हरी सिंह नलवा सिख साम्राज्य की सेना खालसा के सेनापति थे | उन्हें कसूर ,सिआलकोट ,अत्तोकक ,मुल्तान ,कश्मीर ,पेशावर और जमरूद की लड़ाइयों के लिए याद किया जाता है | हरिपुर शहर की स्थापना भी उन्होनें ही की थी |
हरी सिंह नलवा को सिन्धु नदी के छोर तक अपने सिख साम्राज्य को फ़ैलाने का श्रेय दिया जाता है | १८३१ में उन्होनें रंजित सिंह की खरक सिंह को उनके उत्तरधिकारी की तरह स्थापित करने की कोशिशों को विफल किया | उनकी मौत के समय तक उनके राज्य की पश्चिमी सीमा जमरूद तक थी |उन्होनें कश्मीर , पेशावर और हजारा के राज्यपाल की तरह काम किया | कश्मीर और पेशावर में कर वसूली को आसान बनाने के लिए उन्होनें सिख साम्राज्य की ओर से एक टकसाल की स्थापना की | उनकी मौत के कई दशकों तक युसुफजई औरतें अपने बच्चों को डराने के लिए कहती “ चुप शा , हरी सिंह राघ्ले( “चुप रहो , हरी सिंह आ रहा है )|
हरी सिंह अफगानिस्तान के दोस्त मुहम्मद खान के पठान सैनिकों से लड़ते हुए मारे गए | ख्य्बेर पास के मुख पर स्थित जमरूद किले में उनका अंतिम संस्कार किया गया | २०१३ में उनकी मौत की 176 पुण्यतिथि पर भारत सरकार ने स्मारक डाक टिकट जारी किया |