पर एक नकरात्मक प्रभाव डाला और उन्होनें फैसला किया की वह अकबर जैसे अन्यायी और क्रूर इन्सान के आगे घुटने नहीं टेकेंगे | अकबर ने इसे अपनी बेईज्ज़ती समझा और महाराणा को सबक सिखाने का फैसला किया |
२१ जून १५७६ को महाराणा प्रताप और अकबर हल्दीघाटी में युद्ध के इरादे से मिले | महाराणा के पास १०००० सैनिक थे लेकिन मुग़ल सेना की संख्या उससे 8 गुना थी | ये लडाई सिर्फ ४ घंटे चली लकिन महाराणा के आदमियों ने युद्ध क्षेत्र में कई जोहर दिखाए | इस युद्ध का मुग़ल सेना पर भी गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हें जान और माल की काफी हानि हुई |पहाड़ों में छुप प्रताप ने मुग़ल सेना को काफी क्षति पहुंचाई | अकबर ने प्रताप को उन पहाड़ों से बाहर निकालने के लिए ३ और दस्ते भेजे पर वह सब विफल हो गए |
महाराणा प्रताप ने कसम खाई थी की वह तब तक चैन नहीं लेंगे जब तक वह अपने राज्य को आजादी नहीं दिला देंगे |उन्होनें करीबन अपने पूरे राज्य को आज़ाद करवा लिया थे लेकिन जनवरी १५९७ में मेवार का सबसे बड़ा नायक महाराणा प्रताप एक शिकार दुर्घटना में घायल हो गया | उन्होनें २९ जनवरी १५९७ को 56 साल की उम्र में चावंड में अपना शरीर छोड़ दिया | वह अपने देश , अपने लोगों और सबसे ज़रूरी अपने स्वाभिमान के लिए लड़ते हुए मर गए |