एक बड़ी महंगी वस्तु बॉम्बे पोर्ट पर निर्यात होके आती है और उसको एक कन्साइनमेंट नंबर दिया जाता है | दावूद के लोग उसके नंबर को बदल कर कुछ अलग कर देते थे| फिर उस वस्तु को पोर्ट में ही कहीं छुपा दिया जाता था | डिलीवरी के समय पर वह कन्साइनमेंट खोयी हुई पायी जाती थी और अफसर उसे खोया दिखा देते थे | ऐसे में निर्यात करने वाला इन्शुरन्स कंपनी से उसके पूरी कीमत वसूल लेता था | इसके बाद दावूद के आदमी निर्यात करने वाले के पास जाते थे और उसे उसकी वस्तु आधी कीमत में देने का वादा करते थे | ज़ाहिर है वह मान लेगा क्यूंकि उसे तो उसकी पूरी कीमत वापस मिल चुकी है | 

इस तरह निर्यात करने वाले को भी फायदा और दावूद को बिना कुछ करे आधा पैसा मिल जाता था | इस सब को अंजाम देने के लिए दावूद के आदमी सब जगह मोजूद होते थे तभी ये सब मुमकिन हो पाता था |


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