ये जैन धर्म की एक आम प्रथा है जहाँ दीक्षा मिलने के बाद साधू और साध्वी साल में एक या दो बार अपने बालों को अपने हाथों से तोड़ते हैं |
इस प्रथा के माध्यम से जैन संत सभी दुनिया से जुड़े सुखों का परित्याग करते हैं | संत अपने शिष्यों को त्याग की राह पर चलने के लिए प्रेरित करने के लिए इस प्रथा को करते हैं | जैन मानते हैं की केश लोचन उन्हें दर्द सहना सिखाता है |