ये 70 के दशक में घटित हुआ था | इस घोटाले को समझने के लिए हमें समझने पड़ेगा की डाक घर का मनी आर्डर प्रणाली कैसे काम करती है | डाक घर को पहले मनी आर्डर फॉर्म और नकद मिलता है और वो उस को स्टाम्प कर के साधारण डाक की तरह बांटने के लिए भेज देते हैं | इस के बाद देने वाला डाक घर सही पते पर जा कर पैसा उस व्यक्ति को दे कर आता है | डाक घर वाले कभी कभार इसकी जांच करते हैं लेकिन क्यूंकि काम ज्यादा था तो जांच कभी भी पुख्ता नहीं होती थी |

घोटाला करने वाला डाक विभाग के रेल विभाग में कार्यरत था | वह ट्रेन में डाक के साथ जाता था और वहीँ उन्हें अलग श्रेणियों में डाल देता था | वह सिर्फ मनी आर्डर फॉर्म भरता था और नाम और पता किसी लॉज का देता था और स्टाम्प करके उसे देने वाली श्रेणी में डाल देता था | अगले दिन वह उस नाम से उस लॉज में ठहरता था और पैसा वसूल लेता था | वह हमेशा कम रकम के लिए ऐसा करता था ताकि लोगों को शक न हो | उसे तब पकड़ा गया जब उसके साथियों को उस पर शक हुआ और उसे पुलिस की मदद से कब्ज़े में लिया गया |


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